रायपुर:छत्तीसगढ़ के ऐसे इतिहासकार जिन्होंने अपनी निजी लाइब्रेरी में ऐसी बेशकीमती चीजों का संग्रह किया है. जिसके करण बहुत से शोधार्थी को शोध करने में काफी मदद भी मिलती है. ऐसे इतिहासकार का नाम रामेंद्रनाथ मिश्र हैं. जिनके निजी पुस्तकालय में ब्रिटिश जमाने के 200 साल पुराने गजट, पांडुलिपि, ताम्रपत्र, के साथ साथ कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के द्वारा लिखे गए हस्तलिखित पत्रिकाएं और प्राचीन काल के सिक्के मौजूद हैं. ईटीवी भारत ने इस दुर्लभ लाइब्रेरी और उनके द्वारा एकत्र किए गए ऐतिहासिक चीजों को लेकर इतिहासकार आचार्य रामेंद्रनाथ मिश्र से खास बातचीत की
इसका उद्देश्य है कि छत्तीसगढ़ के बारे में जितने भी लोग रिसर्च कर रहे हैं उन को अधिक से अधिक सहयोग प्रदान करना. छत्तीसगढ़ के बारे में और छत्तीसगढ़ के इतिहास के बारे में ज्यादा से ज्यादा खोज करना. अभी तक इस लाइब्रेरी की मदद से 100 से अधिक लोगों ने पीएचडी की है और 500 से अधिक लघु शोधार्थियों ने इस लाइब्रेरी का लाभ लिया है, और इस लाइब्रेरी में देश के बड़े-बड़े इतिहासकार भी आ चुके हैं. जिन्होंने इसे देखकर काफी प्रसन्नता भी व्यक्त की है.
देश के सबसे पुराने सिक्के भी मौजूद :आचार्य रामेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि इस लाइब्रेरी में प्राचीन सिक्के भी मौजूद हैं. देश में सबसे प्राचीन सिक्का आहत सिक्के को कहा जाता है. आहत सिक्के से लेकर कुमार गुप्त के सिक्के, सल्तनत काल और ब्रिटिश काल के अकबर के समय के सिक्के, इस तरह से सिक्का, पांडुलिपि, ताम्रपत्र,ताड़पत्र भी लाइब्रेरी में मौजूद है और जो ताड़पत्र मौजूद हैं. वह उड़िया भाषा में है. उसका भी अध्ययन किया जा रहा है,,
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कई नेताओं के पत्र भी हैं मौजूद: इतिहासकार रामेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि, उनकी लाइब्रेरी में ब्रिटिशकाल के पुराने गजट भी मौजूद हैं. इसके साथ ही कई नेताओं की चिट्ठी और पत्र भी मौजूद हैं इसके अलावा सिंधिया राजघराने का सनद और भोसले राजा के समय की सनद, रानी दुर्गावती के समय की पांडुलिपिया मौजूद हैं. जिसे संग्रह करके रखा गया है और देश विदेश से जो स्कॉलर यहां आते हैं वह इसका लाभ लेते हैं. प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ की जितने भी रिपोर्ट अंग्रेजी में निकाले गए. वह सारी चीजें यहां उपलब्ध हैं. उन्होंने कहा कि, मैं स्पष्ट रूप से यह कह सकता हूं कि छत्तीसगढ़ की कोई भी यूनिवर्सिटी और लाइब्रेरी या संग्रहालय में इतनी पुरानी पांडुलिपिया ताड़पत्र मौजूद नहीं होगी. जो यहां मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि हमने इसे संजोने का प्रयास किया ताकि आने वाली पीढ़ी को मदद मिल सके.
सवाल- कितने सालों से आप यह सारी चीजें संग्रह कर रहे हैं
जवाब- बचपन से ही पुरानी चीजों को संग्रह करने का मेरा शौक रहा है और संग्रह के अलावा भी कई प्रमुख स्थानों की खोज की गई है. जब मैं आरंग महाविद्यालय में व्याख्याता बना, 1969 से 1971 के बीच में पदस्थापना के दौरान माता कौशल्या मंदिर का अन्वेषण करके जनता के सामने लाया गया था. 50 साल से अधिक इन सभी चीजों में मेरी व्यक्तिगत रुचि रही है और प्राचीन और ऐतिहासिक चीजों को संग्रहित करने के लिए मैं कार्य करता रहा हूं. इसके पहले मेरे पिताजी और दादा जी को जो चीजें मिली वह भी मुझे प्राप्त हुई. इसके अलावा मैंने जबलपुर के मंडला में छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में जहां पांडुलिपि मिली उसे संग्रहित किया है. एक सच यह भी है कि इन सभी को जनता के सामने लाया जाए. क्योंकि हर व्यक्ति और शोधार्थी मेरे पास नहीं आ सकता है. बहुत से पांडुलिपि या और ऐतिहासिक चीजों को ट्रांसलेट करके जनता के बीच में लाया गया है.
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सवाल- आपने जो लाइब्रेरी तैयार की है. यहां कौन आ सकते हैं और इसका लाभ कैसे ले सकते हैं.
जवाब- अभी तक जितने भी स्कॉलर आए हैं सभी कि मैं मदद करता रहा हूं. आज तक कभी भी मैंने किसी से शुल्क नहीं लिया है. मैं भी एक ग्रामीण परिवेश से आया हूं और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण लोगों की स्थिति मैं समझता हूं. छत्तीसगढ़ के संबंधित जो भी स्कॉलर किसी भी विषय पर काम कर रहे हैं वह मेरे पास आ कर जरूर सलाह लेते हैं और मैं उनका मार्गदर्शन करता हूं. कोई भी जिज्ञासु छात्र को छत्तीसगढ़ी में जानकारी चाहिए वह मेरे पास आ सकता है.