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Hearing loss in stray cattle आवारा मवेशियों में सुनने की क्षमता हुई कम, शोध में खुलासा - कचरा बन गया मवेशियों का खाना

Side Effects of Noise Pollution on Animals: देश सहित प्रदेश में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण का असर अब इंसानों के साथ ही जानवरों पर पड़ रहा है. खासकर ध्वनि प्रदूषण का असर आवारा मवेशी या स्ट्रीट कैटल पर कहीं ज्यादा हुआ है. एक शोध के मुताबिक ध्वनि प्रदूषण की वजह से बेसहारा मवेशियों के सुनने की क्षमता कम हो गई है.

Hearing loss in stray cattle
आवारा मवेशियों में सुनने की क्षमता हुई कम
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Published : Feb 7, 2023, 5:26 PM IST

Updated : Mar 4, 2023, 1:54 PM IST

आवारा मवेशियों में सुनने की क्षमता हुई कम

रायपुर: पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के जैव विज्ञान अध्ययन शाला के शोधार्थी भूपेंद्र कुमार साहू ने मवेशियों पर शहरीकरण का प्रभाव विषय पर साल 2016 से साल 2021 तक रिसर्च किया है. रायपुर शहर के इलाकों में घूमने वाले पशुओं खासकर गायों के व्यवहार पर पड़ रहे असर पर अध्ययन किया है. अकेले रायपुर शहर में ही लगभग 35000 गाय इधर उधर घूम रहीं हैं. भूपेंद्र के मुताबिक ''मवेशियों के व्यवहार, खानपान और शारीरिक क्षमता में परिवर्तन आया है. मवेशियों की सुनने की क्षमता भी कम हो गई है.'' पशु चिकित्सक भी मानते हैं कि लगातार हो रहे ध्वनि प्रदूषण का असर पशुओं के सुनने की क्षमता पर भी पड़ रहा है.

क्या है पशु चिकित्सकों का कहना : पशु चिकित्सक डॉक्टर संजय जैन का कहना है कि ''जो गाड़ियां सड़कों से गुजरती है, उनकी आवाज और हॉर्न नॉर्मल समय पर भी सुनाई देते हैं. जब आवारा पशु सड़कों पर बैठे रहते हैं तो मवेशियों को हटाने के लिए लोग हॉर्न का इस्तेमाल करते हैं तो भी पशुओं को यह सामान्य आवाज लगती है. उनको दोनों ध्वनि के बीच में कोई फर्क समझ नहीं आता है. इसलिए आपको लगेगा उनकी सुनने की क्षमता कम हो गई है या उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है. इसलिए ध्वनि प्रदूषण ना केवल मनुष्य के लिए बल्कि पशु पक्षियों के लिए भी घातक है.''

कचरा बन गया मवेशियों का खाना : भूपेंद्र कुमार साहू ने यह भी बताया कि ''बेसहारा मवेशी घास नहीं मिलने पर कचरा खाते हैं. कचरे में प्लास्टिक समेत दूसरी चीजें पशुओं के लिए जहर के समान है. इसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. मवेशियों का दूध भी संक्रमित हो रहा है, जिसे पीने से इंसान भी प्रभावित हो रहे हैं. इंसानों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो रही है. संक्रमित दूध पीने से कैंसर जैसी कई गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है. सामान्यतः मवेशी 30 डिग्री सेल्सियस तापमान होने पर भी छाया खोजने लगते हैं. धूप की वजह से वे परेशान हो जाते हैं. वहीं बेसहारा मवेशी शहरों में 40 से 45 डिग्री तापमान होने के बावजूद धूप में सड़कों पर खड़े रहते हैं.''

किस विधि से किया गया शोध : भूपेंद्र के मुताबिक ''इस शोध के लिए फोटोग्राफी कैप्चर रिकैप्चर विधि का इस्तेमाल किया गया है. जिसके तहत बरसात, ठंडी, गर्मी तीनों ऋतु में मवेशियों के व्यवहार को जानने की कोशिश की गई है. 24 घंटे में अलग अलग समय चार बार जानवरों के पास जाना, उनके व्यवहार का बारीकी से अध्ययन करना और उसके बाद उसका निष्कर्ष निकालना शामिल है. इस अध्ययन के बाद पता चला कि ज्यादातर मवेशी खुली जगह में कचरा फेंकने की वजह से सड़कों पर आ जाते हैं. यदि खुले में कचरा फेंकना बंद कर दें तो मवेशियों के सड़कों पर आने की समस्या से कुछ हद तक छुटकारा मिल सकता है.''

ये भी पढ़ें- दिग्विजय महाविद्यालय में सेमिनार का आयोजन

भूपेंद्र के शोध में यह बात भी सामने आई कि बेसहारा मवेशी शाम के समय सड़कों पर खड़े रहना ज्यादा पसंद करते हैं. रात के समय में विश्राम अवस्था में चले जाते हैं. सुबह 11:30 से खाने पीने के लिए यह मवेशी ज्यादा भटकते हैं. दोपहर 2 से लेकर 3 बजे तक सड़कों पर इनकी सक्रियता बढ़ जाती है. इस समय मवेशी ज्यादा चलना फिरना पसंद करते हैं. 38 फीसदी मवेशियों का सामना प्रतिदिन लोगों से होता है. इससे सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं. 44 प्रतिशत बेसहारा मवेशी आपस में, 16 प्रतिशत कुत्तों और छह प्रतिशत अन्य पशुओं के संपर्क में रहते हैं. मवेशियों का बदलता व्यवहार लोगों के लिए खतरे का संकेत है.

