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naga panchmi 2022 : नागों के पौराणिक कथाओं से भरा है छत्तीसगढ़ का इतिहास, जानिए

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Published : Aug 1, 2022, 2:32 PM IST

Nagvanshi Kings of Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ का इतिहास नागों के पौराणिक कथाओं से भरा पड़ा है. यहां कभी नाग शासकों का राज हुआ करता था. इस संबंध में नागवंशी राजाओं का इतिहास और कुछ प्रमाणित जानकारियां धार्मिक ग्रंथों में भी मौजूद (nagpanchmi 2022) है. जिनके बारे में आज हम आपको बताएंगे.

nagpanchmi 2022
नागपंचमी 2022

रायपुर: छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल क्षेत्र के रूप में प्रचलित है. लेकिन इसका इतिहास बहुत सी पौराणिक कथाओं से भरा पड़ा है. भगवान राम के ननिहाल होने के चलते इसे कौशल प्रदेश के रूप में ख्याति मिली. नागों से छत्तीसगढ़ का एक खास नाता रहा है. छत्तीसगढ़ नागों के पौराणिक कथाओं (history snake mythology) से भरा पड़ा है. यहां कभी नाग शासकों (serpent rulers) का राज हुआ करता था. इस संबंध में कुछ प्रमाणित जानकारियां धार्मिक ग्रंथों में भी मौजूद है.

नागवंशी राजाओं का इतिहास: यहां के राजा भोगावती पुर्वरेश्वर की उपाधि धारण करते थे. इस संबंध में कुछ प्रमाणित जानकारियां धार्मिक ग्रंथों में भी मौजूद है. दरसअल, छठवीं शताब्दी (6th century) से लेकर वर्ष 1314 तक नाग वंशी राजाओं का शासन (Nagvanshi Governance) था. नागवंशी शिव उपासक (Nagvanshi Shiva worshiper) थे. इसलिए उन्होंने उमा-माहेश्वर, गणेश, कार्तिकेय, स्कंधमाता और शिवलिंग की जगह जगह स्थापना छत्तीसगढ़ में करवाए थे. आज भी इन प्राचीन मूर्तियों में नागवंशी राजाओं की छाप नाग-सर्प के अंकित चित्र के तौर पर देखने को मिलती है. प्राचीन बस्तर के नाग शासक सोमेश्वर देव प्रथम के लिए भी भोगावती स्वामी का उल्लेख हुआ है.

यह भी पढें: नाग पंचमी का धार्मिक और ज्योतिष महत्व क्या है...आइए जानते हैं

नाग मंदिरों का इतिहास: बस्तर में आज भी नागों की बहुत सी प्रतिमायें एवं मंदिर मिलते है, जो कि तत्कालीन छिंदक नागों के शासन में निर्मित माने (Nagvanshi Governance) गये है. बस्तर में नागवंशी शासनकाल में नागवंशी राजाओं ने भगवान शिव- पार्वती, गणेश और अन्य देवी देवताओं की सैकड़ों मूर्तियां बनाई. उनके द्वारा बनाए हुए मंदिर भी यहां मौजूद हैं. इनमें से मुख्यरूप से दंतेवाड़ा के ढोलकाल और बारसूर में गणेश मंदिर, भैरमगढ़ में शिव-पार्वती की मूर्ति, नारायण पाल में भगवान विष्णु की मूर्ति है. इसके अलावा मधोता, केशरपाल, चिपका, नागफनी, इंजरम, मावलीभाटा बस्तर संभाग के ऐसे अनेकों गांव हैं, जहां नागवंशी राजाओं ने मंदिरों का निर्माण किया है.

इन प्राचीन मंदिरों और यहां स्थापित मूर्तियों में खास बात यह है कि इन सभी जगहों पर नाग-सर्प का चित्र अंकित है. चाहे ढोलकाल की गणेश की प्राचीन प्रतिमा हो या फिर बारसूर में स्थित भगवान गणेश की प्रतिमा. इन दोनों ही प्रतिमा में खास बात यह है कि दोनों ही मूर्ति के पेट के हिस्से में नाग-सर्प दिखाई देता है.

