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छत्तीसगढ़ में नहीं जांची जाएगी गांव-गांव की मिट्टी की सेहत, किसानों को होगा नुकसान ! - farmers will be harmed

छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह की मिट्टी की तासीर देखी जा सकती है. जैसे मैदानी इलाकों पर तो धान की फसल और कई ठंडे इलाकों में गन्ने की फसल बड़े पैमाने पर होती है. अगर यह कार्यक्रम बंद कर दिया जाएगा, तो इसका असर छत्तीसगढ़ में आने वाले वक्त में देखा जा सकता है.

छत्तीसगढ़ में नहीं जांची जाएगी गांव-गांव की मिट्टी की सेहत
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Published : Jul 24, 2019, 9:35 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में जमीन की उर्वरा क्षमता को बनाए रखने और खेती की उत्पादन लागत कम करने के उद्देश्य से शुरू किए गए मृदा परीक्षण कार्यक्रम को केंद्र सरकार की तरफ से संशोधित किया गया है. इस कार्यक्रम के तहत पहले हर 2 साल में गांव-गांव की मिट्टी का परीक्षण किया जाता था लेकिन अब विकासखंड के किसी एक गांव की मिट्टी लेकर उसका नमूना परीक्षण किया जाएगा. जिसका नुकसान किसानों को उठाना पड़ सकता है.

छत्तीसगढ़ में नहीं जांची जाएगी गांव-गांव की मिट्टी की सेहत

छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह की मिट्टी की तासीर देखी जा सकती है. जैसे मैदानी इलाकों पर तो धान की फसल और कई ठंडे इलाकों में गन्ने की फसल बड़े पैमाने पर होती है. अगर यह कार्यक्रम बंद कर दिया जाएगा, तो इसका असर छत्तीसगढ़ में आने वाले वक्त में देखा जा सकता है.

  • बीते कई सालों से देश भर में रसायनिक खाद के मनमाने इस्तेमाल से खेती-किसानी की जमीन को बंजर होने से रोकने के लिए कई तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं.
  • रसायनिक खाद के मनमाने इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा क्षमता कम होती है, इसी वजह से कुछ साल पहले मृदा परीक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी.
  • इसके तहत हर दो साल में प्रत्येक गांव की मिट्टी लेकर उसका परीक्षण किया जाता था. किसानों के लिए भी मिट्टी का परीक्षण कर उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किया जाता था. लेकिन अब केंद्र सरकार ने मृदा स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम को बंद करने का आदेश दे दिया है. इसके तहत प्रत्येक गांव के बजाए अब विकासखंड के किसी एक गांव की मिट्टी लेकर उसका नमूना परीक्षण किया जा सकेगा.
  • कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो इसे लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है. विकासखंड के एक गांव पर मिट्टी लेकर उसका नाम परीक्षण करने से बाकी सभी गांवों की मिट्टी की रिपोर्ट नहीं मिल पाएगी.
  • मृदा परीक्षण कार्यक्रम के दौरान ही किसानों को भी मिट्टी की जांच के लिए प्रोत्साहित किया गया था. किसानों ने भी इसे लेकर रुचि दिखाई थी. इससे फायदा ये होता था कि किसान मिट्टी के हिसाब से फसल का चयन करता था. साथ ही खेतों में खाद के मनमाने इस्तेमाल पर भी रोक लगी थी.
  • कृषि वैज्ञानिक डॉ संकेत ठाकुर कहते हैं कि ऐसा कोई निर्देश है तो यह गंभीर कदम है. मिट्टी के भीतर कितने पोषक तत्व हैं, यह कैसे पता चलेगा. यह सरकार का आत्मघाती कदम हो सकता है, इस निर्णय को किसान हित में वापस लिया जाना चाहिए.
  • छत्तीसगढ़ की बात करते हुए वे कहते हैं कि यहां 4 तरह की मिट्टी पाई जाती है, मिट्टी के लिहाज से ही फसलों का चयन किया जाता है. प्रदेश में भाटा मिट्टी, मटासी मिट्टी, डोरसा मिट्टी और कन्हार मिट्टी जिसे काली मिट्टी कहते हैं पाई जाती है. इन मिट्टियों के प्रकार के हिसाब से ही धान और सब्जी के अलावा दलहन तिलहन फसल का चयन किया जाता है.
  • जानकारी के मुताबिक मिट्टी परीक्षण को लेकर मृदा स्वास्थ्य परीक्षण का परीक्षण कार्यक्रम 14 वे वित्त आयोग की अनुशंसा से चल रहा था. मृदा परीक्षण का कार्ड 2 साल के लिए चल रहा था. अब 14 वें वित्त आयोग की अवधि समाप्त होने वाली है इस वजह से ही मिट्टी परीक्षण का कार्य रोका जा रहा है. इस अभियान के रोकने पर कहीं ना कहीं छोटे-छोटे गांव कस्बों में जहां पर किसान मिट्टी के जांच के बाद ही फसलों और खाद बीज का उपयोग करता था उसने काफी प्रभाव पड़ेगा.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में जमीन की उर्वरा क्षमता को बनाए रखने और खेती की उत्पादन लागत कम करने के उद्देश्य से शुरू किए गए मृदा परीक्षण कार्यक्रम को केंद्र सरकार की तरफ से संशोधित किया गया है. इस कार्यक्रम के तहत पहले हर 2 साल में गांव-गांव की मिट्टी का परीक्षण किया जाता था लेकिन अब विकासखंड के किसी एक गांव की मिट्टी लेकर उसका नमूना परीक्षण किया जाएगा. जिसका नुकसान किसानों को उठाना पड़ सकता है.

