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बायोफ्लॉक तकनीक से कम जगह में मछली पालन संभव, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट

Biofloc technology आप मछली पालन करना चाहते हैं और आपके पास जगह की कमी है. तालाब भी नहीं है आपके पास, तो आपके लिए यह खबर बेहद ही महत्वपूर्ण है. क्योंकि अब आप छोटे से जगह पर भी बायोफ्लॉक तकनीक के माध्यम से मछली पालन कर सकते हैं. जानिए क्या है बायोफ्लॉक तकनीक और कैसे इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है.

Fish farming with Biofloc technology
बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन की विधि
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Published : Nov 23, 2022, 10:28 PM IST

रायपुर: यदि आप मछली पालन करना चाहते हैं और आपके पास जगह की कमी है. fish farming technology news तालाब भी नहीं है आपके पास, तो आपके लिए यह खबर बेहद ही महत्वपूर्ण है. क्योंकि अब आप छोटे से जगह पर भी बायोफ्लॉक तकनीक के माध्यम से मछली पालन (Fish farming with Biofloc technology) कर सकते हैं. इसमें लागत भी कम लगता है, लेकिन इस विधि से मछली पालन करने में मुनाफा अधिक होता है. आखिर क्या है बायोफ्लॉक तकनीक और कैसे इस तकनीक से मछली पालन किया जाता है? इसे लेकर हमने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ( indira gandhi agriculture university raipur) के मत्स्य वैज्ञानिक डॉ स्वागत सासमल से खास बातचीत की. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा. Biofloc technology

बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन की विधि


सवाल: यह कौन सी तकनीक है, जिसके माध्यम से मछली पालन किया जा रहा है?
जवाब: इस तकनीक को बायोफ्लॉक तकनीक कहा जाता है. सिंपल शब्दों में कहें तो उसे टैंक के माध्यम से मछली पालन कहा जा सकता है. नॉर्मल टंकी में मछली डालने से कुछ दिन में यह मर जाती हैं, क्योंकि पानी में अमोनिया लेवल बढ़ जाती है. लेकिन बायो फ्लॉक सिस्टम में तारकोलिक या सीमेंट का टैंक होता है. सइस टैंक में प्रोवाइडिक डाला जाता है. जो बेनिफिशियल बैक्टीरिया होता है. उसको एक्टिव करके हम टंकी में डालते हैं. यह बहुत सारे बैक्टीरिया का उत्पादन करता है. यही उपकारी बैक्टीरिया उस पर काम करना शुरू कर देता है. फिर उनके मल मूत्र को फ्लॉक में कन्वर्ट करते हैं, जो बायो फ्लॉक कहलाते हैं. इसी बायो फ्लॉक को फिर मछली दोबारा खाती है.Development of fisheries in Chhattisgarh

मतलब जो बाहर से दाना देना होता है, वह बहुत कम देना पड़ता है. अभी बहुत से किसान आते हैं. वह कहते हैं कि मेरे पास आधा एकड़ जमीन है, तो क्या मैं मछली पालन नहीं कर सकता. लेकिन इस विधि से किसान छोटा-छोटा टैंक बनाकर मछली पालन कर सकते हैं, लेकिन इसे साईंटिफिक तरीके से बेहतर किया जा सकता है. इसके फायदे की बात करें तो यदि हम एक लाख लीटर का 5 टैंक बनाते हैं मतलब 5 लाख लीटर, तो 5 लाख लीटर टंकी में 1 एकड़ जलाशय में मछली उत्पादन के बराबर हैं. Biofloc Fish Farming In Chhattisgarh


सवाल: कोई छोटे स्तर पर यदि शुरुआत करना चाहता है, तो कितना बड़ा टंकी बनाना पड़ेगा? उसमें कितनी पानी की मात्रा डालनी होगी?
जवाब: जैसे हमारे पास यह 4 मीटर का है. इसमें 10000 लीटर पानी डला है. नॉर्मली जो कमर्शियल के लिए इस्तेमाल करना चाहता है. उनको कम से कम 6 मीटर का टंकी बनाना होगा. क्योंकि अधिक प्रोडक्शन के लिए थोड़ा सा बड़ा स्पेस चाहिए. लेकिन आपको बायो फ्लॉक क्या है. इसके प्रोडक्शन क्या है. इसे जानना है तो आपको छोटा 3 या 4 मीटर टंकी का इस्तेमाल करना होगा. लेकिन कमर्शियल के लिए 6 मीटर का टंकी होना जरूरी है. जिसमें लगभग 30 हजार लीटर पानी की मात्रा लगती है. आजकल 4000-5000 फ़ीट पर मकान बनता है. यदि आप मछली पालन करना चाहते हैं तो बायो फ्लॉक तकनीक से इतने ही जमीन पर बेहतर उत्पादन कर सकते हैं.


