रायपुर: छत्तीसगढ़ में हर साल धूमधाम से गणेश उत्सव मनाया जाता है. राजधानी की हर गलियों में गणपति बप्पा विराजमान होते हैं. वहीं गणेश उत्सव के लिए लंबोदर की मूर्तियों का निर्माण 6 से 8 महीने पहले ही शुरू कर दिया जाता है.
गणेश चतुर्थी को अब कुछ ही दिन बचे हैं और मूर्तिकार गणेश जी की मूर्तियों को अंतिम स्वरूप दे रहे हैं. गणेश चतुर्थी की तैयारी में गणेश प्रतिमाओं की जानकारी लेने ETV भारत मूर्ति कलाकारों की बस्ती माना पहुंचा. जहां पिछले 6 महीने से मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है.
कई रूपो में बनाए जाती है गणपति की मूर्तियां
कलाकरों ने बताया कि, 'यहां गणपति का अलग-अलग स्वरूप में निर्माण किया जा रहा है. राधा-कृष्ण, तिरुपति-बालाजी, विष्णु भगवान जैसे कई रुपों को लेकर गणपति का निर्माण किया जाता है.' छत्तीसगढ़ के साथ-साथ उड़िसा और कोलकाता राज्य के कलाकार भी इन मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं. मूर्ति निर्माण करने में लंबा समय लगता है इसलिए 50 से 70 मूर्तियों का ही निर्माण हो पाता है.
ऐसे किया जाता है मूर्तियों का निर्माण-
- मूर्तियों का निर्माण करने के लिए मिट्टी, बांस, बल्ली और पैरा का इस्तेमाल किया जाता है.
- इन सभी चीजों को मिलाकर मूर्ति का स्ट्रक्चर तैयार किया जाता है. उसके बाद मूर्तियों में मिट्टी लगाकर आकार दिया जाता है.
- मिट्टी सूखने के बाद उस पर पुट्टी लगाई जाती है. उसके बाद कलरिंग का काम किया जाता है और अंत में आर्ट-वर्क और आभूषण के काम किए जाते हैं.
- मूर्तियों के निर्माण के लिए किसी भी प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता यहां प्योर मिट्टी की बनाई जाती है और इनमें लगने वाले रंग वाटर कलर होते हैं जो आसानी से पानी में घुल जाते हैं.
इन मूर्तियों की डिमांड ज्यादा
ज्यादातर मूर्तियां सिंपल और आर्टिफिशियल पेंटेड पसंद की जा रही हैं. वहीं लोग दगडूशेठ और महाराष्ट्र में बैठने वाले गणपति के पैटर्न में मूर्तियों को ज्यादा पसंद करते हैं.
जब आय को लेकर मूर्तिकारों से बात की गई तो उनका कहना था कि, 'ज्यादातर गणेश उत्सव और नवरात्र के समय ही लोगों को मूर्ति की मांग रहती है. सभी वर्करों और कलाकारों को पैसा देने के बाद सिर्फ रोजी ही चल पाती है. वहीं आज के ग्राहक बहुत चालाक हैं जो कम दाम पर बड़ी मूर्ति की आस रखते हैं.'
खास मिट्टी से तैयार किए जाते हैं आभूषण
मूर्तियों में लगने वाले आभूषण खास मिट्टी से तैयार किए जाते हैं, जिसे कारीगर बनाते हैं. मूर्तियो में आभूषण बनाने के लिए पहले खास कागज कोलकाता से मंगाए जाते थे, लेकिन इन कागजों के महंगे होने की वजह से अब मिट्टी से ही आभूषणों का निर्माण किया जाता है.
2 फीट से लेकर 17 फीट के गणपति
लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार अलग-अलग आकार के गणपति बिठाते हैं. जिसके लिए 12 बस्तियों के अलग-अलग पंडालों पर मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है. जहां 2 फीट की मूर्ति से लेकर 17 फीट की मूर्तियां बनाई गई है. वहीं इन मूर्तियों के दाम 2 हजार रुपए से शुरू होकर एक लाख रुपए तक हैं. मूर्तियों की ऊंचाई और कलाकारी के काम से मूर्तियों का दाम तय किया जाता है.
मिट्टी के मूर्तियों की होती है पूजा
मूर्तिकार ने बताया कि, शुरू से जो लोग मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं वो मिट्टी की ही मूर्तियां बनाते हैं, क्योंकि पूजा मिट्टी की मूर्तियों की ही की जाती है, इसी भावना के साथ वो मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण करते हैं.
काम के हिसाब से किया जाता है कलाकार को पेमेंट
मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं कलाकारों के काम के हिसाब से उनकी पेमेंट तय की जाती है. जो कलाकार फुल ट्रेंड होते हैं उनकी सैलरी अलग होती है, जो मीडिल काम करते हैं उनकी सैलरी अलग होती है. सामान्य कलाकार को महीने के 30 से 35 हजार रूपए दिए जाते हैं. कई बार ट्रेंड कलाकार को 40 से 50 हजार रुपए भी दिया जाता है.
दूसरे राज्यों में भी जाती है यहां की मूर्तियां
माना में कलाकारों द्वारा बनाई गई मूर्ति रायपुर के अलावा आसपास के जिलों में भी ले जाई जाती है. साथ ही उड़ीसा से भी लोग मूर्ति लेने पहुंचते हैं.
वहीं कलाकारों ने बताया कि गणपति का सीजन खत्म होते ही वे लोग आने वाले गणपति की तैयारियां शुरू कर देते हैं और धीरे-धीरे मूर्तियों का निर्माण कार्य शुरू हो जाता है.