सरगुजा: गुरु वो होता है जो अपने शिष्य को ज्ञान देता है. सही और गलत का अंतर बताता है. एक स्कूल के शिक्षक भी गुरु होते हैं. लेकिन धर्मिक, अलौकिक और आध्यात्मिक ज्ञान के लिये धर्म गुरु बनाने की परंपरा है. तमाम साधनाओं और वेद पुराण के अध्ययन के बाद एक इंसान ही किसी का गुरु बनता है. लेकिन वह अपने जीवन के अनुभव और धार्मिक ज्ञान से शिष्य का मार्ग प्रशस्त करता है.
महान संतों ने बताया गुरु का महत्व: महान संत कबीर दास ने लिखा कि "हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर" मतलब, हरि अगर रूठ जायें, तो गुरु ठिकाना दे देंगे. लेकिन अगर गुरु रूठ जायें, तो कहीं भी ठिकाना नहीं मिलेगा." श्री राम चरितमानस में गोस्वमी तुलसी दास ने लिखा "बंदउं गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि. महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर" अर्थात् गुरू मनुष्य रूप में नारायण ही हैं. मैं उनके चरण कमलों की वन्दना करता हूं. जैसे सूर्य के निकलने पर अन्धेरा नष्ट हो जाता है, वैसे ही गुरू के वचनों से मोह रूपी अन्धकार का नाश हो जाता है.
गुरु से दीक्षा लेने का महत्व: ज्योतिषाचार्य संजय तिवारी कहते हैं "जब तक आप गुरु से दीक्षा नहीं लेते हैं, तब तक आपके द्वारा किये गए समस्त धार्मिक कार्य निष्फल हैं. कन्या दान, शिवालय निर्माण, देवालय निर्माण, कथा पूजन, व्रत, दान, तालाब निर्माण, कुआं निर्माण ऐसे कई कार्यों से मिलने वाला पुण्य लाभ आपको नहीं मिलता है. अगर आपने गुरु नहीं बनाया है. ये सम्पूर्ण सृष्टी ही गुरु से चलती है. बिना गुरु के मृत्यु के बाद मोक्ष भी नहीं मिल सकता."
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गुरु से दीक्षा लेने का उम्र: भगवान ने भी गुरु का स्थान सबसे पहला रखा है. भगवान से पहले गुरु का महत्व बताया गया है. क्योंकि ईश्वर तो कण कण में है, लेकिन ईश्वर से हमारा परिचय या साक्षात्कार गुरु कराते हैं. इसलिये सनातन धर्म को मनाने वाले हर शख्स को गुरु बनाना अनिवार्य है. बच्चे की पाठशाला जाने की उम्र में ही उसे गुरु दीक्षा दिलाई जा सकती है. न्यूनतम 5 वर्ष से अधिकतम 12 वर्ष तक बच्चों को दीक्षा ले लेनी चाहिये.