यह भी पढें: यहां नाग पंचमी पर कालसर्प योग से मिलती है मुक्ति

यहां आज भी हैं 'नागों के वंशज': जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर बसा नागफनी गांव नागवंशियों से जुड़ा हुआ है. गांव का नाम नागफनी है और यहां रहने वाले अधिकतर लोगों का सरनेम भी नाग (nagpanchmi 2022) ही है. यहां के निवासी अपने आप को नागों का वंशज मानते हैं. पूरे गांव में एक ही मंदिर है, जो नाग देवता का है. यहां के लोगों का सांपों से विशेष लगाव है. नागपंचमी पर यहां विशाल मेला लगता है. जिसमें आसपास के 36 गांवों के लोग देवी-देवताओं की पूजा करने शामिल होते हैं.

आदिवासियों के गोत्र और उपजाति भी 'नाग': नागवंशी काल के प्राचीन गांव बारसूर के नजदीक है, जो कभी बस्तर के नागवंशी शासकों की राजधानी (Nagvanshi Governance) था. नाग वंश का शासन बस्तर में दसवीं से तेरहवीं शताब्दी तक बताया जाता है. बस्तर आदिवासियों के गोत्र जीव-जंतु पर आधारित होते हैं. यह स्वयं को आदिवासियों की नाग उपजाति मानते हैं. बस्तर में आदिवासियों की मुरिया और हल्बा जाति के सदस्य भी नाग उपनाम लगाते हैं. बस्तर की कई जनजातियों का गोत्र भी नाग है. इसलिए वे अपना उपनाम नाग लिखते हैं. विशेषकर हल्बा, मुरिया, महारा समुदाय के लोग. उनका कहना है कि वे नाग देवता को कुल देवता के रूप में भी पूजते हैं. इस समुदाय के लोग शरीर पर सर्प का गोदना भी गुदवाते हैं.

यह भी पढें: Nagpanchami 2022: नागपंचमी पर गलती से भी न करें ये काम

छत्तीसगढ़ का 'नागलोक': छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के फरसाबहार तहसील और इससे लगे इलाकों को नागलोक (nag panchmi 2022) के नाम से जाना जाता है. ओडिशा से जोड़ने वाली स्टेट हाईवे के किनारे स्थित तपकरा और इसके आसपास के गांव में किंग कोबरा, करैत जैसे विषैल सर्प पाए जाते हैं. इसलिए इस इलाके को नागलोक कहा जाता है. सर्प के जानकार और रेस्क्यू करने वाले केसर हुसैन का कहना है कि "जशपुर क्षेत्र में बहुतायत मात्रा में सांप पाए जाते हैं. लगभग छत्तीसगढ़ में जितने भी प्रजाति के सांप पाए जाते हैं. उनमें से जशपुर में 80 फीसदी सांपों की प्रजाति जशपुर में मौजूद है.

नागलोक की कहानी क्षेत्र में है प्रचलित: इसके साथ ही इस क्षेत्र में एक किवदंती भी चली (history snake mythology) आ रही है. जिसके मुताबिक क्षेत्र में एक गुफा है, जहां नागलोक का प्रवेश द्वार होने की बात कही जाती है. फरसाबहार तहसील में एक स्थान है कोतेबीरा धाम. यहां स्थित गुफा के संबंध में मान्यता है कि "यहां की गुफा ही नागलोक का प्रवेश द्वार है". कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां देवदूत रहा करते थे. लालचवश कुछ लोगों ने देवदूतों से उनके सोने-चांदी के बर्तन छीनने का प्रयास किया. तब वे सर्प रूप धारण कर इसी गुफा से पाताल लोक चले गए. इस शिवधाम में महाशिवरात्रि के अवसर पर हर साल श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है.

