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क्या होता है कलर ब्लाइंडनेस, कैसे इस बीमारी से बचा जा सकता है ?

6 सितंबर को कलर ब्लाइंडनेस अवेयरनेस डे (color blindness awareness day) मनाया जाता है. वैज्ञानिक और डॉक्टर रहे जॉन डॉल्टन (John Dalton) की याद में इस दिवस को मनाया जाता है. ताकि लोगों को कलर ब्लाइंडनेस के बारे में बताया जा सके.

क्या होता है कलर ब्लाइंडनेस
क्या होता है कलर ब्लाइंडनेस
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Published : Sep 5, 2021, 10:11 PM IST

रायपुर: रंगों का हमारी जिंदगी में एक गहरा जुड़ाव रहता है. रंगों के बिना जीवन सूना और उदास भरा हो जाता है. इनमें हमारी भावनाओं और मानसिक स्थिति को प्रभाव करने की क्षमता होती है. रंगों के द्वारा हम चिन्हों और प्रकाश जैसी चीजों के बारे में सूचनाएं भी हासिल करते हैं. अगर यह रंग नजर नहीं आए तो आधुनिक जीवन के किसी भी सुविधा का मजा हम नहीं उठा सकते. लेकिन कलर ब्लाइंडनेस (color blindness) एक ऐसी बीमारी है. जिसके बारे में ज्यादातर लोगों को पता नहीं. लेकिन कई लोग जन्म से ही इस बीमारी से ग्रसित रहते हैं. युवा होने पर उन्हें इसके बारे में पता लगता है जिसके बाद उनकी मानसिक स्थिति तक खराब हो जाती है. ईटीवी भारत ने कलर ब्लाइंडनेस (color blindness) के बारे में मेकाहारा के आई स्पेशलिस्ट डॉ निधि पांडे (Doctor Nidhi Pandey) से बात कर इसे समझने की कोशिश की है.

क्या होता है कलर ब्लाइंडनेस


6 सितंबर को क्यों मनाया जाता है कलर ब्लाइंडनेस डे ?

कलर ब्लाइंडनेस बीमारी के बारे में अभी लोग उतने जागरूक नहीं हैं. जितना उनको होना चाहिए 6 सितंबर को कलर ब्लाइंडनेस अवेयरनेस डे (color blindness awareness day) इस लिए मनाया जाता है क्योंकि एक साइंटिस्ट थे "जॉन डाल्टन" (John Dalton) उन्होंने इस विषय पर शोध किया और दुनिया को इसके बारे में बताया. 6 सितंबर को उनका जन्मदिन है. इसलिए उनकी याद में पूरे विश्व में कलर ब्लाइंडनेस अवेयरनेस डे मनाया जाता है.

क्या होती है कलर ब्लाइंडनेस बीमारी ?

कलर ब्लाइंडनेस बीमारी में लोगों को लाल और हरा रंग में कंफ्यूज हो जाता है. उन्हें समझ में नहीं आता कि सामने रखा हुआ सामान हरा कलर का है या लाल कलर का ज्यादातर लोगों में यह बीमारी जन्म से ही होती है. वहीं कुछ लोगों में यह बीमारी आंखों में किसी नस के वजह से होती है. कभी-कभी ब्लू और पीले रंग को भी पहचानने में लोगों को समस्या होती है. लेकिन ज्यादातर लोगों में लाल और हरे कलर को पहचानने में ही दिक्कत होती है.

कलर ब्लाइंडनेस बीमारी में क्या जेंडर और आयु का महत्व होता है ?

यह बीमारी एक्स (X) क्रोमोजोम से ट्रांसमिट होती है. इस वजह से पुरुषों में यह बीमारी ज्यादा देखने को मिलती है. कुछ स्टडी में 8% पुरुषों में यह बीमारी देखने को मिली है. कुछ स्टडीज बताती है कि 2% से लेकर 12% पुरुषों में यह बीमारी देखने को मिलती है वही 0.5% महिलाओं में ही यह बीमारी देखने को मिलती है.

कलर ब्लाइंडनेस को लेकर जागरुकता फैलाने की जरूरत ?

कलर ब्लाइंडनेस के बारे में लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है. क्योंकि बहुत सारे प्रोफेशन ऐसे होते हैं जिसमें एक्यूरेट विजन का होना बहुत जरूरी होता है. यह बात ऐसी है कि लोगों को पता नहीं रहता कि उनको कलर ब्लाइंडनेस है. लोगों को बचपन मे पता नहीं रहता जब वह बड़े हो जाते हैं. तब भी उन्हें पता नहीं रहता जब उनका सिलेक्शन हो जाता है और जब वो मेडिकल चेकअप के लिए हमारे पास आते हैं, तब उन्हें पता चलता है कि उन्हें कलर ब्लाइंडनेस है. जिसके बाद उन्हें एक बड़ा झटका लगता है और कई लोग डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. इसलिए अगर कलर ब्लाइंडनेस के बारे में उन्हें बचपन से ही अवेयरनेस हो तो ऐसा प्रोफेशन सिलेक्ट ही नहीं करेंगे जहां अच्छे नज़र की जरूरत हो इससे आगे जाकर उनकी जिंदगी आसान हो जाएगी. जिस प्रोफेशन में कलर विजन की रिक्वायरमेंट ज्यादा नहीं है वह प्रोफेशन वह चुनेंगे.

