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Gajanan Madhav Muktibodh Birthday Special: हिन्दी कविता के केन्द्र में स्थापित गजानन माधव मुक्तिबोध - Writer Ramesh Anupam

गजानन माधव मुक्तिबोध (Gajanan Madhav Muktibodh) हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि(Major poets of hindi literature), आलोचक, कहानीकार तथा उपन्यासकार होने के साथ हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर और इस युग के महान कवि (great poet) थे. गजानन माधव मुक्तिबोध (Gajanan Madhav Muktibodh) की कर्मभूमि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की संस्कारधानी राजनांदगांव (Rajnandgaon) रही. वहीं, गजानन माधव मुक्तिबोध की जयंती (Gajanan Madhav Muktibodh Birthday) के मौके पर ईटीवी भारत ने साहित्यकार रमेश अनुपम (Writer Ramesh Anupam) से खास बातचीत की...

Gajanan Madhav Muktibodh Birthday Special
गजानन माधव मुक्तिबोध की जयंती
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Published : Nov 12, 2021, 10:33 PM IST

Updated : Nov 12, 2021, 10:43 PM IST

रायपुरः प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीज के सेतू माने जाने वाले गजानन माधव मुक्तिबोध (Gajanan Madhav Muktibodh) की आज जयंती है. हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि(major poets of hindi literature), आलोचक, कहानीकार तथा उपन्यासकार गजानन माधव मुक्तिबोध हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर और इस युग के महान कवि (great poet)है. गजानन माधव मुक्तिबोध की कर्मभूमि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh)की संस्कारधानी राजनांदगांव (Rajnandgaon) रही. उनकी स्मृतियां अभी भी इस शहर में मौजूद हैं. वहीं, गजानन माधव मुक्तिबोध की जयंती (Gajanan Madhav Muktibodh Birthday) के मौके पर ईटीवी भारत ने साहित्यकार रमेश अनुपम (Writer Ramesh Anupam)से खास बातचीत की.

हिन्दी कविता के केन्द्र में स्थापित गजानन माधव मुक्तिबोध

वो हिन्दी कविता के केन्द्र में स्थापित

बातचीत के दौरान साहित्यकार रमेश अनुपम ने बताया कि गजानन माधव मुक्तिबोध नई कविता के कवि माने जाते हैं. पिछले 6 दशक से अधिक समय हो गए हैं. वे हिंदी कविता के केंद्र में स्थापित हैं. मुक्तिबोध जी के बाद जो साहित्य में पीढ़ी आती है. उन्होंने मुक्तिबोध से बहुत कुछ लिया और सीखा है. मुक्तिबोध का हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है.अनुपम ने बताया कि मुक्तिबोध एक ऐसे व्यक्तित्व है जिन्होंने आलोचना, कविता में कई कीर्तिमान रचे है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कवि सम्मेलन मे हुए शामिल, कुमार विश्वास ने बनाया माहौल

कविता "अंधेरे में " हिंदी की महान कविता

रमेश अनुपम बताते हैं कि गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता 'आशांका के दीप अंधेरे में' बाद में जो "अंधेरे में" के नाम से प्रकाशित हुई, उसे आज भी हिंदी की महान कविता की श्रेणी में रखा जाता है. यह माना जाता है जब इन्होंने यह कविता लिखी, तब वो भविष्य की ओर देख रहे थे. आने वाले समय में इस देश का भविष्य क्या होगा, किस तरह तानाशाही और नाजीवाद सर उठाएगा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का प्रयास किया जाएगा. "अंधेरे में" कविता की पंक्ति है जिसमें मुक्तिबोध कहते हैं 'अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे. अलग अलग भाषा में साहित्य के जो बुद्धिजीवी हैं.वे आज के समय में अभिव्यक्ति के खतरे उठा रहे. इसे सबसे पहले मुक्तिबोध जी ने 1964 में अपनी मृत्यु से पहले इंगित किया था. आज के समय में भी उनकी है कविता प्रासंगिक बनी हुई है.