यह भी पढें: nag panchami 2022: नागपंचमी पर जानिए नागलोक की कहानी

महाभारत में भी नागवंश का जिक्र: छत्तीसगढ़ के नागलोक का महाभारत काल से भी कनेक्शन (Nagvanshi Governance) है. बताया जाता है कि द्वापर युग में जब भीम छोटे थे. तब दुर्योधन ने धोखे से उन्हें जहरीली खीर खिला दी थी. तब भीम अचेत होकर बहते हुए इव नदी में आ गए थे. जहां पर नदी में स्नान कर रही नाग कन्याओं की नजर उन पर पड़ी. वे भीम को इलाज के लिए नागलोक ले गईं. बताया जाता है कि भीम के स्वस्थ हो जाने पर वे नागलोक के राजा से मिले और "नागराज" ने भीम को हजार हाथियों का बल दिया. इसी के चलते भीम अधिक बलशाली हो गए थे.

रायपुर: छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल क्षेत्र के रूप में प्रचलित है. लेकिन इसका इतिहास बहुत सी पौराणिक कथाओं से भरा पड़ा है. भगवान राम के ननिहाल होने के चलते इसे कौशल प्रदेश के रूप में ख्याति मिली. नागों से छत्तीसगढ़ का एक खास नाता रहा है. छत्तीसगढ़ नागों के पौराणिक कथाओं (history snake mythology) से भरा पड़ा है. यहां कभी नाग शासकों (serpent rulers) का राज हुआ करता था. इस संबंध में कुछ प्रमाणित जानकारियां धार्मिक ग्रंथों में भी मौजूद है.

नागवंशी राजाओं का इतिहास: यहां के राजा भोगावती पुर्वरेश्वर की उपाधि धारण करते थे. इस संबंध में कुछ प्रमाणित जानकारियां धार्मिक ग्रंथों में भी मौजूद है. दरसअल, छठवीं शताब्दी (6th century) से लेकर वर्ष 1314 तक नाग वंशी राजाओं का शासन (Nagvanshi Governance) था. नागवंशी शिव उपासक (Nagvanshi Shiva worshiper) थे. इसलिए उन्होंने उमा-माहेश्वर, गणेश, कार्तिकेय, स्कंधमाता और शिवलिंग की जगह जगह स्थापना छत्तीसगढ़ में करवाए थे. आज भी इन प्राचीन मूर्तियों में नागवंशी राजाओं की छाप नाग-सर्प के अंकित चित्र के तौर पर देखने को मिलती है. प्राचीन बस्तर के नाग शासक सोमेश्वर देव प्रथम के लिए भी भोगावती स्वामी का उल्लेख हुआ है.

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नाग मंदिरों का इतिहास: बस्तर में आज भी नागों की बहुत सी प्रतिमायें एवं मंदिर मिलते है, जो कि तत्कालीन छिंदक नागों के शासन में निर्मित माने (Nagvanshi Governance) गये है. बस्तर में नागवंशी शासनकाल में नागवंशी राजाओं ने भगवान शिव- पार्वती, गणेश और अन्य देवी देवताओं की सैकड़ों मूर्तियां बनाई. उनके द्वारा बनाए हुए मंदिर भी यहां मौजूद हैं. इनमें से मुख्यरूप से दंतेवाड़ा के ढोलकाल और बारसूर में गणेश मंदिर, भैरमगढ़ में शिव-पार्वती की मूर्ति, नारायण पाल में भगवान विष्णु की मूर्ति है. इसके अलावा मधोता, केशरपाल, चिपका, नागफनी, इंजरम, मावलीभाटा बस्तर संभाग के ऐसे अनेकों गांव हैं, जहां नागवंशी राजाओं ने मंदिरों का निर्माण किया है.

इन प्राचीन मंदिरों और यहां स्थापित मूर्तियों में खास बात यह है कि इन सभी जगहों पर नाग-सर्प का चित्र अंकित है. चाहे ढोलकाल की गणेश की प्राचीन प्रतिमा हो या फिर बारसूर में स्थित भगवान गणेश की प्रतिमा. इन दोनों ही प्रतिमा में खास बात यह है कि दोनों ही मूर्ति के पेट के हिस्से में नाग-सर्प दिखाई देता है.

