रायपुर: इस साल हरतालिका तीज शुक्रवार 21 अगस्त को मनाया जाएगा. छत्तीसगढ़ में हरतालिका तीज को 'तीजा' के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए 24 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. मान्यताओं के अनुसार अखंड सौभाग्य और मनचाहे वर के लिए हरितालिका तीज का व्रत किया जाता है. भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया तिथि को हरितालिका तीज का व्रत किया जाता है. इस व्रत को कुवांरी कन्याए अपने लिए मनचाहा पति पाने और विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए करती हैं. इस व्रत में शाम के बाद चार पहर की पूजा करते हुए रातभर भजन कीर्तन और जागरण किया जाता है.
ज्योतिषाचार्य पंडित अरुणेश शर्मा के अनुसार 21 अगस्त के दिन सुबह 5:53 से सुबह 8:29 तक यानी 2 घंटे 36 मिनट का अच्छा मुहूर्त है. ज्योतिषाचार्य के मुताबिक शाम को 6:54 से रात्रि 9:06 तक पूजा की जा सकती है. दूसरे दिन सुबह सूर्योदय के समय व्रत समाप्त होता है. तब महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं और अन्न-जल ग्रहण करती हैं.
इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. एक चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश, पार्वती और उनकी सहेली की प्रतिमा बनाई जाती है. पूजा-पाठ के बाद महिलाएं रातभर भजन कीर्तन करती हैं. ऐसा कहा जाता है कि हर पहर को इनकी पूजा करते हुए बेलपत्र, आम पत्र, चंपक पत्र और केवड़ा अर्पण करते हुए आरती करनी चाहिए.
हरतालिका तीज की धार्मिक मान्यता
- भगवान शिव को पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तप किया था.
- भादो माह की शुक्ल तृतीया के दिन माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की.
- इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया.
- उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और माता पार्वती को मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया, तभी से महिलाएं सौभाग्यवती का वर पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं.
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छत्तीसगढ़ में किस तरह मनाया जाता है तीजा
- छत्तीसगढ़ में तीज के एक दिन पहले शाम को करू-भात खाने की परंपरा है. इस दिन तीज उपवास रखने वाली महिलाएं रात में करेला और चावल खाती हैं और इसके बाद वे कुछ नहीं खाती.
- सोने से पहले चिरचिरा या महुआ की डाली से दातुन करने का भी रिवाज है.
- महिलाएं और लड़कियां सुबह से उठकर स्नानकर भगवान शिव की उपासना में जुट जाती हैं. इसके बाद दिनभर भजन-कीर्तन में गुजारा जाता है.
- शिव मंदिरों में खास तौर पर फूलों का झूला बनाया जाता है, जिसे फुलहरा भी कहा जाता है.
- रात में भगवान शिव की पूजा की जाती है और भजन कर जागरण किया जाता है.
- दूसरे दिन सुबह भगवान शिव की आरती के बाद महिलाएं अपना व्रत खत्म करती हैं.