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जयंती पर विशेष : छत्तीसगढ़ी नाटक और लोककला की धड़कन थे "हबीब" तनवीर

रायपुर समेत पूरे देश ने बुधवार को रंगमंच के नटसम्राट और विख्यात फनकार हबीब तनवीर की जयंती मनाई. हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ की जड़ों से जुड़े हुए थे, तभी तो नाटक का कोर्स करने ब्रिटेन जाने के बाद भी उन्हें छत्तीसगढ़ की माटी ने स्वदेश बुला लिया. उनकी वजह से ही छत्तीसगढ़ी नाटक और लोकगीत को विश्व प्रसिद्धि मिली.

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Published : Sep 1, 2021, 9:00 PM IST

Updated : Sep 1, 2021, 10:18 PM IST

Habib Tanveer
हबीब तनवीर

रायपुर : छत्तीसगढ़ की माटी में जन्मे और उसकी खुशबू को पूरी दुनिया में बिखेरने वाले महान रंगकर्मी हबीब तनवीर (habib tanvir) सही मायनों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ग्लोबल एंबेसडर थे. उनका मानना था कि थिएटर में अपने मुल्क और अपने समाज की जिंदगी अपने मुल्क की शैली में ही पेश करना चाहिए. जिससे बाहर के लोग उसे देखकर हमारी संस्कृति और हमारे लाइफ स्टाइल को समझ सकें. वे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण जीवन शैली को एडिम्बरा जैसे नाट्य समारोह तक लेकर गए. बुधवार को रायपुर समेत पूरे देश में रंगमंच (Stage) के नटसम्राट और विख्यात फनकार हबीब तनवीर की जयंती मनाई गई. हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ की जड़ों से किस तरह जुड़े थे, इसे समझने के लिए ईटीवी भारत ने उनके रंगकर्म पर रिसर्च करने वाली डॉक्टर कल्पना मिश्रा से बात की. वे कैसे छत्तीसगढ़ी नाटक और लोककला के "हबीब" बन गए, इस पर उन्होंने खुलकर बात की.

हबीब तनवीर

नाटक का कोर्स करने ब्रिटेन गए, अपनी भाषा छत्तीसगढ़ खींच लाई

हबीब तनवीर का जन्म रायपुर में ही हुआ है. उनकी स्कूली शिक्षा यहीं कालीबाड़ी में हुई. और सबसे पहले उनका रंगमंच से जो परिचय हुआ, वह रायपुर में ही हुआ. उनके माता-पिता और बुआ सब रायपुर में ही रहते थे. इसलिए रायपुर से उनका पूरा जुड़ाव रहा. बाद में वह पढ़ाई के लिए नागपुर गए, फिर वहीं से ब्रिटेन चले गए. जब उन्होंने नाटक का कोर्स शुरू किया, तब उनको लगा कि यह वह चीज नहीं है जो सीखने आए हैं.

क्योंकि वहां रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामा में ज्यादा ध्यान इंग्लिश के प्रनंसीएशन पर दिया जाता था. उनको लगा कि जितने समय में अंग्रेजी सीखने और उसके उच्चारण को दुरुस्त करने में लगाएंगे, उतने में अपने लोग और भाषा जो सरलता से अपने मुख से निकलती है हिंदी या छत्तीसगढ़ी उसमें मैं एक्टिंग करूंगा. उन्होंने कोर्स अधूरा छोड़ा और छत्तीसगढ़ के गांव से कलाकार को ढूंढा. दिल्ली में नया थियेटर की स्थापना की और वहां जो भी नाट्यकला थी, उनको अपनी भाषा में करना शुरू किया.

छत्तीसगढ़ी लोकगीत को पूरे विश्व में किया प्रसिद्ध

जब हबीब तनवीर ने रंगकर्म शुरू किया था, तब छत्तीसगढ़ को विश्व में इतनी प्रसिद्धि प्राप्त नहीं थी. लेकिन उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य को विदेश में जाकर मंचित किया. जब वह एडिम्बरा गए और चरणदास चोर का मंचन किया, तब सभी राष्ट्रों में प्रथम स्थान हासिल किया. इसी तरह उनके करीब सभी देशों में मंचन हुए, जिसमें आगरा बाजार जैसे कई मंचन शामिल थे. उनका छत्तीसगढ़ी नाटक चरणदास दूरदर्शन पर भी टेलीकास्ट हुआ था.