छत्तीसगढ़ में नहीं जांची जाएगी गांव-गांव की मिट्टी की सेहत

छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह की मिट्टी की तासीर देखी जा सकती है. जैसे मैदानी इलाकों पर तो धान की फसल और कई ठंडे इलाकों में गन्ने की फसल बड़े पैमाने पर होती है. अगर यह कार्यक्रम बंद कर दिया जाएगा, तो इसका असर छत्तीसगढ़ में आने वाले वक्त में देखा जा सकता है.

  • बीते कई सालों से देश भर में रसायनिक खाद के मनमाने इस्तेमाल से खेती-किसानी की जमीन को बंजर होने से रोकने के लिए कई तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं.
  • रसायनिक खाद के मनमाने इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा क्षमता कम होती है, इसी वजह से कुछ साल पहले मृदा परीक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी.
  • इसके तहत हर दो साल में प्रत्येक गांव की मिट्टी लेकर उसका परीक्षण किया जाता था. किसानों के लिए भी मिट्टी का परीक्षण कर उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किया जाता था. लेकिन अब केंद्र सरकार ने मृदा स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम को बंद करने का आदेश दे दिया है. इसके तहत प्रत्येक गांव के बजाए अब विकासखंड के किसी एक गांव की मिट्टी लेकर उसका नमूना परीक्षण किया जा सकेगा.
  • कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो इसे लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है. विकासखंड के एक गांव पर मिट्टी लेकर उसका नाम परीक्षण करने से बाकी सभी गांवों की मिट्टी की रिपोर्ट नहीं मिल पाएगी.
  • मृदा परीक्षण कार्यक्रम के दौरान ही किसानों को भी मिट्टी की जांच के लिए प्रोत्साहित किया गया था. किसानों ने भी इसे लेकर रुचि दिखाई थी. इससे फायदा ये होता था कि किसान मिट्टी के हिसाब से फसल का चयन करता था. साथ ही खेतों में खाद के मनमाने इस्तेमाल पर भी रोक लगी थी.
  • कृषि वैज्ञानिक डॉ संकेत ठाकुर कहते हैं कि ऐसा कोई निर्देश है तो यह गंभीर कदम है. मिट्टी के भीतर कितने पोषक तत्व हैं, यह कैसे पता चलेगा. यह सरकार का आत्मघाती कदम हो सकता है, इस निर्णय को किसान हित में वापस लिया जाना चाहिए.
  • छत्तीसगढ़ की बात करते हुए वे कहते हैं कि यहां 4 तरह की मिट्टी पाई जाती है, मिट्टी के लिहाज से ही फसलों का चयन किया जाता है. प्रदेश में भाटा मिट्टी, मटासी मिट्टी, डोरसा मिट्टी और कन्हार मिट्टी जिसे काली मिट्टी कहते हैं पाई जाती है. इन मिट्टियों के प्रकार के हिसाब से ही धान और सब्जी के अलावा दलहन तिलहन फसल का चयन किया जाता है.
  • जानकारी के मुताबिक मिट्टी परीक्षण को लेकर मृदा स्वास्थ्य परीक्षण का परीक्षण कार्यक्रम 14 वे वित्त आयोग की अनुशंसा से चल रहा था. मृदा परीक्षण का कार्ड 2 साल के लिए चल रहा था. अब 14 वें वित्त आयोग की अवधि समाप्त होने वाली है इस वजह से ही मिट्टी परीक्षण का कार्य रोका जा रहा है. इस अभियान के रोकने पर कहीं ना कहीं छोटे-छोटे गांव कस्बों में जहां पर किसान मिट्टी के जांच के बाद ही फसलों और खाद बीज का उपयोग करता था उसने काफी प्रभाव पड़ेगा.
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(फिड लाइव यू से भेजी गई है)