आवारा मवेशियों में सुनने की क्षमता हुई कम

रायपुर: पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के जैव विज्ञान अध्ययन शाला के शोधार्थी भूपेंद्र कुमार साहू ने मवेशियों पर शहरीकरण का प्रभाव विषय पर साल 2016 से साल 2021 तक रिसर्च किया है. रायपुर शहर के इलाकों में घूमने वाले पशुओं खासकर गायों के व्यवहार पर पड़ रहे असर पर अध्ययन किया है. अकेले रायपुर शहर में ही लगभग 35000 गाय इधर उधर घूम रहीं हैं. भूपेंद्र के मुताबिक ''मवेशियों के व्यवहार, खानपान और शारीरिक क्षमता में परिवर्तन आया है. मवेशियों की सुनने की क्षमता भी कम हो गई है.'' पशु चिकित्सक भी मानते हैं कि लगातार हो रहे ध्वनि प्रदूषण का असर पशुओं के सुनने की क्षमता पर भी पड़ रहा है.

क्या है पशु चिकित्सकों का कहना : पशु चिकित्सक डॉक्टर संजय जैन का कहना है कि ''जो गाड़ियां सड़कों से गुजरती है, उनकी आवाज और हॉर्न नॉर्मल समय पर भी सुनाई देते हैं. जब आवारा पशु सड़कों पर बैठे रहते हैं तो मवेशियों को हटाने के लिए लोग हॉर्न का इस्तेमाल करते हैं तो भी पशुओं को यह सामान्य आवाज लगती है. उनको दोनों ध्वनि के बीच में कोई फर्क समझ नहीं आता है. इसलिए आपको लगेगा उनकी सुनने की क्षमता कम हो गई है या उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है. इसलिए ध्वनि प्रदूषण ना केवल मनुष्य के लिए बल्कि पशु पक्षियों के लिए भी घातक है.''

कचरा बन गया मवेशियों का खाना : भूपेंद्र कुमार साहू ने यह भी बताया कि ''बेसहारा मवेशी घास नहीं मिलने पर कचरा खाते हैं. कचरे में प्लास्टिक समेत दूसरी चीजें पशुओं के लिए जहर के समान है. इसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. मवेशियों का दूध भी संक्रमित हो रहा है, जिसे पीने से इंसान भी प्रभावित हो रहे हैं. इंसानों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो रही है. संक्रमित दूध पीने से कैंसर जैसी कई गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है. सामान्यतः मवेशी 30 डिग्री सेल्सियस तापमान होने पर भी छाया खोजने लगते हैं. धूप की वजह से वे परेशान हो जाते हैं. वहीं बेसहारा मवेशी शहरों में 40 से 45 डिग्री तापमान होने के बावजूद धूप में सड़कों पर खड़े रहते हैं.''

किस विधि से किया गया शोध : भूपेंद्र के मुताबिक ''इस शोध के लिए फोटोग्राफी कैप्चर रिकैप्चर विधि का इस्तेमाल किया गया है. जिसके तहत बरसात, ठंडी, गर्मी तीनों ऋतु में मवेशियों के व्यवहार को जानने की कोशिश की गई है. 24 घंटे में अलग अलग समय चार बार जानवरों के पास जाना, उनके व्यवहार का बारीकी से अध्ययन करना और उसके बाद उसका निष्कर्ष निकालना शामिल है. इस अध्ययन के बाद पता चला कि ज्यादातर मवेशी खुली जगह में कचरा फेंकने की वजह से सड़कों पर आ जाते हैं. यदि खुले में कचरा फेंकना बंद कर दें तो मवेशियों के सड़कों पर आने की समस्या से कुछ हद तक छुटकारा मिल सकता है.''

ये भी पढ़ें- दिग्विजय महाविद्यालय में सेमिनार का आयोजन

भूपेंद्र के शोध में यह बात भी सामने आई कि बेसहारा मवेशी शाम के समय सड़कों पर खड़े रहना ज्यादा पसंद करते हैं. रात के समय में विश्राम अवस्था में चले जाते हैं. सुबह 11:30 से खाने पीने के लिए यह मवेशी ज्यादा भटकते हैं. दोपहर 2 से लेकर 3 बजे तक सड़कों पर इनकी सक्रियता बढ़ जाती है. इस समय मवेशी ज्यादा चलना फिरना पसंद करते हैं. 38 फीसदी मवेशियों का सामना प्रतिदिन लोगों से होता है. इससे सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं. 44 प्रतिशत बेसहारा मवेशी आपस में, 16 प्रतिशत कुत्तों और छह प्रतिशत अन्य पशुओं के संपर्क में रहते हैं. मवेशियों का बदलता व्यवहार लोगों के लिए खतरे का संकेत है.

Last Updated : Mar 4, 2023, 1:54 PM IST
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