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जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया की प्रथम पुण्यतिथि, लोगों के दिलों में बसे हैं उनके लिखे गीत - lakshman masturia history

छत्तीसगढ़ के जनकवि स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया की प्रथम पुण्यतिथि पर ETV कविताओं के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है.

जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया की प्रथम पुण्यतिथि
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Published : Nov 3, 2019, 8:17 PM IST

रायपुरः छत्तीसगढ़ के जनकवि स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया की प्रथम पुण्यतिथि पर पूरा प्रदेश उन्हें याद कर रहा है, 3 नवंबर 2018 को उन्होंने अचानक दुनिया को अलविदा कह दिया. आज भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी कालजयी रचनाओं के जरिए वो हर छत्तीसगढ़िया के मन में रचे बसे हैं.

स्पेशल पैकेज

छत्तीसगढ़ जब टेलीविजन की चकाचौंध से दूर था तब सत्तर के दशक में लक्ष्मण मस्तुरिया प्रदेश में जाने-माने कवि और गीतकार के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे. उनका लिखा और गाया गीत 'मोर संग चलव रे, मोर संग चलव गा..' हर किसी के जुबान पर चढ़ चुका था. आलम ये था कि लक्ष्मण मस्तुरिया जब भी किसी कवि सम्मेलन में जाते तो श्रोता उनसे यही गीत गाने की मांग करते थे. साल 2000 में आई पहली छत्तीसगढ़िया सुपरहीट फिल्म 'मोर छंइहा भुंइया' में उनके लिखे गीतों ने धूम मचा दी थी.

मोर संग चलव रे, गंवई-गंगा, माटी कहे कुम्हार से, धुनही बंसुरिया समेत कई ऐसी कालजयी रचनाएं हैं जिनके जरिए लक्ष्मण मस्तुरिया आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं. गीतकार, लेखक, गायक, जनकवि स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया की पहली बरसी पर श्रद्धांजलि.

रायपुरः छत्तीसगढ़ के जनकवि स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया की प्रथम पुण्यतिथि पर पूरा प्रदेश उन्हें याद कर रहा है, 3 नवंबर 2018 को उन्होंने अचानक दुनिया को अलविदा कह दिया. आज भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी कालजयी रचनाओं के जरिए वो हर छत्तीसगढ़िया के मन में रचे बसे हैं.

स्पेशल पैकेज

छत्तीसगढ़ जब टेलीविजन की चकाचौंध से दूर था तब सत्तर के दशक में लक्ष्मण मस्तुरिया प्रदेश में जाने-माने कवि और गीतकार के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे. उनका लिखा और गाया गीत 'मोर संग चलव रे, मोर संग चलव गा..' हर किसी के जुबान पर चढ़ चुका था. आलम ये था कि लक्ष्मण मस्तुरिया जब भी किसी कवि सम्मेलन में जाते तो श्रोता उनसे यही गीत गाने की मांग करते थे. साल 2000 में आई पहली छत्तीसगढ़िया सुपरहीट फिल्म 'मोर छंइहा भुंइया' में उनके लिखे गीतों ने धूम मचा दी थी.

मोर संग चलव रे, गंवई-गंगा, माटी कहे कुम्हार से, धुनही बंसुरिया समेत कई ऐसी कालजयी रचनाएं हैं जिनके जरिए लक्ष्मण मस्तुरिया आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं. गीतकार, लेखक, गायक, जनकवि स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया की पहली बरसी पर श्रद्धांजलि.

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