कलर ब्लाइंडनेस का कैसे चलता है पता ?

कलर ब्लाइंडनेस के बारे में पता लगाने के लिए हम इशिहारा टेस्ट करते हैं. उसमें 38 प्लेट्स रहते है इसमें बैकग्राउंड में दूसरे कलर के डॉट बने रहते हैं और बीच में एक पैटर्न या नंबर बना रहता है. दूसरे कलर का ,अगर आपका नॉर्मल कलर विजन है तो आप नंबर या पैटर्न पहचान लेंगे. लेकिन आपको कलर ब्लाइंडनेस है. तो आपको वो अलग कलर के पैटर्न नजर नहीं आएंगे. इस तरह के बहुत सारे प्लेट्स रहते हैं. जिसमें अलग-अलग डॉट्स बने रहते हैं और बीच में नंबर या पैटर्न बना हुआ रहता है. जिससे हम कलर ब्लाइंडनेस टेस्ट लोगों करते हैं.

बच्चों में इस बीमारी का कैसे पता करें ?

घर में बच्चों को कलर ब्लाइंडनेस है या नहीं इस बारे में पता कर पाना बहुत मुश्किल है. लेकिन स्कूल में जब मेडिकल चेकअप होता है तब बच्चों का कलर ब्लाइंडनेस टेस्ट किया जाए तो पता चल सकता है. हमारे भारत में अभी यह नहीं होता है लेकिन कई दूसरे देश है जहां पर कलर ब्लाइंडनेस टेस्ट को प्राथमिकता दी जाती है. वहां हर छोटे बच्चों को स्कूल में टेस्ट करवाया जाता है. भारत में भी यह जरूरी है ताकि बच्चों को बचपन में ही पता चल जाए और उन्हें आगे प्रोफेशन तलाशने में मदद मिले.

कलर ब्लाइंडनेस बीमारी का इलाज

क्योंकि यह बीमारी जन्मजात होती है. इसलिए अब तक इसका इलाज नहीं ढूंढा जा सका है. लेकिन कुछ ऐसे चश्मे रहते हैं जिससे इसे ओवर कम किया जा सकता है लेकिन अब तक इसका कोई इलाज नहीं है, तो इस बीमारी को लोगों को अडॉप्ट करके ही जीवन बिताना पड़ता है.

रायपुर: रंगों का हमारी जिंदगी में एक गहरा जुड़ाव रहता है. रंगों के बिना जीवन सूना और उदास भरा हो जाता है. इनमें हमारी भावनाओं और मानसिक स्थिति को प्रभाव करने की क्षमता होती है. रंगों के द्वारा हम चिन्हों और प्रकाश जैसी चीजों के बारे में सूचनाएं भी हासिल करते हैं. अगर यह रंग नजर नहीं आए तो आधुनिक जीवन के किसी भी सुविधा का मजा हम नहीं उठा सकते. लेकिन कलर ब्लाइंडनेस (color blindness) एक ऐसी बीमारी है. जिसके बारे में ज्यादातर लोगों को पता नहीं. लेकिन कई लोग जन्म से ही इस बीमारी से ग्रसित रहते हैं. युवा होने पर उन्हें इसके बारे में पता लगता है जिसके बाद उनकी मानसिक स्थिति तक खराब हो जाती है. ईटीवी भारत ने कलर ब्लाइंडनेस (color blindness) के बारे में मेकाहारा के आई स्पेशलिस्ट डॉ निधि पांडे (Doctor Nidhi Pandey) से बात कर इसे समझने की कोशिश की है.

क्या होता है कलर ब्लाइंडनेस


6 सितंबर को क्यों मनाया जाता है कलर ब्लाइंडनेस डे ?

कलर ब्लाइंडनेस बीमारी के बारे में अभी लोग उतने जागरूक नहीं हैं. जितना उनको होना चाहिए 6 सितंबर को कलर ब्लाइंडनेस अवेयरनेस डे (color blindness awareness day) इस लिए मनाया जाता है क्योंकि एक साइंटिस्ट थे "जॉन डाल्टन" (John Dalton) उन्होंने इस विषय पर शोध किया और दुनिया को इसके बारे में बताया. 6 सितंबर को उनका जन्मदिन है. इसलिए उनकी याद में पूरे विश्व में कलर ब्लाइंडनेस अवेयरनेस डे मनाया जाता है.

क्या होती है कलर ब्लाइंडनेस बीमारी ?

