रायपुर / हैदराबाद : प्रदोष व्रत को रखने से पूर्व अपने अंतर्मन में इस व्रत का उद्देश्य निर्धारित किया जाता है. अपनी मनोकामना को व्रत से पहले सोच लेने पर मनोकामना की पूर्ति की इच्छा और ऊर्जा के साथ प्रदोष व्रत रखा जाता है. इसके बाद ही श्रद्धापूर्वक प्रदोष व्रत की शुरूआत होती है. इस व्रत में भक्त निराहार रहकर भोलेनाथ का पूजन करते हैं.
प्रदोष व्रत की पूजा विधि : प्रदोष व्रत की पूजा में सुबह-सवेरे उठकर नहाया जाता है. स्वच्छ वस्त्र पहनकर व्रत का प्रण लेते हैं. इसके बाद भगवान शिव के मंदिर में जाकर या फिर घर में भोलेनाथ की पूजा की जाती है. प्रदोष काल में पूजा करने के बाद भोलेनाथ की आरती होती है.भक्त दिनभर में भगवान शिव के भजन सुनते हैं .इसके बाद कथा भी पढ़ते हैं. पूजा के समय भोलेनाथ को जो भोग लगाया गया है उसे प्रसाद के रूप में व्रत रखने वाले व्यक्ति का वितरित करना बेहद शुभ माना जाता है.
भगवान शिव बरसाएंगे कृपा : प्रदोष व्रत में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. माना जाता है कि जो जातक भोलेनाथ का व्रत रख उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं उनपर भोलेनाथ कृपा बरसाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने पर पापों से मुक्ति मिलती है. जानिए गुरु प्रदोष व्रत पर कितनी अवधि तक व्रत रखने के बाद उद्यापन करना चाहिए.
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कैसे करें उद्यापन : उद्यापन की बात करें तो इस व्रत को 11 या फिर 26 बार रखने के बाद उद्यापन कर सकते हैं. व्रत को त्रयोदिशी तिथि पर ही रखा जाता है.11 या 26 त्रयोदिशी तिथि के बाद विधि-विधान से उद्यापन किया जाता है. उद्यापन किसी भी त्रयोदिशी तिथि पर हो सकता है लेकिन खासतौर से माघ माह में उद्यापन करने की विशेष मान्यता होती है. इसे अत्यंत लाभकारी भी माना जाता है.