सवाल: आज भी बहुत से किसानों को इस तकनीक के बारे में जानकारी नहीं है. कई किसान ऐसे हैं, जो तालाब खुदवाकर मछली पालन करते हैं?
जवाब: किसान भाइयों को मैं बस इतनी सी बात कहना चाहूंगा. यह सुपर इंटेंसिव एक्वा कल्चर सिस्टम, जो हाईली साइंटिफिक है. आप सोचिए 5 लाख लीटर पर 76 लाख लीटर का प्रोडक्शन ले रहे हैं, तो स्टॉकिंग डेंसिटीव बहुत ज्यादा है. कम पानी में आपके मछली का घनत्व बहुत ज्यादा है. किसान भाई को इतना ही बताऊंगा कि आप किसी भी प्रोफेशनल मतलब जो गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट है, जहां साइंटिस्ट रैंक का आदमी इस फील्ड में है. पहले आप वहां से प्रशिक्षण लीजिए. पहले यह जानने की जरूरत है कि यह टेक्नोलॉजी किस तरह की है. किसानों को पहले इसकी ट्रेनिंग लेनी चाहिए. पूरे सेंट्रल इंडिया में सिर्फ इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में ट्रेनिंग दी जा रही है. इसका आप कृषि विज्ञान केंद्र या इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जाकर भी इसका नोटिफिकेशन देख सकते हैं. रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है. दिसंबर के पहले दूसरे सप्ताह में ट्रेनिंग शुरू हो जाएगी. यहां बताया जाएगा कि बारिश के दौरान यदि पानी का लेवल बढ़ गया. तब क्या किया जाएगा और मछली पालन किस तरह से किया जाए. उसकी भी विधि बताई जाएगी. खास बात यह है कि यहां से जो भी व्यक्ति ट्रेनिंग लेता है. उनका एक व्हाट्सएप ग्रुप बनता है और जब तक कोई किसान एक क्रॉप तैयार नहीं कर लेता, तब तक फ्री में हमारी टीम के द्वारा उनका सपोर्ट किया जाता है.


सवाल: मुनाफा कितना होता है?
जवाब: जैसे हमारे पास गोलाकार 3 टैंक है. बाकी और भी बहुत से टैंक है. हमारे पास टोटल 45 टैंक है. कुछ टंकियों में रंगीन मछलियां हैं उनका भी प्रशिक्षण दिया जाता है बाकी बायो फ्लॉक है इसमें सरकारी सब्सिडी भी है हमारा मत्स्य पालन विभाग की ओर से बायो फ्लॉक के लिए तीन कैटेगरी पर सब्सिडी का प्रावधान है एक स्मॉल, मीडियम और लार्ज. जिसमें ढाई लाख से लेकर 50 लाख तक का प्रावधान है किसान भाई इसका लाभ उठा सकते हैं.

रायपुर: यदि आप मछली पालन करना चाहते हैं और आपके पास जगह की कमी है. fish farming technology news तालाब भी नहीं है आपके पास, तो आपके लिए यह खबर बेहद ही महत्वपूर्ण है. क्योंकि अब आप छोटे से जगह पर भी बायोफ्लॉक तकनीक के माध्यम से मछली पालन (Fish farming with Biofloc technology) कर सकते हैं. इसमें लागत भी कम लगता है, लेकिन इस विधि से मछली पालन करने में मुनाफा अधिक होता है. आखिर क्या है बायोफ्लॉक तकनीक और कैसे इस तकनीक से मछली पालन किया जाता है? इसे लेकर हमने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ( indira gandhi agriculture university raipur) के मत्स्य वैज्ञानिक डॉ स्वागत सासमल से खास बातचीत की. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा. Biofloc technology

बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन की विधि


सवाल: यह कौन सी तकनीक है, जिसके माध्यम से मछली पालन किया जा रहा है?
जवाब: इस तकनीक को बायोफ्लॉक तकनीक कहा जाता है. सिंपल शब्दों में कहें तो उसे टैंक के माध्यम से मछली पालन कहा जा सकता है. नॉर्मल टंकी में मछली डालने से कुछ दिन में यह मर जाती हैं, क्योंकि पानी में अमोनिया लेवल बढ़ जाती है. लेकिन बायो फ्लॉक सिस्टम में तारकोलिक या सीमेंट का टैंक होता है. सइस टैंक में प्रोवाइडिक डाला जाता है. जो बेनिफिशियल बैक्टीरिया होता है. उसको एक्टिव करके हम टंकी में डालते हैं. यह बहुत सारे बैक्टीरिया का उत्पादन करता है. यही उपकारी बैक्टीरिया उस पर काम करना शुरू कर देता है. फिर उनके मल मूत्र को फ्लॉक में कन्वर्ट करते हैं, जो बायो फ्लॉक कहलाते हैं. इसी बायो फ्लॉक को फिर मछली दोबारा खाती है.Development of fisheries in Chhattisgarh

