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किसानों का हल्लाबोल: 25 सितंबर को छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान, 20 से ज्यादा संगठनों ने दिया समर्थन

कृषि सुधार बिल के खिलाफ छत्तीसगढ़ के बीस से ज्यादा किसान संगठनों ने 25 सितंबर को छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान किया है. किसान संगठन के प्रतिनिधियों ने कहा है कि उत्पादन के क्षेत्र में ठेका कृषि लाने से किसान अपनी ही जमीन पर गुलाम हो जाएगा और देश की आवश्यकता के अनुसार और अपनी मर्जी से फसल लगाने के अधिकार से वंचित हो जाएगा.

Farmers will support
किसान बंद
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Published : Sep 23, 2020, 6:16 PM IST

रायपुर: मोदी सरकार के कृषि सुधार बिल के खिलाफ छत्तीसगढ़ के बीस से ज्यादा किसान संगठनों ने 25 सितंबर को छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान किया है. बंद का आह्वान करने वाली संगठनों ने आम लोगों के साथ तमाम राजनैतिक पार्टियों, व्यवसायिक संगठनों से बंद के समर्थन की अपील की है.

छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि जिस तरह से राज्यसभा में विपक्ष के बहुमत को कुचल इस कानून को पारित किया गया है, उससे स्पष्ट है कि अपने कॉर्पोरेट दोस्तों की चाकरी करते हुए इस सरकार को संसदीय जनतंत्र को कुचलने में भी शर्म नहीं आ रही है. संजय पराते ने कहा कि ये कानून कॉर्पोरेट के मुनाफे के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की वर्तमान व्यवस्था को ध्वस्त करने की योजना है.

पढ़ें : कृषि बिल के विरोध में किसानों की रैली, प्रदर्शन में शामिल हुए सिद्धू

देशभर में होगा प्रदर्शन

300 से ज्यादा किसान संगठनों से मिलकर बनी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने कृषि सुधार बिल पारित किए जाने के खिलाफ 25 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया है. किसान संघर्ष समन्वय समिति के अनुसार इन कानूनों से भारतीय किसान देशी-विदेशी कॉर्पोरेटरों का गुलाम बनकर रह जाएंगे. किसानों की उपज सस्ते में लूटा जाएगा और महंगा कर बेचा जाएगा. जिसका नतीजा यह होगा कि किसान बर्बाद हो जाएंगे और उनके हाथों से जमीन निकल जायेगी.

20 संगठनों ने दिया समर्थन

छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से अनाज को बाहर करने से जमाखोरी, कालाबाजारी, मुनाफाखोरी और महंगाई बढ़ेगी. वास्तव में इन कानूनों के जरिये सरकार कृषि के क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहती है. किसान सभा के नेता ने बताया कि किसानों के व्यापक हित में प्रदेश के किसानों और आदिवासियों के 20 से ज्यादा संगठन फिर एकजुट हुए हैं और 25 सितंबर को छत्तीसगढ़ बंद के आह्वान के साथ ही पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन करने का फैसला लिया है.

बिल से किसान आत्महत्या का केस बढ़ेगा

किसान संगठन के प्रतिनिधियों ने कहा है कि उत्पादन के क्षेत्र में ठेका कृषि लाने से किसान अपनी ही जमीन पर गुलाम हो जाएगा और देश की आवश्यकता के अनुसार और अपनी मर्जी से फसल लगाने के अधिकार से वंचित हो जाएगा. इसी प्रकार कृषि व्यापार के क्षेत्र में मंडी कानून के निष्प्रभावी होने और निजी मंडियों के खुलने से वह समर्थन मूल्य से वंचित हो जाएगा. इस बात का भी इन कानूनों में प्रावधान किया गया है कि कॉर्पोरेट कंपनियां जिस मूल्य को देने का किसान को वादा कर रही है, बाजार में भाव गिरने पर वह उस मूल्य को देने या किसान की फसल खरीदने को बाध्य नहीं होगी. यानी जोखिम किसान का और मुनाफा कार्पोरेट का, कुल मिलाकर ये तीनों बिल किसान विरोधी है. इससे किसान आत्महत्या में और ज्यादा वृद्धि होगी.