आर्थिक तंगी से जूझ रहे मुक्तिबोध को मिला राजनांदगांव में सहारा

आगे उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध जीवन भर नौकरी की तलाश में लगे रहे. उनकी आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय रही. शांता मुक्तिबोध जी ने मुझे कई बार बताया था कि मुक्तिबोध जी अपने परिवार, अपने बच्चों और अच्छे जीवन यापन को लेकर बेहद परेशान रहते थे. गजानन मुक्तिबोध को 1954 में राजनांदगांव के शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी नही मिली होती, तो उन्हें परिवार चला पाना बहुत मुश्किल होता.

आर्थिक परेशानियों से मुक्त होकर मुक्तिबोध ने लिखी चिरंजीवी रचनाएं

उन्होंने कहा कि सन 1954 में शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में प्राध्यापक की नौकरी मिलने के बाद, उनका आर्थिक पहलू ठीक हो गया. मुक्तिबोध ने आर्थिक परेशानी से मुक्त होने के बाद 1954 से लेकर 1964 तक लेखन कार्य किया, और कई रचनाएं भी लिखी.

छत्तीसगढ़ ने दिया हिंदी के बड़े कवि को आश्रय

साहित्यकार रमेश अनुपम ने कहा कि मुक्तिबोध के जीवन में छत्तीसगढ़ का बड़ा योगदान है. छत्तीसगढ़ ने हिंदी के बड़े कवि गजानन माधव मुक्तिबोध को आश्रय दिया. उस समय राजनांदगांव में रहने वाले किशोरी लाल शुक्ल, शरद कोठारी जैसे लोगो ने मुक्तिबोध के परिवार के रूप में काम किया. मुक्तिबोध जी को कभी यह नहीं लगा कि राजनांदगांव में वे अकेले हैं. उनका कोई परिवार नहीं है. छत्तीसगढ़ एक तरह से उनका परिवार था.

ये है मुक्तिबोध का संक्षिप्त परिचय

हिंदी की आधुनिक कविता एवं समीक्षा के सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवंबर 1917 को श्योपुर, ग्वालियर मध्यप्रदेश में हुआ था. उनके पिता माधव राव एक निर्भीक एवं दबंग व्यक्तित्व के पुलिस अधिकारी थे. माता पार्वती मुक्तिबोध एक समृद्ध परिवार की धार्मिक स्वाभिमानी एवं भावुक महिला थी. गजानन माधव मुक्तिबोध की प्राइमरी और मिडिल स्कूल की शिक्षा देश के अलग-अलग स्थानों में हुई. अंततः दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में प्राध्यापक नियुक्त होकर अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का हिंदी जगत को उपहार दिया.

रायपुरः प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीज के सेतू माने जाने वाले गजानन माधव मुक्तिबोध (Gajanan Madhav Muktibodh) की आज जयंती है. हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि(major poets of hindi literature), आलोचक, कहानीकार तथा उपन्यासकार गजानन माधव मुक्तिबोध हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर और इस युग के महान कवि (great poet)है. गजानन माधव मुक्तिबोध की कर्मभूमि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh)की संस्कारधानी राजनांदगांव (Rajnandgaon) रही. उनकी स्मृतियां अभी भी इस शहर में मौजूद हैं. वहीं, गजानन माधव मुक्तिबोध की जयंती (Gajanan Madhav Muktibodh Birthday) के मौके पर ईटीवी भारत ने साहित्यकार रमेश अनुपम (Writer Ramesh Anupam)से खास बातचीत की.

हिन्दी कविता के केन्द्र में स्थापित गजानन माधव मुक्तिबोध

वो हिन्दी कविता के केन्द्र में स्थापित

बातचीत के दौरान साहित्यकार रमेश अनुपम ने बताया कि गजानन माधव मुक्तिबोध नई कविता के कवि माने जाते हैं. पिछले 6 दशक से अधिक समय हो गए हैं. वे हिंदी कविता के केंद्र में स्थापित हैं. मुक्तिबोध जी के बाद जो साहित्य में पीढ़ी आती है. उन्होंने मुक्तिबोध से बहुत कुछ लिया और सीखा है. मुक्तिबोध का हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है.अनुपम ने बताया कि मुक्तिबोध एक ऐसे व्यक्तित्व है जिन्होंने आलोचना, कविता में कई कीर्तिमान रचे है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कवि सम्मेलन मे हुए शामिल, कुमार विश्वास ने बनाया माहौल

