रायपुरः आज शारदीय नवरात्र का सांतवां दिन है. नवरात्र के सातवें दिन यानि सप्तमी को मां कालरात्रि की साधना-अराधना की जाती है. मां कालरात्रि को देवी के व्यापक स्वरूप काली, महाकाली, भद्रकाली, चामुंड़ा. चडी जैसे कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है. मां ने ये स्वरूप राक्षसों, भूत, प्रेत का नाश करने को लिया था. मां का ये स्वरूप काले रंग और बिखरे बालों वाला है.
बताया जाता है कि मां ने ये स्वरूप रक्तबीज नामक राक्षस का वध करने के लिए लिया था. रक्तबीज एक ऐसा राक्षस था जिसके खून की बूंद जमीन पर गिरते ही एक और नया राक्षस जन्म लेता था. उसके आतंक से तीनों लोग परेशान हो गया था. देवी- देवताओं के लिए भी उसका सामना करना मुश्किल हो गया था. तब मां कालरात्रि ने ये स्वरूप धारण किया और रक्तबीज का वध किया.
ऐसा है मां का स्वरूप
मां के इस स्वरूप में उनके तीन नेत्र है. मां कालरात्रि के गले में नरमुंड की माला है. मां गर्दभ (गधे) की सवारी करती हैं. मां के चार हाथ हैं. एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा है.
इस मंत्र का करें जाप
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय त्वं सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तु ते।।
पूजा का महत्व
कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है. जो जीवन में बेहतर कार्य करते हैं सुख में कार्य करते हैं संत जन की सेवा करते हैं उनके जीवन में माता सुख लाती है. इस दिन माता की विशेष साधना-आराधना की जाती है. मां की पूजा से मृत्यु का डर नहीं सताता. देवी का यह रूप ऋद्धि- सिद्धि देने करने वाला है.