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यहां आज भी हैं 'नागों के वंशज': जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर बसा नागफनी गांव नागवंशियों से जुड़ा हुआ है. गांव का नाम नागफनी है और यहां रहने वाले अधिकतर लोगों का सरनेम भी नाग (nagpanchmi 2022) ही है. यहां के निवासी अपने आप को नागों का वंशज मानते हैं. पूरे गांव में एक ही मंदिर है, जो नाग देवता का है. यहां के लोगों का सांपों से विशेष लगाव है. नागपंचमी पर यहां विशाल मेला लगता है. जिसमें आसपास के 36 गांवों के लोग देवी-देवताओं की पूजा करने शामिल होते हैं.

आदिवासियों के गोत्र और उपजाति भी 'नाग': नागवंशी काल के प्राचीन गांव बारसूर के नजदीक है, जो कभी बस्तर के नागवंशी शासकों की राजधानी (Nagvanshi Governance) था. नाग वंश का शासन बस्तर में दसवीं से तेरहवीं शताब्दी तक बताया जाता है. बस्तर आदिवासियों के गोत्र जीव-जंतु पर आधारित होते हैं. यह स्वयं को आदिवासियों की नाग उपजाति मानते हैं. बस्तर में आदिवासियों की मुरिया और हल्बा जाति के सदस्य भी नाग उपनाम लगाते हैं. बस्तर की कई जनजातियों का गोत्र भी नाग है. इसलिए वे अपना उपनाम नाग लिखते हैं. विशेषकर हल्बा, मुरिया, महारा समुदाय के लोग. उनका कहना है कि वे नाग देवता को कुल देवता के रूप में भी पूजते हैं. इस समुदाय के लोग शरीर पर सर्प का गोदना भी गुदवाते हैं.

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छत्तीसगढ़ का 'नागलोक': छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के फरसाबहार तहसील और इससे लगे इलाकों को नागलोक (nag panchmi 2022) के नाम से जाना जाता है. ओडिशा से जोड़ने वाली स्टेट हाईवे के किनारे स्थित तपकरा और इसके आसपास के गांव में किंग कोबरा, करैत जैसे विषैल सर्प पाए जाते हैं. इसलिए इस इलाके को नागलोक कहा जाता है. सर्प के जानकार और रेस्क्यू करने वाले केसर हुसैन का कहना है कि "जशपुर क्षेत्र में बहुतायत मात्रा में सांप पाए जाते हैं. लगभग छत्तीसगढ़ में जितने भी प्रजाति के सांप पाए जाते हैं. उनमें से जशपुर में 80 फीसदी सांपों की प्रजाति जशपुर में मौजूद है.

नागलोक की कहानी क्षेत्र में है प्रचलित: इसके साथ ही इस क्षेत्र में एक किवदंती भी चली (history snake mythology) आ रही है. जिसके मुताबिक क्षेत्र में एक गुफा है, जहां नागलोक का प्रवेश द्वार होने की बात कही जाती है. फरसाबहार तहसील में एक स्थान है कोतेबीरा धाम. यहां स्थित गुफा के संबंध में मान्यता है कि "यहां की गुफा ही नागलोक का प्रवेश द्वार है". कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां देवदूत रहा करते थे. लालचवश कुछ लोगों ने देवदूतों से उनके सोने-चांदी के बर्तन छीनने का प्रयास किया. तब वे सर्प रूप धारण कर इसी गुफा से पाताल लोक चले गए. इस शिवधाम में महाशिवरात्रि के अवसर पर हर साल श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है.

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महाभारत में भी नागवंश का जिक्र: छत्तीसगढ़ के नागलोक का महाभारत काल से भी कनेक्शन (Nagvanshi Governance) है. बताया जाता है कि द्वापर युग में जब भीम छोटे थे. तब दुर्योधन ने धोखे से उन्हें जहरीली खीर खिला दी थी. तब भीम अचेत होकर बहते हुए इव नदी में आ गए थे. जहां पर नदी में स्नान कर रही नाग कन्याओं की नजर उन पर पड़ी. वे भीम को इलाज के लिए नागलोक ले गईं. बताया जाता है कि भीम के स्वस्थ हो जाने पर वे नागलोक के राजा से मिले और "नागराज" ने भीम को हजार हाथियों का बल दिया. इसी के चलते भीम अधिक बलशाली हो गए थे.

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