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SPECIAL: पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त ने लॉकडाउन के बीच लिखीं दो किताबें, अकेलेपन का किया सदुपयोग

करीब चार महीने से कोरोना के कारण पूरे देश में भयावह स्थिति बनी हुई. कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लॉकडाउन लगाया गया और रायपुर में ये प्रक्रिया अब भी जारी है. इस दौरान देखा गया कि डिप्रेशन के मामले तेजी से बढ़े हैं. लोग मानसिक तनाव और अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं. वहीं पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील त्रिवेदी ने कोरोना संक्रमण के दौरान न सिर्फ अपने आप को सुरक्षित रखा, बल्कि लॉकडाउन के दौरान मिले खाली समय का सदुपयोग करते हुए दो पुस्तकें भी लिख डालीं.

two important books amid lockdown
लॉकडाउन का सही उपयोग
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Published : Aug 5, 2020, 11:19 AM IST

रायपुर: कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से काफी भयावह स्थिति बनी हुई है. ज्यादातर लोग कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के तनाव से उबर नहीं पा रहे हैं. वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इस तनाव को मात देते हुए अपनी मंजिल की ओर निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं. जो काम वे लोग आम दिनों में समय के अभाव के कारण नहीं कर पाए थे, उस काम को अब लॉकडाउन के दौरान मिले समय में कर रहे हैं.

ऐसी ही एक खास शख्सियत हैं छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त और भारतीय परिसीमन आयोग के पूर्व सदस्य डॉ. सुशील त्रिवेदी. जिन्होंने कोरोना संक्रमण के दौरान न सिर्फ अपने आप को सुरक्षित रखा, बल्कि लॉकडाउन के दौरान मिले खाली समय का सदुपयोग कर दो पुस्तकें भी लिख डालीं. इतना ही नहीं डॉ. सुशील त्रिवेदी घर बैठे विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वेबीनार में भी शामिल हुए और अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचाया. लॉकडाउन के दौरान किए गए कामों को डॉ. सुशील त्रिवेदी ने ईटीवी भारत के साथ साझा किया है.

लॉकडाउन का सही उपयोग

सुशील त्रिवेदी ने बताया कि वे आम दिनों में इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें पढ़ने-लिखने का समय ही नहीं मिल पाता था. विभिन्न कार्यक्रमों, सेमिनारों सहित अन्य कामों में व्यस्त होने के कारण ऐसे कई काम थे, जिन्हें वे नहीं कर पा रहे थे, लेकिन लॉकडाउन में उन्होंने अपने इस समय का पूरी तरह से सदुपयोग किया और इस बीच दो किताबें भी लिख डालीं. ऐसा नहीं है कि उन्होंने पहली बार पुस्तक लिखी है, इससे पहले भी उनकी कई बुक्स प्रकाशित हो चुकी हैं. लॉकडाउन के बीच जिस तरह से उन्होंने दो पुस्तकों के लेखन का कार्य तेजी संपन्न किया वह खास है. यह पुस्तकें छपने के लिए प्रकाशक के पास भेजी गई हैं और उनके कवर पेज का काम भी लगभग पूरा हो गया है. सुशील त्रिवेदी ने संभावना जताई है कि अगस्त में ही यह दोनों पुस्तकें प्रकाशित हो जाएंगी.

पढ़ें-सिरपुर में सुरंग मिलने का हल्ला, असल में निकला मानव निर्मित गड्ढा

सुशील त्रिवेदी ने बताया कि उन्होंने पहली पुस्तक भारत की साहित्य एकेडमी के आग्रह पर 'पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी' के योगदान को लेकर लिखी है. इस पुस्तक में उन्होंने बक्शी के जीवन के कई रहस्यों का उल्लेख किया है. सुशील त्रिवेदी ने बताया कि बक्शी निबंधकार के रूप में प्रसिद्ध थे, उनकी कहानियां काफी लोकप्रिय थीं. इसके अलावा भी उनके जीवन के कई पहलू ऐसे थे, जिनका उल्लेख पहले नहीं किया गया है. इन सभी बातों का जिक्र भी आने वाली पुस्तक में किया गया है.

