रायपुर: कुसुम या करडी जिसे छत्तीसगढ़ में बर्रे के नाम से भी जाना जाता है. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में बर्रे भाजी बहुत पहले से खाई जा रही है. जब कुसुम का पेड़ छोटा होता है तो उसे बर्रे भाजी के रूप में पूरे छत्तीसगढ़ में बहुत पहले से खाया जाता है. जब कुसुम का पौधा थोड़ा बड़ा होने लगता (Features of Safflower oil) है तो उससे तेल निकालने के लिए उसे छोड़ दिया जाता है. जैसे-जैसे कुसुम का पौधा बड़ा होते जाता है. उसमें धीरे-धीरे कांटे आने लगते हैं, जिससे पशु पक्षी भी इससे दूरी बना लेते हैं.कुसुम से निकला तेल दिल के लिए भी काफी अच्छा माना जाता है. कुसुम पौधे के बीज से यह तेल बनाया जाता है.
कुसुम के पौधे पर शोध: फिलहाल छत्तीसगढ़ में 10,000 हेक्टेयर क्षेत्र में इसका उत्पादन किया जाता है. छत्तीसगढ़ में जिस कुसुम की खेती की जाती है, उस कुसुम में तेल की मात्रा 28 फीसद से 30 फीसद तक रहती है. लेकिन रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में कुसुम के पौधे पर शोध किया जा रहा है. जिसमें 2 वैरायटी के कुसुम के पौधे वहां लगाए गए हैं. कुसुम के पहले किस्म में 33 फीसद तेल की मात्रा होती है. वहीं कुसुम की दूसरी वैरायटी आईजीकेवी कुसुम में 34 फीसद से 35 फीसद तेल की मात्रा होती है. कुसुम की और क्या खासियत है? यह किस काम आता है? इस बारे में ईटीवी भारत ने कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव श्रीवास्तव से खास बातचीत की.
दो साल के रिसर्च के बाद तैयार हुई नई किस्म: कृषि वैज्ञानिक डॉ राजीव श्रीवास्तव ने ईटीवी भारत को बताया कि कुसुम-1 की नई किस्म 2 साल रिसर्च के बाद तैयार हुई है. इसके तेल में मोनो व पाली है जो असंतुलित वसा ज्यादा होने से हृदय रोगियों के लिए यह काफी उपयोगी माना जाता है. कृषि विश्वविद्यालय में अभी कुसुम पर शोध जारी है. अभी जो कुसुम की नई वैरायटी है. उसमें 33 फीसद से 35 फीसद तेल की मात्रा है. लेकिन कुसुम की ऐसी-ऐसी वैरायटी पर शोध कर रहे हैं. जिसमें अगले साल 40 फीसदी तक तेल की मात्रा होगी.
कुसुम-1 और आईजीकेवी कुसुम की खासियत
- इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में विकसित कुसुम-1 की किस्म में 33 फीसद आयल कंटेंट.
- कुसुम की दूसरी किस्म आईजीकेवी कुसुम में 35 फीसद आयल कंटेंट.
- कुसुम का तेल दिल के लिए लाभकारी होता है. कुसुम के तेल में मोनो और पाली पाया जाता है. जो अंसतुलित वसा को कंट्रोल करता है
- कुसुम-1 की किस्म खेत में 125 दिन में तैयार हो जाती है.
- आईजीकेवी कुसुम की किस्म खेत मे 135 दिन में तैयार हो जाती है.
- कुसुम के पौधे में कांटे होने की वजह से इसे पशु, पक्षी नुकसान नहीं पहुंचा सकते.
- कुसुम का पौधा जब छोटा होता है, तो उसमे काटे नहीं होते और पूरे छत्तीसगढ़ बर्रे भाजी के रूप में उसे खाया जाता है.
- कुसुम के फसल को कम करने में पानी की आवश्यकता होती है.
- कुसुम का फसल छत्तीसगढ़ में रबी में देर से बोआई के लिए बहुत ही अच्छा है.
- कुसुम के सूखे हुए फूल को केसर की तरह मिठाई में कलर के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
- कुसुम के सूखे फूल को चाय में डालकर पीया भी जाता है, इसे घुटनों के दर्द के लिए अच्छा माना जाता है.