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Groundwater Exploitation: छत्तीसगढ़ में भूजल दोहन से बढ़ा खतरा, कड़ी कार्रवाई न होने से डेंजर जोन में प्रदेश के कई हिस्से

छत्तीसगढ़ में भूजल दोहन से बड़ा नुकसान हो रहा है. तकरीबन 2200 लोगों को शो कॉज नोटिस दिया जा चुका है. हालांकि कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. छत्तीसगढ़ के कई हिस्से डेजर जोन में हैं.

groundwater exploitation In Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में भूजल दोहन
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Published : Mar 23, 2023, 8:39 PM IST

रायपुर: भूजल दोहन के लिए केंद्र सरकार ने कई सख्त नियम लागू किए हैं, लेकिन निर्माण करने वाली एजेंसियां इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर रही है. छत्तीसगढ़ में पिछले 3 साल में महज 6 फीसद संस्थानों ने ही नियमों के दायरे में रहकर निर्माण करने की अनुमति ली है. इसमें एक सरकारी एजेंसी शामिल है. भूमिगत जल को इससे बड़ा नुकसान पहुंचा है. वाटर लेवल के लगातार गिरने से राज्य के कई हिस्से डेंजर जोन में हैं. रायपुर के धरसींवा और इससे लगे फिंगेश्वर ब्लॉक के कई क्षेत्र सेमी क्रिटिकल लिस्ट में शामिल हैं. भूजल बोर्ड की ओर से अब तक 2200 से अधिक लोगों को शो कॉज नोटिस दिया जा चुका है, लेकिन ठोस कार्रवाई के आभाव में दोहन करने वालों के हौसले बुलंद हैं.

पंजीकृत के लिए 6 हजार आवेदन: केंद्रीय भूजल बोर्ड की ओर से लागू किए गए नियमों का पालन करने को महज छह हजार आवेदन अनुमति के लिए पंजीकृत है. खास बात यह है कि भूजल बोर्ड के पास सरकारी एजेंसियों में महज सीएसआईडीसी ने ही जल दोहन के लिए अनुमति ली है. जबकि आरडीए, हाउसिंग बोर्ड, नगर निगम या फिर नगर पालिकाओं की ओर से किसी ने भी अनुमति नहीं ली.

पूरे छत्तीसगढ़ में लागू है नियम: भूजल वैज्ञानिक के पानीग्रही के मुताबिक "साल 2020 से लागू किए गए भूजल बोर्ड के नियमों के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्चर, इंडस्ट्रियल और माइनिंग इन तीन श्रेणियों में निर्माण एजेंसियों को भूजल बोर्ड से परमिशन लेना जरूरी है. इन तीन श्रेणियों में से पहला इंफ्रास्ट्रक्चर है, जिसके अंतर्गत स्कूल मॉल, व्यवसायिक काॅम्प्लेक्स, अस्पताल, सरकारी कॉलोनी या सरकारी काॅम्प्लेक्स आते हैं. दूसरी श्रेणी इंडस्ट्रियल की है, जिसमें सभी फैक्ट्री वाले स्थल और औद्योगिक क्षेत्र आते हैं. तीसरा माइनिंग है, जिसमें सभी खनन वाले स्थान शामिल है. लेकिन ये बिना परमिशन के ही भूमिगत जल का दोहन कर रहे हैं. ऐसे लोगों के लिए कार्रवाई का प्रावधान है."

यह भी पढ़ें: Chhattisgarh budget session: सीएसआर फंड के मुद्दे पर भाजपा का वॉकआउट

भूजल बोर्ड के पास नहीं कोई टीम: छत्तीसगढ़ में केंद्रीय एजेंसी के लागू किए गए नियमों के खिलाफ जाकर निर्माण करने वालों पर कार्रवाई के लिए कोई सिस्टम नहीं है. बोर्ड के पास इतने मेंबर ही नहीं है कि मौके पर जांच पड़ताल और जुर्माना किया जा सके. भूजल बोर्ड के नियमों के अनुसार 2 से 3 लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन अब तक एक भी रुपये का जुर्माना नहीं वसूला जा सका है.

