रायपुर: छत्तीसगढ़ में होली की धूम देखने को मिल रही है. लोग रंग, गुलाल, कलर लगाकर होली खेल रहे हैं. कई बार कलर की वजह से लोगों पर कई तरह के साइड इफेक्ट भी देखने को मिलते हैं. आप यह जानकर चौक जाएंगे कि होली के रंग में नशा होता है. डॉक्टरों की मानें तो होली के रंग में ऐसे तत्व मौजूद होते हैं जो शरीर में नशे का काम करते हैं. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि होली के रंग में किस तरह का नशा होता है, उसके क्या साइड इफेक्ट हैं और इससे बचने के क्या उपाय हैं. इन सवालों के जवाब ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान न्यूट्रीशनिस्ट डॉक्टर सारिका श्रीवास्तव ने दिए.
रंग में मिले होते हैं हैवी मेटल्स: डॉक्टर सारिका श्रीवास्तव ने बताया कि "रंगों में भी बेशक नशा होता है. हम मैटेलिक कलर, जो रंग-बिरंगे देखने को मिलते हैं जैसे लाल, गुलाबी, नीले, पीले, इन सारे रंगों में हैवी मेटल्स मिले होते हैं. जैसे कि कैडमियम और लेड जैसे मेटेलिक तत्व मिले होते हैं." डॉक्टर सारिका ने कहा कि "जब यह हमारे शरीर के रोम छिद्रों, मुंह, नाक के जरिए हमारे शरीर के अंदर प्रवेश करते हैं, तो हमारे बॉडी के जितने रिफ्लेक्शन होते हैं, हमारे जितने सिस्टम होते हैं उन पर यह असर डालते हैं. यह किडनी और लीवर पर जाकर उसको भी डैमेज कर सकते हैं. यदि यह सीधे हमारे रोम छिद्रों के द्वारा शरीर के अंदर प्रवेश करते हैं."
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नींद और चक्कर का आना कामर समस्या: डॉक्टर सारिका ने बताया कि "रंग खेलने वालों में सिर भारी लगना, चक्कर आना, नींद आना जैसा लक्षण देखने को मिलता है. इनका सीधा सीधा कारण उन रंगों में मिले हुए मैटेलिक तत्व होते है, उनके कारण यह नशा देखा जाता है." डॉक्टर सरिता श्रीवास्तव ने बताया कि "यही कारण है कि जब भी आप होली खेलें तो नेचुरल रंगों से खेलें. जैसे टेसू के फूल उनका उपयोग कर सकते हैं, बीटरुट (चुकंदर) का उपयोग कर सकते हैं. मेहंदी के रंग का उपयोग कर सकते हैं. यह सारी चीजें हमें नशे जैसी चीजों से बचाने वाली होती हैं."