सुशील त्रिवेदी ने बताया कि उनकी दूसरी पुस्तक 'संस्कृति की सत्ता' है, जिसमें उन्होंने संस्कृति के साथ शासन-प्रशासन के संबंधों को दर्शाने की कोशिश की है. त्रिवेदी ने बताया कि संस्कृति के अलग-अलग रूप, साहित्य, कला, लोक कला, शास्त्रीय संगीत और संगीत को राजाओं के समय संरक्षण मिलता था, वह समाप्त हो गया है. सरकार और उपभोक्तावाद के आने के बाद साहित्य का रूप बदल गया है.

'लोकगीत का चलन समाप्त होता जा रहा है'

त्रिवेदी ने बताया कि अब मुंबई की फिल्म, मुंबई के गीत, मुंबई की धुन ही संस्कृति और साहित्य बनते जा रहे हैं. लोकगीत, लोक कला अब गायब होती जा रही है. जन्मदिन शादी के समारोह के दौरान भी फिल्मी गीत ही गाए और बजाए जाते हैं. लोकगीत का चलन समाप्त होता जा रहा है. इन सारी बातों का उल्लेख उनकी पुस्तक 'संस्कृति की सत्ता' में किया गया है. इस किताब में उनके जीवन के 40 साल के संस्कृति और सत्ता को लेकर किए गए अनुभवों को पिरोने का प्रयास किया गया है.

पढ़ें-EXCLUSIVE: छत्तीसगढ़ी में रामचरितमानस 'छत्तीसगढ़ी के रमायन'

लॉकडाउन के बीच किताब लिखने के अलावा त्रिवेदी ने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में भी भाग लिया. सुशील त्रिवेदी ने बताया कि पंडित माधव राव सप्रे के जीवन पर आयोजित एक वेबिनार कार्यक्रम में वे शामिल हुए और उन्होंने अपने विचार रखे.

अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में हुए शामिल

सुशील त्रिवेदी ने बताया कि हाल ही में वे 1 अगस्त को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक की 100वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में शामिल हुए. यह वेबिनार भारतीय संस्कृति संबंध परिषद (आईसीसीआर) के द्वारा आयोजित किया गया था. जिसका शीर्षक 'लोकमान्य तिलक : स्वराज से आत्मनिर्भर भारत' रखा गया था. इस वेबिनार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित देश-विदेश से आए कई वक्ता शामिल हुए थे. जिसमें छत्तीसगढ़ से उन्हें भी शामिल किया था.

समाज को दे सकते हैं बहुत कुछ

इस तरह डॉ. सुशील त्रिवेदी ने कोरोना संक्रमण के संकट काल और लॉकडाउन के बीच अपने आप को सुरक्षित रखते हुए अपने कर्तव्यों का बखूबी निर्वहन किया. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि लोग किस तरह इस कठिन परिस्थिति में भी अपने आप को व्यस्त रखते हुए न सिर्फ अपने खाली समय का सदुपयोग कर सकते हैं बल्कि समाज को बहुत कुछ दे भी सकते हैं.

रायपुर: कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से काफी भयावह स्थिति बनी हुई है. ज्यादातर लोग कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के तनाव से उबर नहीं पा रहे हैं. वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इस तनाव को मात देते हुए अपनी मंजिल की ओर निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं. जो काम वे लोग आम दिनों में समय के अभाव के कारण नहीं कर पाए थे, उस काम को अब लॉकडाउन के दौरान मिले समय में कर रहे हैं.

ऐसी ही एक खास शख्सियत हैं छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त और भारतीय परिसीमन आयोग के पूर्व सदस्य डॉ. सुशील त्रिवेदी. जिन्होंने कोरोना संक्रमण के दौरान न सिर्फ अपने आप को सुरक्षित रखा, बल्कि लॉकडाउन के दौरान मिले खाली समय का सदुपयोग कर दो पुस्तकें भी लिख डालीं. इतना ही नहीं डॉ. सुशील त्रिवेदी घर बैठे विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वेबीनार में भी शामिल हुए और अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचाया. लॉकडाउन के दौरान किए गए कामों को डॉ. सुशील त्रिवेदी ने ईटीवी भारत के साथ साझा किया है.