नोटिस देकर अनुमति लेने का दबाव:भूजल बोर्ड की ओर से निर्माण एजेंसियों को मेल के जरिए नोटिस थमाया जा रहा है. परमिशन के लिए जिन्होंने अर्जियां लगायी है. उन पर जुर्माना कार्रवाई के लिए पत्र जारी किया जा रहा है. जुर्माना रकम देने के बाद ही भूजल बोर्ड की ओर से निर्माण एजेंसियों को परमिशन दिया जा रहा.

क्या कहते हैं अधिकारी: केंद्रीय भूमिगत जल के वैज्ञानिक सिद्धांत साहू कहते हैं कि स्टाफ कम होने से कार्रवाई धीमी है, लेकिन संबंधित एजेंसियों और संस्थानों को नोटिस थमाया जा रहा है. अभी तक 2200 से ज्यादा जगहों पर परमिशन के लिए नोटिस दिया जा चुका है. सभी संस्थानों के लिए नियम लागू है. नियम का पालन कराया जाएगा.

फैक्ट फाइल:

  • 3 सालों में प्रदेश भर में परमिशन लेने के लिए महज 6000 अर्जियां.
  • केंद्रीय एजेंसी के जुर्माने का हिसाब अब करोड़ों से अधिक.
  • 12 हजार से अधिक फैक्ट्रियां कर रही जल दोहन.
  • 6000 से ज्यादा शैक्षणिक संस्था में बोर से हो रहा जल दोहन.
  • 7000 से ज्यादा बड़े अस्पताल मॉल में भूमिगत जल का हो रहा प्रयोग.

यूं हो रहा नुकसान:

  • फैक्ट्रियों में भूमिगत जल दोहन हो रहा है.
  • वाटर लेवल किस हिस्से में कैसा है ये पता लगाना मुश्किल हो रहा है.
  • भूमिगत जल में रसायन जांच नहीं की गई है.
  • वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है.
  • संस्थानों में 1 दिन में कितना लीटर पानी खर्च होता है, ये बता पाना मुश्किल है.

रायपुर: भूजल दोहन के लिए केंद्र सरकार ने कई सख्त नियम लागू किए हैं, लेकिन निर्माण करने वाली एजेंसियां इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर रही है. छत्तीसगढ़ में पिछले 3 साल में महज 6 फीसद संस्थानों ने ही नियमों के दायरे में रहकर निर्माण करने की अनुमति ली है. इसमें एक सरकारी एजेंसी शामिल है. भूमिगत जल को इससे बड़ा नुकसान पहुंचा है. वाटर लेवल के लगातार गिरने से राज्य के कई हिस्से डेंजर जोन में हैं. रायपुर के धरसींवा और इससे लगे फिंगेश्वर ब्लॉक के कई क्षेत्र सेमी क्रिटिकल लिस्ट में शामिल हैं. भूजल बोर्ड की ओर से अब तक 2200 से अधिक लोगों को शो कॉज नोटिस दिया जा चुका है, लेकिन ठोस कार्रवाई के आभाव में दोहन करने वालों के हौसले बुलंद हैं.

पंजीकृत के लिए 6 हजार आवेदन: केंद्रीय भूजल बोर्ड की ओर से लागू किए गए नियमों का पालन करने को महज छह हजार आवेदन अनुमति के लिए पंजीकृत है. खास बात यह है कि भूजल बोर्ड के पास सरकारी एजेंसियों में महज सीएसआईडीसी ने ही जल दोहन के लिए अनुमति ली है. जबकि आरडीए, हाउसिंग बोर्ड, नगर निगम या फिर नगर पालिकाओं की ओर से किसी ने भी अनुमति नहीं ली.

