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नवरात्र का सातवां दिन, ऐसे करनी है मां कालरात्रि की पूजा

नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होगी. मां ने ये अवतार राक्षसों का संहार करने के लिए लिया था.

देवी कालरात्रि की पूजा
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Published : Oct 5, 2019, 12:05 AM IST

रायपुरः आज शारदीय नवरात्र का सांतवां दिन है. नवरात्र के सातवें दिन यानि सप्तमी को मां कालरात्रि की साधना-अराधना की जाती है. मां कालरात्रि को देवी के व्यापक स्वरूप काली, महाकाली, भद्रकाली, चामुंड़ा. चडी जैसे कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है. मां ने ये स्वरूप राक्षसों, भूत, प्रेत का नाश करने को लिया था. मां का ये स्वरूप काले रंग और बिखरे बालों वाला है.

नवरात्र का सातवां दिन

बताया जाता है कि मां ने ये स्वरूप रक्तबीज नामक राक्षस का वध करने के लिए लिया था. रक्तबीज एक ऐसा राक्षस था जिसके खून की बूंद जमीन पर गिरते ही एक और नया राक्षस जन्म लेता था. उसके आतंक से तीनों लोग परेशान हो गया था. देवी- देवताओं के लिए भी उसका सामना करना मुश्किल हो गया था. तब मां कालरात्रि ने ये स्वरूप धारण किया और रक्तबीज का वध किया.

ऐसा है मां का स्वरूप
मां के इस स्वरूप में उनके तीन नेत्र है. मां कालरात्रि के गले में नरमुंड की माला है. मां गर्दभ (गधे) की सवारी करती हैं. मां के चार हाथ हैं. एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा है.

इस मंत्र का करें जाप
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय त्वं सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तु ते।।

पूजा का महत्व
कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है. जो जीवन में बेहतर कार्य करते हैं सुख में कार्य करते हैं संत जन की सेवा करते हैं उनके जीवन में माता सुख लाती है. इस दिन माता की विशेष साधना-आराधना की जाती है. मां की पूजा से मृत्यु का डर नहीं सताता. देवी का यह रूप ऋद्धि- सिद्धि देने करने वाला है.

रायपुरः आज शारदीय नवरात्र का सांतवां दिन है. नवरात्र के सातवें दिन यानि सप्तमी को मां कालरात्रि की साधना-अराधना की जाती है. मां कालरात्रि को देवी के व्यापक स्वरूप काली, महाकाली, भद्रकाली, चामुंड़ा. चडी जैसे कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है. मां ने ये स्वरूप राक्षसों, भूत, प्रेत का नाश करने को लिया था. मां का ये स्वरूप काले रंग और बिखरे बालों वाला है.

नवरात्र का सातवां दिन

बताया जाता है कि मां ने ये स्वरूप रक्तबीज नामक राक्षस का वध करने के लिए लिया था. रक्तबीज एक ऐसा राक्षस था जिसके खून की बूंद जमीन पर गिरते ही एक और नया राक्षस जन्म लेता था. उसके आतंक से तीनों लोग परेशान हो गया था. देवी- देवताओं के लिए भी उसका सामना करना मुश्किल हो गया था. तब मां कालरात्रि ने ये स्वरूप धारण किया और रक्तबीज का वध किया.

ऐसा है मां का स्वरूप
मां के इस स्वरूप में उनके तीन नेत्र है. मां कालरात्रि के गले में नरमुंड की माला है. मां गर्दभ (गधे) की सवारी करती हैं. मां के चार हाथ हैं. एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा है.

इस मंत्र का करें जाप
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय त्वं सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तु ते।।

पूजा का महत्व
कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है. जो जीवन में बेहतर कार्य करते हैं सुख में कार्य करते हैं संत जन की सेवा करते हैं उनके जीवन में माता सुख लाती है. इस दिन माता की विशेष साधना-आराधना की जाती है. मां की पूजा से मृत्यु का डर नहीं सताता. देवी का यह रूप ऋद्धि- सिद्धि देने करने वाला है.

Intro:शारदीय नवरात्र सप्तमी मां कालरात्रि की अर्चना पूजा की जाती है।।
मां कालरात्रि ने रक्तबीज का संघार किया था।। कहा जाता है कि रक्तबीज ऐसा राक्षस था जिसके रक्त की बूंद जमीन पर गिरती थी तो क्यों ना एक रक्तबीज राक्षस नया जन्म लेता था।।
रखतबीज के वध करने के लिए देवी ने कालरात्रि का रूप लिया।।


Body:कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है।। जो जीवन में बेहतर कार्य करते हैं सुख में कार्य करते हैं संत जन की सेवा करते हैं उनके जीवन में माता सुख लाती है।।

मां कालरात्रि का स्वरूप तंत्र साधना से जुड़े लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है इस दिन माता की विशेष साधना आराधना की जाती है ताकि विषय विशेष प्रयासों से समाज और लोक कल्याण किया जा सके।।



बाईट
पं अरुणेश शर्मा
ज्योतिषाचार्य



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