कलर ब्लाइंडनेस बीमारी में लोगों को लाल और हरा रंग में कंफ्यूज हो जाता है. उन्हें समझ में नहीं आता कि सामने रखा हुआ सामान हरा कलर का है या लाल कलर का ज्यादातर लोगों में यह बीमारी जन्म से ही होती है. वहीं कुछ लोगों में यह बीमारी आंखों में किसी नस के वजह से होती है. कभी-कभी ब्लू और पीले रंग को भी पहचानने में लोगों को समस्या होती है. लेकिन ज्यादातर लोगों में लाल और हरे कलर को पहचानने में ही दिक्कत होती है.

कलर ब्लाइंडनेस बीमारी में क्या जेंडर और आयु का महत्व होता है ?

यह बीमारी एक्स (X) क्रोमोजोम से ट्रांसमिट होती है. इस वजह से पुरुषों में यह बीमारी ज्यादा देखने को मिलती है. कुछ स्टडी में 8% पुरुषों में यह बीमारी देखने को मिली है. कुछ स्टडीज बताती है कि 2% से लेकर 12% पुरुषों में यह बीमारी देखने को मिलती है वही 0.5% महिलाओं में ही यह बीमारी देखने को मिलती है.

कलर ब्लाइंडनेस को लेकर जागरुकता फैलाने की जरूरत ?

कलर ब्लाइंडनेस के बारे में लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है. क्योंकि बहुत सारे प्रोफेशन ऐसे होते हैं जिसमें एक्यूरेट विजन का होना बहुत जरूरी होता है. यह बात ऐसी है कि लोगों को पता नहीं रहता कि उनको कलर ब्लाइंडनेस है. लोगों को बचपन मे पता नहीं रहता जब वह बड़े हो जाते हैं. तब भी उन्हें पता नहीं रहता जब उनका सिलेक्शन हो जाता है और जब वो मेडिकल चेकअप के लिए हमारे पास आते हैं, तब उन्हें पता चलता है कि उन्हें कलर ब्लाइंडनेस है. जिसके बाद उन्हें एक बड़ा झटका लगता है और कई लोग डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. इसलिए अगर कलर ब्लाइंडनेस के बारे में उन्हें बचपन से ही अवेयरनेस हो तो ऐसा प्रोफेशन सिलेक्ट ही नहीं करेंगे जहां अच्छे नज़र की जरूरत हो इससे आगे जाकर उनकी जिंदगी आसान हो जाएगी. जिस प्रोफेशन में कलर विजन की रिक्वायरमेंट ज्यादा नहीं है वह प्रोफेशन वह चुनेंगे.

कलर ब्लाइंडनेस का कैसे चलता है पता ?

कलर ब्लाइंडनेस के बारे में पता लगाने के लिए हम इशिहारा टेस्ट करते हैं. उसमें 38 प्लेट्स रहते है इसमें बैकग्राउंड में दूसरे कलर के डॉट बने रहते हैं और बीच में एक पैटर्न या नंबर बना रहता है. दूसरे कलर का ,अगर आपका नॉर्मल कलर विजन है तो आप नंबर या पैटर्न पहचान लेंगे. लेकिन आपको कलर ब्लाइंडनेस है. तो आपको वो अलग कलर के पैटर्न नजर नहीं आएंगे. इस तरह के बहुत सारे प्लेट्स रहते हैं. जिसमें अलग-अलग डॉट्स बने रहते हैं और बीच में नंबर या पैटर्न बना हुआ रहता है. जिससे हम कलर ब्लाइंडनेस टेस्ट लोगों करते हैं.

बच्चों में इस बीमारी का कैसे पता करें ?

घर में बच्चों को कलर ब्लाइंडनेस है या नहीं इस बारे में पता कर पाना बहुत मुश्किल है. लेकिन स्कूल में जब मेडिकल चेकअप होता है तब बच्चों का कलर ब्लाइंडनेस टेस्ट किया जाए तो पता चल सकता है. हमारे भारत में अभी यह नहीं होता है लेकिन कई दूसरे देश है जहां पर कलर ब्लाइंडनेस टेस्ट को प्राथमिकता दी जाती है. वहां हर छोटे बच्चों को स्कूल में टेस्ट करवाया जाता है. भारत में भी यह जरूरी है ताकि बच्चों को बचपन में ही पता चल जाए और उन्हें आगे प्रोफेशन तलाशने में मदद मिले.

कलर ब्लाइंडनेस बीमारी का इलाज

क्योंकि यह बीमारी जन्मजात होती है. इसलिए अब तक इसका इलाज नहीं ढूंढा जा सका है. लेकिन कुछ ऐसे चश्मे रहते हैं जिससे इसे ओवर कम किया जा सकता है लेकिन अब तक इसका कोई इलाज नहीं है, तो इस बीमारी को लोगों को अडॉप्ट करके ही जीवन बिताना पड़ता है.

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