पूरे छत्तीसगढ़ में लागू है नियम: भूजल वैज्ञानिक के पानीग्रही के मुताबिक "साल 2020 से लागू किए गए भूजल बोर्ड के नियमों के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्चर, इंडस्ट्रियल और माइनिंग इन तीन श्रेणियों में निर्माण एजेंसियों को भूजल बोर्ड से परमिशन लेना जरूरी है. इन तीन श्रेणियों में से पहला इंफ्रास्ट्रक्चर है, जिसके अंतर्गत स्कूल मॉल, व्यवसायिक काॅम्प्लेक्स, अस्पताल, सरकारी कॉलोनी या सरकारी काॅम्प्लेक्स आते हैं. दूसरी श्रेणी इंडस्ट्रियल की है, जिसमें सभी फैक्ट्री वाले स्थल और औद्योगिक क्षेत्र आते हैं. तीसरा माइनिंग है, जिसमें सभी खनन वाले स्थान शामिल है. लेकिन ये बिना परमिशन के ही भूमिगत जल का दोहन कर रहे हैं. ऐसे लोगों के लिए कार्रवाई का प्रावधान है."

यह भी पढ़ें: Chhattisgarh budget session: सीएसआर फंड के मुद्दे पर भाजपा का वॉकआउट

भूजल बोर्ड के पास नहीं कोई टीम: छत्तीसगढ़ में केंद्रीय एजेंसी के लागू किए गए नियमों के खिलाफ जाकर निर्माण करने वालों पर कार्रवाई के लिए कोई सिस्टम नहीं है. बोर्ड के पास इतने मेंबर ही नहीं है कि मौके पर जांच पड़ताल और जुर्माना किया जा सके. भूजल बोर्ड के नियमों के अनुसार 2 से 3 लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन अब तक एक भी रुपये का जुर्माना नहीं वसूला जा सका है.

नोटिस देकर अनुमति लेने का दबाव:भूजल बोर्ड की ओर से निर्माण एजेंसियों को मेल के जरिए नोटिस थमाया जा रहा है. परमिशन के लिए जिन्होंने अर्जियां लगायी है. उन पर जुर्माना कार्रवाई के लिए पत्र जारी किया जा रहा है. जुर्माना रकम देने के बाद ही भूजल बोर्ड की ओर से निर्माण एजेंसियों को परमिशन दिया जा रहा.

क्या कहते हैं अधिकारी: केंद्रीय भूमिगत जल के वैज्ञानिक सिद्धांत साहू कहते हैं कि स्टाफ कम होने से कार्रवाई धीमी है, लेकिन संबंधित एजेंसियों और संस्थानों को नोटिस थमाया जा रहा है. अभी तक 2200 से ज्यादा जगहों पर परमिशन के लिए नोटिस दिया जा चुका है. सभी संस्थानों के लिए नियम लागू है. नियम का पालन कराया जाएगा.

फैक्ट फाइल:

  • 3 सालों में प्रदेश भर में परमिशन लेने के लिए महज 6000 अर्जियां.
  • केंद्रीय एजेंसी के जुर्माने का हिसाब अब करोड़ों से अधिक.
  • 12 हजार से अधिक फैक्ट्रियां कर रही जल दोहन.
  • 6000 से ज्यादा शैक्षणिक संस्था में बोर से हो रहा जल दोहन.
  • 7000 से ज्यादा बड़े अस्पताल मॉल में भूमिगत जल का हो रहा प्रयोग.

यूं हो रहा नुकसान:

  • फैक्ट्रियों में भूमिगत जल दोहन हो रहा है.
  • वाटर लेवल किस हिस्से में कैसा है ये पता लगाना मुश्किल हो रहा है.
  • भूमिगत जल में रसायन जांच नहीं की गई है.
  • वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है.
  • संस्थानों में 1 दिन में कितना लीटर पानी खर्च होता है, ये बता पाना मुश्किल है.
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