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pradosh vrat 2023: प्रदोष व्रत का महत्व और उद्यापन की विधि

हिंदू कैलेंडर के माह की त्रयोदशी तिथि का प्रदोष काल में होना, प्रदोष व्रत होने का सही कारण हैं. प्रदोष काल सूर्यास्त से 45 मिनट पहले प्रारम्भ होकर सूर्यास्त के बाद 45 मिनट तक होता है. प्रदोष का दिन जब साप्ताहिक दिवस सोमवार को होता है उसे सोम प्रदोष कहते हैं, मंगलवार को होने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष तथा शनिवार के दिन प्रदोष को शनि प्रदोष कहते हैं. वैसे तो त्रयोदशी तिथि ही Lord shiva की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ Pradosh vrat and method of cultivation है. लेकिन प्रदोष के समय शिवजी की पूजा करना और भी लाभदायक है. है. प्रदोष काल सूर्यास्त से 45 मिनट पहले प्रारम्भ होकर सूर्यास्त के बाद 45 मिनट तक होता है. प्रदोष का दिन जब साप्ताहिक दिवस सोमवार को होता है उसे सोम प्रदोष कहते हैं, मंगलवार को होने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष तथा शनिवार के दिन प्रदोष को शनि प्रदोष कहते हैं. वैसे तो त्रयोदशी तिथि ही भगवान शिव की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ है. लेकिन प्रदोष के समय शिवजी की पूजा करना और भी लाभदायक है.pradosh vrat 2023

Date and method of Pradosh Vrat
प्रदोष व्रत की तिथि और विधि
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Published : Jan 2, 2023, 5:01 PM IST

Updated : Jan 2, 2023, 5:29 PM IST

रायपुर/हैदराबाद : प्रदोष व्रत एक ही देश के दो अलग-अलग शहरों के लिए अलग हो सकते हैं. प्रदोष व्रत सूर्यास्त के समय, त्रयोदशी के प्रबल होने पर निर्भर करता है Pradosh vrat 2023. दो शहरों का सूर्यास्त का समय अलग-अलग हो सकता है, इस प्रकार उन दोनों शहरों के प्रदोष व्रत का समय भी अलग-अलग हो सकता है.इसीलिए कभी-कभी ऐसा भी देखने को मिलता है कि प्रदोष व्रत त्रयोदशी से एक दिन पूर्व अर्थात द्वादशी तिथि के दिन ही हो जाता Importance of Pradosh vrat है. सूर्यास्त होने का समय सभी शहरों के लिए अलग-अलग होता है. अतः प्रदोष व्रत करने से पूर्व अपने शहर का सूर्यास्त समय अवश्य जांच लें. प्रदोष व्रत चन्द्र मास की शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की दोनों त्रयोदशी के दिन किया जाता Date and method of Pradosh Vrat है.

कैसे करें प्रदोष व्रत: Pradosh vrat करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए.

  • नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें.
  • इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है.
  • पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते हैं.
  • पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है.
  • अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है.
  • प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है.
  • इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए.
  • पूजन में भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए.

प्रदोष व्रत का महत्व : Pradosh vrat को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी. अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा. उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा. उस पर शिव कृपा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म-जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है.

कौन कर सकता है प्रदोष व्रत : मान्यता और श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों यह व्रत करते हैं. कहा जाता है कि इस व्रत से कई दोषों की मुक्ति तथा संकटों का निवारण होता है. यह व्रत साप्ताहिक महत्त्व भी रखता है.रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है.सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है.मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है.बुधवार के दिन Pradosh vrat हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है. गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है. शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है.संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए.अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किए जाते हैं तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है.

कैसे करें प्रदोष व्रत का उद्यापन : इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए.Pradosh vrat and method of cultivation

  • व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए.
  • उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है.
  • प्रात: जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार किया जाता है.
  • 'ऊँ उमा सहित शिवाय नम:' मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है.
  • हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है.
  • हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है.
  • अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है.

रायपुर/हैदराबाद : प्रदोष व्रत एक ही देश के दो अलग-अलग शहरों के लिए अलग हो सकते हैं. प्रदोष व्रत सूर्यास्त के समय, त्रयोदशी के प्रबल होने पर निर्भर करता है Pradosh vrat 2023. दो शहरों का सूर्यास्त का समय अलग-अलग हो सकता है, इस प्रकार उन दोनों शहरों के प्रदोष व्रत का समय भी अलग-अलग हो सकता है.इसीलिए कभी-कभी ऐसा भी देखने को मिलता है कि प्रदोष व्रत त्रयोदशी से एक दिन पूर्व अर्थात द्वादशी तिथि के दिन ही हो जाता Importance of Pradosh vrat है. सूर्यास्त होने का समय सभी शहरों के लिए अलग-अलग होता है. अतः प्रदोष व्रत करने से पूर्व अपने शहर का सूर्यास्त समय अवश्य जांच लें. प्रदोष व्रत चन्द्र मास की शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की दोनों त्रयोदशी के दिन किया जाता Date and method of Pradosh Vrat है.

कैसे करें प्रदोष व्रत: Pradosh vrat करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए.

  • नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें.
  • इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है.
  • पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते हैं.
  • पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है.
  • अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है.
  • प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है.
  • इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए.
  • पूजन में भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए.

प्रदोष व्रत का महत्व : Pradosh vrat को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी. अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा. उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा. उस पर शिव कृपा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म-जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है.

कौन कर सकता है प्रदोष व्रत : मान्यता और श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों यह व्रत करते हैं. कहा जाता है कि इस व्रत से कई दोषों की मुक्ति तथा संकटों का निवारण होता है. यह व्रत साप्ताहिक महत्त्व भी रखता है.रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है.सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है.मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है.बुधवार के दिन Pradosh vrat हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है. गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है. शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है.संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए.अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किए जाते हैं तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है.

कैसे करें प्रदोष व्रत का उद्यापन : इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए.Pradosh vrat and method of cultivation

  • व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए.
  • उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है.
  • प्रात: जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार किया जाता है.
  • 'ऊँ उमा सहित शिवाय नम:' मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है.
  • हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है.
  • हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है.
  • अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है.
Last Updated : Jan 2, 2023, 5:29 PM IST
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