एंकर

छत्तीसगढ़ में जमीन की उर्वरा क्षमता को बनाए रखने और खेती के उत्पादन लागत कम करने के उद्देश्य से शुरू की गई मृदा परीक्षण कार्यक्रम को बंद किया जा रहा है। केंद्र सरकार की ओर से मृदा परीक्षण कार्यक्रम बंद करने को लेकर छत्तीसगढ़ में असमंजस की स्थिति है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह की मिट्टी की तासीर देखी जा सकती है। जिससे मैदानी इलाकों पर तो धान की फसल और कई ठंडे इलाकों में 1 किलो गन्ने की फसल बड़े पैमाने पर होती है। अगर यह कार्यक्रम बंद कर दिया जाएगा तो इसका असर छत्तीसगढ़ में आने वाले समय पर खेती किसानी बड़े पैमाने पर देखा जा सकता है। पेश है विशेष रिपोर्ट
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बीते कई सालों से देश भर में रासायनिक खाद के मनमाने प्रयोग के कारण खेती किसानी की जमीन को बंजर होने से रोकने के लिए कई तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं। रासायनिक खाद के बेवजह मनमाने उपयोग के कारण एक तरफ मिट्टी की उर्वरा क्षमता कम होती है तो वहीं इससे उत्पादन की लागत भी बढ़ती है। इसके कारण ही कुछ साल पहले मृदा परीक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी। इसके तहत विभागीय तौर पर प्रत्येक 2 साल में हर गांव की मिट्टी का नमूना लेकर उसका परीक्षण किया जाता था । वहीं किसानों के लिए भी मिट्टी का परीक्षण कर उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किया जाता था लेकिन अब केंद्र सरकार ने मृदा स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम को बंद करने का आदेश दे दिया है । इसके तहत प्रत्येक गांव के बजाय अब विकासखंड के किसी एक गांव की मिट्टी लेकर उसका नमूना परीक्षण किया जा सकेगा । कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो इसे लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है हालांकि विकासखंड के एक गांव पर मिट्टी लेकर उसका नाम परीक्षण करने से बाकी सभी गांव का मिट्टी की रिपोर्ट नही मिल पाएगी।

बाईट- आर.एल. खरे, ज्वाइंट सेक्रेटरी, कृषि विभाग

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दरअसल मृदा परीक्षण कार्यक्रम के दरमियान ही किसानों को भी मिट्टी परीक्षण कर मिट्टी की जांच के लिए प्रोत्साहित किया गया था और इस कार्यक्रम के व्यापक प्रचार करने के साथ ही किसानों ने इसमें अपनी रुचि दिखाई थी । इस अभियान का किसानों को भी फायदा हुआ था, असल में मिट्टी की प्रकृति और उसमें ली जा रही फसल के हिसाब से ही किसान खेतों में खास और फसल दोनों का चयन आसानी से कर सकता है । इससे खेतों ने खाद के मनमाने उपयोग पर भी अंकुश लगा था। कृषि वैज्ञानिक डॉ संकेत ठाकुर कहते हैं कि ऐसा कोई निर्देश है तो यह गंभीर कदम है । मिट्टी के भीतर कितने पोषक तत्व हैं यह कैसे पता चलेगा । यह सरकार का आत्मघाती कदम हो सकता है, इस निर्णय को किसान हित में वापस लिया जाना चाहिए । छत्तीसगढ़ की बात करते हुए वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में मुख्यत 4 प्रकार की मिट्टी पाई जाती है जिस मिट्टी के लिहाज से ही फसलों का चयन किया जाता है। प्रदेश में भाटा मिट्टी, मटासी मिट्टी, डोरसा मिट्टी और कन्हार मिट्टी जिसे काली मिट्टी कहते हैं,पाई जाती है । इन मिट्टियों के प्रकार के हिसाब से ही धान और सब्जी के अलावा दलहन तिलहन फसल का चयन किया जाता है।

बाईट- डॉ संकेत ठाकुर, कृषि वैज्ञानिक
Conclusion:
फाइनल वीओ

जानकारी के मुताबिक मिट्टी परीक्षण को लेकर मृदा स्वास्थ्य परीक्षण का परीक्षण कार्यक्रम 14 वे वित्त आयोग की अनुशंसा से चल रहा था। मृदा परीक्षण का कार्ड 2 साल के लिए चल रहा था। अब 14 वे वित्त आयोग की अवधि समाप्त होने वाली है इस वजह से ही मिट्टी परीक्षण का कार्य रोका जा रहा है लेकिन इस अभियान के रोकने पर कहीं ना कहीं छोटे-छोटे गांव कस्बों में जहां पर किसान मिट्टी के जांच के बाद ही फसलों और खाद बीज का उपयोग करता था उसने काफी प्रभाव पड़ेगा।

पीटीसी

मयंक ठाकुर, ईटीवी भारत, रायपुर
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