रायपुर : समलेश्वरी मंदिर में भक्त अपनी मन्नत और मनोकामना को लेकर पहुंचते हैं. खास तौर पर मंगलवार गुरुवार और शनिवार के दिन माता के दर्शन करने श्रद्धालु दूरदराज से भी यहां पर आते हैं. यह मंदिर आज से 1400 साल पहले हैहयवंशी राजवंश के शासनकाल में बनाया गया था. यह मंदिर पूरी तरह से तांत्रिक विधि से निर्मित है. इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि चैत्र नवरात्रि के एक महीना पहले और एक महीना बाद तक सूर्य की पहली किरण मां समलेश्वरी के चरणों को आज भी प्रणाम करती है.
किसने बनवाया मंदिर: समलेश्वरी मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि "मां समलेश्वरी मूल रूप से संबलपुर ओडिशा क्षेत्र की कुलदेवी है. हैहयवंशी राजाओं के शासनकाल में इस मंदिर का निर्माण पूरी तरह से तांत्रिक विधि से किया गया था और तंत्र साधना के लिए इस मंदिर का निर्माण हुआ था.'' उन्होंने बताया कि '' हैहयवंशी राजा संबलपुर में मां समलेश्वरी की पूजा आराधना से प्रभावित होने के बाद राजधानी में मां समलेश्वरी का मंदिर बनवाया था. प्राचीन समय का जीवंत उदाहरण आज भी इस मंदिर में देखने को मिलता है. चैत्र नवरात्र की एक महीना पहले और चैत्र नवरात्रि के एक महीना बाद सूर्य की पहली किरण मां समलेश्वरी के चरणों को स्पर्श करती है."
सूर्यास्त के समय माता के चरण छूती है किरणें : समलेश्वरी मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि "इसी तरह मां महामाया के गर्भगृह तक सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें माता के चरणों को स्पर्श करती है. समलेश्वरी माता की पूजा आराधना विशेष पर्व और त्यौहार के साथ ही सामान्य दिनों में मंगल गुरु और शनिवार के दिन होती है. भक्त अपनी मनोकामना और मन्नत लेकर यहां पहुंचते हैं, और माता उन भक्तों की झोली में अपना आशीर्वाद देती हैं."
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तीन देवियों की एक साथ होती है पूजा : समलेश्वरी मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला बताते हैं कि "हैहयवंशीय राजाओं के शासनकाल में निर्मित यह मंदिर काफी प्राचीन और ऐतिहासिक उन्होंने बताया कि 1400 साल पहले इस मंदिर का निर्माण हैहयवंशीय राजाओं के द्वारा कराया गया था. मां महामाया हैहयवंशीय राजाओं की कुलदेवी है. राजाओं के द्वारा इन्ही मंदिरों में तंत्र मंत्र साधना और आराधना करते थे. पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि वर्तमान समय में मां महालक्ष्मी मां महामाया और मां समलेश्वरी तीनों की पूजा आराधना एक साथ की जाती है."