उनके नाटक में दिखती थी छत्तीसगढ़ी झलक

वे जब छत्तीसगढ़ी नाटक प्रेजेंट करते थे, उनके नाटक की पृष्ठभूमि में छत्तीसगढ़ी लोक गीत, छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य, छत्तीसगढ़ी बाजार की झलक होती थी. इतना ही नहीं नाचा में जिस तरीके से छत्तीसगढ़ी में व्यंग्य होता है, वह सारी चीजें समाहित होती थीं. पूरे विश्व में उनके नाटक से छत्तीसगढ़ी लोकगीत प्रसिद्ध हुआ. छत्तीसगढ़ी लोकगीत को पहचान दिलाने का श्रेय उनको ही जाता है.


हबीब तनवीर ने छत्तीसगढ़ के गांव को विश्व पटल तक पहुंचाया

डॉक्टर कल्पना मिश्रा ने बताया कि हबीब तनवीर के लोकनाट्य पर मैंने "लोक के हबीब" नाम से किताब लिखी है. क्योंकि हबीब का जो पूरा रंगकर्म है, वह पूरे लोक आधारित है. जैसे कि उनका बहुत प्रसिद्ध नाटक है "बहादुर कलारी". वह भिलाई दुर्ग राजनंदगांव के बीच के लोक कथा पर आधारित है. उसी तरह से उसका प्रस्तुतीकरण है. गीत उसी तरीके के हैं. कैसे बहुएं धान कोड़ने जा रही हैं, उस पर गीत है. किस तरह से सास-बहू को संदेशा दे रही है, उस पर गीत है. किस तरह से गंगरेल के राजा से उसका प्रेम हो रहा है, यह दिखता है. यह जो किताब है जितने भी उनके नाटक हैं, जितने भी लोक कर्म हैं जो उनके नाटकों की विशेषता है, शास्त्रीय परंपराओं को पकड़ने के बजाय उन्होंने अलौकिक परंपरा को पकड़ा. जो कहीं भी टूटी नहीं है. यह सारी चीजें इस किताब में मैंने लिखी हैं.

रायपुर : छत्तीसगढ़ की माटी में जन्मे और उसकी खुशबू को पूरी दुनिया में बिखेरने वाले महान रंगकर्मी हबीब तनवीर (habib tanvir) सही मायनों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ग्लोबल एंबेसडर थे. उनका मानना था कि थिएटर में अपने मुल्क और अपने समाज की जिंदगी अपने मुल्क की शैली में ही पेश करना चाहिए. जिससे बाहर के लोग उसे देखकर हमारी संस्कृति और हमारे लाइफ स्टाइल को समझ सकें. वे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण जीवन शैली को एडिम्बरा जैसे नाट्य समारोह तक लेकर गए. बुधवार को रायपुर समेत पूरे देश में रंगमंच (Stage) के नटसम्राट और विख्यात फनकार हबीब तनवीर की जयंती मनाई गई. हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ की जड़ों से किस तरह जुड़े थे, इसे समझने के लिए ईटीवी भारत ने उनके रंगकर्म पर रिसर्च करने वाली डॉक्टर कल्पना मिश्रा से बात की. वे कैसे छत्तीसगढ़ी नाटक और लोककला के "हबीब" बन गए, इस पर उन्होंने खुलकर बात की.

हबीब तनवीर

नाटक का कोर्स करने ब्रिटेन गए, अपनी भाषा छत्तीसगढ़ खींच लाई

हबीब तनवीर का जन्म रायपुर में ही हुआ है. उनकी स्कूली शिक्षा यहीं कालीबाड़ी में हुई. और सबसे पहले उनका रंगमंच से जो परिचय हुआ, वह रायपुर में ही हुआ. उनके माता-पिता और बुआ सब रायपुर में ही रहते थे. इसलिए रायपुर से उनका पूरा जुड़ाव रहा. बाद में वह पढ़ाई के लिए नागपुर गए, फिर वहीं से ब्रिटेन चले गए. जब उन्होंने नाटक का कोर्स शुरू किया, तब उनको लगा कि यह वह चीज नहीं है जो सीखने आए हैं.