इन किसान संगठनों का समर्थन

छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान करने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया ने शामिल है.

रायपुर: मोदी सरकार के कृषि सुधार बिल के खिलाफ छत्तीसगढ़ के बीस से ज्यादा किसान संगठनों ने 25 सितंबर को छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान किया है. बंद का आह्वान करने वाली संगठनों ने आम लोगों के साथ तमाम राजनैतिक पार्टियों, व्यवसायिक संगठनों से बंद के समर्थन की अपील की है.

छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि जिस तरह से राज्यसभा में विपक्ष के बहुमत को कुचल इस कानून को पारित किया गया है, उससे स्पष्ट है कि अपने कॉर्पोरेट दोस्तों की चाकरी करते हुए इस सरकार को संसदीय जनतंत्र को कुचलने में भी शर्म नहीं आ रही है. संजय पराते ने कहा कि ये कानून कॉर्पोरेट के मुनाफे के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की वर्तमान व्यवस्था को ध्वस्त करने की योजना है.

पढ़ें : कृषि बिल के विरोध में किसानों की रैली, प्रदर्शन में शामिल हुए सिद्धू

देशभर में होगा प्रदर्शन

300 से ज्यादा किसान संगठनों से मिलकर बनी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने कृषि सुधार बिल पारित किए जाने के खिलाफ 25 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया है. किसान संघर्ष समन्वय समिति के अनुसार इन कानूनों से भारतीय किसान देशी-विदेशी कॉर्पोरेटरों का गुलाम बनकर रह जाएंगे. किसानों की उपज सस्ते में लूटा जाएगा और महंगा कर बेचा जाएगा. जिसका नतीजा यह होगा कि किसान बर्बाद हो जाएंगे और उनके हाथों से जमीन निकल जायेगी.

20 संगठनों ने दिया समर्थन

छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से अनाज को बाहर करने से जमाखोरी, कालाबाजारी, मुनाफाखोरी और महंगाई बढ़ेगी. वास्तव में इन कानूनों के जरिये सरकार कृषि के क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहती है. किसान सभा के नेता ने बताया कि किसानों के व्यापक हित में प्रदेश के किसानों और आदिवासियों के 20 से ज्यादा संगठन फिर एकजुट हुए हैं और 25 सितंबर को छत्तीसगढ़ बंद के आह्वान के साथ ही पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन करने का फैसला लिया है.

बिल से किसान आत्महत्या का केस बढ़ेगा

किसान संगठन के प्रतिनिधियों ने कहा है कि उत्पादन के क्षेत्र में ठेका कृषि लाने से किसान अपनी ही जमीन पर गुलाम हो जाएगा और देश की आवश्यकता के अनुसार और अपनी मर्जी से फसल लगाने के अधिकार से वंचित हो जाएगा. इसी प्रकार कृषि व्यापार के क्षेत्र में मंडी कानून के निष्प्रभावी होने और निजी मंडियों के खुलने से वह समर्थन मूल्य से वंचित हो जाएगा. इस बात का भी इन कानूनों में प्रावधान किया गया है कि कॉर्पोरेट कंपनियां जिस मूल्य को देने का किसान को वादा कर रही है, बाजार में भाव गिरने पर वह उस मूल्य को देने या किसान की फसल खरीदने को बाध्य नहीं होगी. यानी जोखिम किसान का और मुनाफा कार्पोरेट का, कुल मिलाकर ये तीनों बिल किसान विरोधी है. इससे किसान आत्महत्या में और ज्यादा वृद्धि होगी.

इन किसान संगठनों का समर्थन

छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान करने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया ने शामिल है.

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