कविता "अंधेरे में " हिंदी की महान कविता

रमेश अनुपम बताते हैं कि गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता 'आशांका के दीप अंधेरे में' बाद में जो "अंधेरे में" के नाम से प्रकाशित हुई, उसे आज भी हिंदी की महान कविता की श्रेणी में रखा जाता है. यह माना जाता है जब इन्होंने यह कविता लिखी, तब वो भविष्य की ओर देख रहे थे. आने वाले समय में इस देश का भविष्य क्या होगा, किस तरह तानाशाही और नाजीवाद सर उठाएगा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का प्रयास किया जाएगा. "अंधेरे में" कविता की पंक्ति है जिसमें मुक्तिबोध कहते हैं 'अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे. अलग अलग भाषा में साहित्य के जो बुद्धिजीवी हैं.वे आज के समय में अभिव्यक्ति के खतरे उठा रहे. इसे सबसे पहले मुक्तिबोध जी ने 1964 में अपनी मृत्यु से पहले इंगित किया था. आज के समय में भी उनकी है कविता प्रासंगिक बनी हुई है.

आर्थिक तंगी से जूझ रहे मुक्तिबोध को मिला राजनांदगांव में सहारा

आगे उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध जीवन भर नौकरी की तलाश में लगे रहे. उनकी आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय रही. शांता मुक्तिबोध जी ने मुझे कई बार बताया था कि मुक्तिबोध जी अपने परिवार, अपने बच्चों और अच्छे जीवन यापन को लेकर बेहद परेशान रहते थे. गजानन मुक्तिबोध को 1954 में राजनांदगांव के शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी नही मिली होती, तो उन्हें परिवार चला पाना बहुत मुश्किल होता.

आर्थिक परेशानियों से मुक्त होकर मुक्तिबोध ने लिखी चिरंजीवी रचनाएं

उन्होंने कहा कि सन 1954 में शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में प्राध्यापक की नौकरी मिलने के बाद, उनका आर्थिक पहलू ठीक हो गया. मुक्तिबोध ने आर्थिक परेशानी से मुक्त होने के बाद 1954 से लेकर 1964 तक लेखन कार्य किया, और कई रचनाएं भी लिखी.

छत्तीसगढ़ ने दिया हिंदी के बड़े कवि को आश्रय

साहित्यकार रमेश अनुपम ने कहा कि मुक्तिबोध के जीवन में छत्तीसगढ़ का बड़ा योगदान है. छत्तीसगढ़ ने हिंदी के बड़े कवि गजानन माधव मुक्तिबोध को आश्रय दिया. उस समय राजनांदगांव में रहने वाले किशोरी लाल शुक्ल, शरद कोठारी जैसे लोगो ने मुक्तिबोध के परिवार के रूप में काम किया. मुक्तिबोध जी को कभी यह नहीं लगा कि राजनांदगांव में वे अकेले हैं. उनका कोई परिवार नहीं है. छत्तीसगढ़ एक तरह से उनका परिवार था.

ये है मुक्तिबोध का संक्षिप्त परिचय

हिंदी की आधुनिक कविता एवं समीक्षा के सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवंबर 1917 को श्योपुर, ग्वालियर मध्यप्रदेश में हुआ था. उनके पिता माधव राव एक निर्भीक एवं दबंग व्यक्तित्व के पुलिस अधिकारी थे. माता पार्वती मुक्तिबोध एक समृद्ध परिवार की धार्मिक स्वाभिमानी एवं भावुक महिला थी. गजानन माधव मुक्तिबोध की प्राइमरी और मिडिल स्कूल की शिक्षा देश के अलग-अलग स्थानों में हुई. अंततः दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में प्राध्यापक नियुक्त होकर अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का हिंदी जगत को उपहार दिया.

Last Updated : Nov 12, 2021, 10:43 PM IST
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