क्योंकि वहां रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामा में ज्यादा ध्यान इंग्लिश के प्रनंसीएशन पर दिया जाता था. उनको लगा कि जितने समय में अंग्रेजी सीखने और उसके उच्चारण को दुरुस्त करने में लगाएंगे, उतने में अपने लोग और भाषा जो सरलता से अपने मुख से निकलती है हिंदी या छत्तीसगढ़ी उसमें मैं एक्टिंग करूंगा. उन्होंने कोर्स अधूरा छोड़ा और छत्तीसगढ़ के गांव से कलाकार को ढूंढा. दिल्ली में नया थियेटर की स्थापना की और वहां जो भी नाट्यकला थी, उनको अपनी भाषा में करना शुरू किया.

छत्तीसगढ़ी लोकगीत को पूरे विश्व में किया प्रसिद्ध

जब हबीब तनवीर ने रंगकर्म शुरू किया था, तब छत्तीसगढ़ को विश्व में इतनी प्रसिद्धि प्राप्त नहीं थी. लेकिन उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य को विदेश में जाकर मंचित किया. जब वह एडिम्बरा गए और चरणदास चोर का मंचन किया, तब सभी राष्ट्रों में प्रथम स्थान हासिल किया. इसी तरह उनके करीब सभी देशों में मंचन हुए, जिसमें आगरा बाजार जैसे कई मंचन शामिल थे. उनका छत्तीसगढ़ी नाटक चरणदास दूरदर्शन पर भी टेलीकास्ट हुआ था.

उनके नाटक में दिखती थी छत्तीसगढ़ी झलक

वे जब छत्तीसगढ़ी नाटक प्रेजेंट करते थे, उनके नाटक की पृष्ठभूमि में छत्तीसगढ़ी लोक गीत, छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य, छत्तीसगढ़ी बाजार की झलक होती थी. इतना ही नहीं नाचा में जिस तरीके से छत्तीसगढ़ी में व्यंग्य होता है, वह सारी चीजें समाहित होती थीं. पूरे विश्व में उनके नाटक से छत्तीसगढ़ी लोकगीत प्रसिद्ध हुआ. छत्तीसगढ़ी लोकगीत को पहचान दिलाने का श्रेय उनको ही जाता है.


हबीब तनवीर ने छत्तीसगढ़ के गांव को विश्व पटल तक पहुंचाया

डॉक्टर कल्पना मिश्रा ने बताया कि हबीब तनवीर के लोकनाट्य पर मैंने "लोक के हबीब" नाम से किताब लिखी है. क्योंकि हबीब का जो पूरा रंगकर्म है, वह पूरे लोक आधारित है. जैसे कि उनका बहुत प्रसिद्ध नाटक है "बहादुर कलारी". वह भिलाई दुर्ग राजनंदगांव के बीच के लोक कथा पर आधारित है. उसी तरह से उसका प्रस्तुतीकरण है. गीत उसी तरीके के हैं. कैसे बहुएं धान कोड़ने जा रही हैं, उस पर गीत है. किस तरह से सास-बहू को संदेशा दे रही है, उस पर गीत है. किस तरह से गंगरेल के राजा से उसका प्रेम हो रहा है, यह दिखता है. यह जो किताब है जितने भी उनके नाटक हैं, जितने भी लोक कर्म हैं जो उनके नाटकों की विशेषता है, शास्त्रीय परंपराओं को पकड़ने के बजाय उन्होंने अलौकिक परंपरा को पकड़ा. जो कहीं भी टूटी नहीं है. यह सारी चीजें इस किताब में मैंने लिखी हैं.

Last Updated : Sep 1, 2021, 10:18 PM IST
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