मतलब जो बाहर से दाना देना होता है, वह बहुत कम देना पड़ता है. अभी बहुत से किसान आते हैं. वह कहते हैं कि मेरे पास आधा एकड़ जमीन है, तो क्या मैं मछली पालन नहीं कर सकता. लेकिन इस विधि से किसान छोटा-छोटा टैंक बनाकर मछली पालन कर सकते हैं, लेकिन इसे साईंटिफिक तरीके से बेहतर किया जा सकता है. इसके फायदे की बात करें तो यदि हम एक लाख लीटर का 5 टैंक बनाते हैं मतलब 5 लाख लीटर, तो 5 लाख लीटर टंकी में 1 एकड़ जलाशय में मछली उत्पादन के बराबर हैं. Biofloc Fish Farming In Chhattisgarh


सवाल: कोई छोटे स्तर पर यदि शुरुआत करना चाहता है, तो कितना बड़ा टंकी बनाना पड़ेगा? उसमें कितनी पानी की मात्रा डालनी होगी?
जवाब: जैसे हमारे पास यह 4 मीटर का है. इसमें 10000 लीटर पानी डला है. नॉर्मली जो कमर्शियल के लिए इस्तेमाल करना चाहता है. उनको कम से कम 6 मीटर का टंकी बनाना होगा. क्योंकि अधिक प्रोडक्शन के लिए थोड़ा सा बड़ा स्पेस चाहिए. लेकिन आपको बायो फ्लॉक क्या है. इसके प्रोडक्शन क्या है. इसे जानना है तो आपको छोटा 3 या 4 मीटर टंकी का इस्तेमाल करना होगा. लेकिन कमर्शियल के लिए 6 मीटर का टंकी होना जरूरी है. जिसमें लगभग 30 हजार लीटर पानी की मात्रा लगती है. आजकल 4000-5000 फ़ीट पर मकान बनता है. यदि आप मछली पालन करना चाहते हैं तो बायो फ्लॉक तकनीक से इतने ही जमीन पर बेहतर उत्पादन कर सकते हैं.


सवाल: आज भी बहुत से किसानों को इस तकनीक के बारे में जानकारी नहीं है. कई किसान ऐसे हैं, जो तालाब खुदवाकर मछली पालन करते हैं?
जवाब: किसान भाइयों को मैं बस इतनी सी बात कहना चाहूंगा. यह सुपर इंटेंसिव एक्वा कल्चर सिस्टम, जो हाईली साइंटिफिक है. आप सोचिए 5 लाख लीटर पर 76 लाख लीटर का प्रोडक्शन ले रहे हैं, तो स्टॉकिंग डेंसिटीव बहुत ज्यादा है. कम पानी में आपके मछली का घनत्व बहुत ज्यादा है. किसान भाई को इतना ही बताऊंगा कि आप किसी भी प्रोफेशनल मतलब जो गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट है, जहां साइंटिस्ट रैंक का आदमी इस फील्ड में है. पहले आप वहां से प्रशिक्षण लीजिए. पहले यह जानने की जरूरत है कि यह टेक्नोलॉजी किस तरह की है. किसानों को पहले इसकी ट्रेनिंग लेनी चाहिए. पूरे सेंट्रल इंडिया में सिर्फ इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में ट्रेनिंग दी जा रही है. इसका आप कृषि विज्ञान केंद्र या इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जाकर भी इसका नोटिफिकेशन देख सकते हैं. रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है. दिसंबर के पहले दूसरे सप्ताह में ट्रेनिंग शुरू हो जाएगी. यहां बताया जाएगा कि बारिश के दौरान यदि पानी का लेवल बढ़ गया. तब क्या किया जाएगा और मछली पालन किस तरह से किया जाए. उसकी भी विधि बताई जाएगी. खास बात यह है कि यहां से जो भी व्यक्ति ट्रेनिंग लेता है. उनका एक व्हाट्सएप ग्रुप बनता है और जब तक कोई किसान एक क्रॉप तैयार नहीं कर लेता, तब तक फ्री में हमारी टीम के द्वारा उनका सपोर्ट किया जाता है.


सवाल: मुनाफा कितना होता है?
जवाब: जैसे हमारे पास गोलाकार 3 टैंक है. बाकी और भी बहुत से टैंक है. हमारे पास टोटल 45 टैंक है. कुछ टंकियों में रंगीन मछलियां हैं उनका भी प्रशिक्षण दिया जाता है बाकी बायो फ्लॉक है इसमें सरकारी सब्सिडी भी है हमारा मत्स्य पालन विभाग की ओर से बायो फ्लॉक के लिए तीन कैटेगरी पर सब्सिडी का प्रावधान है एक स्मॉल, मीडियम और लार्ज. जिसमें ढाई लाख से लेकर 50 लाख तक का प्रावधान है किसान भाई इसका लाभ उठा सकते हैं.

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