लॉकडाउन का सही उपयोग

सुशील त्रिवेदी ने बताया कि वे आम दिनों में इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें पढ़ने-लिखने का समय ही नहीं मिल पाता था. विभिन्न कार्यक्रमों, सेमिनारों सहित अन्य कामों में व्यस्त होने के कारण ऐसे कई काम थे, जिन्हें वे नहीं कर पा रहे थे, लेकिन लॉकडाउन में उन्होंने अपने इस समय का पूरी तरह से सदुपयोग किया और इस बीच दो किताबें भी लिख डालीं. ऐसा नहीं है कि उन्होंने पहली बार पुस्तक लिखी है, इससे पहले भी उनकी कई बुक्स प्रकाशित हो चुकी हैं. लॉकडाउन के बीच जिस तरह से उन्होंने दो पुस्तकों के लेखन का कार्य तेजी संपन्न किया वह खास है. यह पुस्तकें छपने के लिए प्रकाशक के पास भेजी गई हैं और उनके कवर पेज का काम भी लगभग पूरा हो गया है. सुशील त्रिवेदी ने संभावना जताई है कि अगस्त में ही यह दोनों पुस्तकें प्रकाशित हो जाएंगी.

पढ़ें-सिरपुर में सुरंग मिलने का हल्ला, असल में निकला मानव निर्मित गड्ढा

सुशील त्रिवेदी ने बताया कि उन्होंने पहली पुस्तक भारत की साहित्य एकेडमी के आग्रह पर 'पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी' के योगदान को लेकर लिखी है. इस पुस्तक में उन्होंने बक्शी के जीवन के कई रहस्यों का उल्लेख किया है. सुशील त्रिवेदी ने बताया कि बक्शी निबंधकार के रूप में प्रसिद्ध थे, उनकी कहानियां काफी लोकप्रिय थीं. इसके अलावा भी उनके जीवन के कई पहलू ऐसे थे, जिनका उल्लेख पहले नहीं किया गया है. इन सभी बातों का जिक्र भी आने वाली पुस्तक में किया गया है.

सुशील त्रिवेदी ने बताया कि उनकी दूसरी पुस्तक 'संस्कृति की सत्ता' है, जिसमें उन्होंने संस्कृति के साथ शासन-प्रशासन के संबंधों को दर्शाने की कोशिश की है. त्रिवेदी ने बताया कि संस्कृति के अलग-अलग रूप, साहित्य, कला, लोक कला, शास्त्रीय संगीत और संगीत को राजाओं के समय संरक्षण मिलता था, वह समाप्त हो गया है. सरकार और उपभोक्तावाद के आने के बाद साहित्य का रूप बदल गया है.

'लोकगीत का चलन समाप्त होता जा रहा है'

त्रिवेदी ने बताया कि अब मुंबई की फिल्म, मुंबई के गीत, मुंबई की धुन ही संस्कृति और साहित्य बनते जा रहे हैं. लोकगीत, लोक कला अब गायब होती जा रही है. जन्मदिन शादी के समारोह के दौरान भी फिल्मी गीत ही गाए और बजाए जाते हैं. लोकगीत का चलन समाप्त होता जा रहा है. इन सारी बातों का उल्लेख उनकी पुस्तक 'संस्कृति की सत्ता' में किया गया है. इस किताब में उनके जीवन के 40 साल के संस्कृति और सत्ता को लेकर किए गए अनुभवों को पिरोने का प्रयास किया गया है.

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लॉकडाउन के बीच किताब लिखने के अलावा त्रिवेदी ने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में भी भाग लिया. सुशील त्रिवेदी ने बताया कि पंडित माधव राव सप्रे के जीवन पर आयोजित एक वेबिनार कार्यक्रम में वे शामिल हुए और उन्होंने अपने विचार रखे.

अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में हुए शामिल

सुशील त्रिवेदी ने बताया कि हाल ही में वे 1 अगस्त को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक की 100वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में शामिल हुए. यह वेबिनार भारतीय संस्कृति संबंध परिषद (आईसीसीआर) के द्वारा आयोजित किया गया था. जिसका शीर्षक 'लोकमान्य तिलक : स्वराज से आत्मनिर्भर भारत' रखा गया था. इस वेबिनार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित देश-विदेश से आए कई वक्ता शामिल हुए थे. जिसमें छत्तीसगढ़ से उन्हें भी शामिल किया था.

समाज को दे सकते हैं बहुत कुछ

इस तरह डॉ. सुशील त्रिवेदी ने कोरोना संक्रमण के संकट काल और लॉकडाउन के बीच अपने आप को सुरक्षित रखते हुए अपने कर्तव्यों का बखूबी निर्वहन किया. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि लोग किस तरह इस कठिन परिस्थिति में भी अपने आप को व्यस्त रखते हुए न सिर्फ अपने खाली समय का सदुपयोग कर सकते हैं बल्कि समाज को बहुत कुछ दे भी सकते हैं.

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