रायपुर: सरकार और नक्सलियों से बातचीत को लेकर ईटीवी भारत ने सीएम बघेल से सवाल पूछा था. उस सवाल के जवाब में सीएम बघेल ने कहा कि यदि नक्सली संविधान पर विश्वास व्यक्त करें.तो किसी भी प्लेटफार्म पर आकर बात करें कोई हर्ज नहीं है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की इस पेशकश पर नक्सली सरकार से (how to solve naxal problem) बातचीत के लिए तैयार हो गए. लेकिन नक्सलियों ने कई शर्तें रख दी. जिसमें पीएलजीए (Peoples Liberation Guerrilla Army) पर लगाये गए प्रतिबंध को हटाने, जंगलों में हवाई हमले बंद करने और संघर्षरत इलाकों में सशस्त्र बलों के कैम्पों को हटाए जाने जैसी शर्तें शामिल थी.
सरकार ने नक्सलियों का प्रस्ताव ठुकराया: हालांकि छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सलियों के सशर्त वार्ता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. अपने प्रवास के दौरान सरगुजा जिले के प्रतापपुर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि नक्सली भारत के संविधान पर विश्वास व्यक्त करें, फिर उनसे किसी भी मंच , पर बात की जा सकती है. वहीं, दिल्ली दौरे से लौटे गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बात को दोहराया था. उन्होंने कहा था कि नक्सली संविधान पर भरोसा रखें और बिना किसी शर्त के बातचीत के लिए आगे आएं. जन घोषणा पत्र में नक्सलियों से बातचीत की घोषणा पर टीएस सिंहदेव ने भी कहा है कि संविधान के दायरे बातचीत का रास्ता खुला हुआ है.
नक्सली संविधान पर विश्वास व्यक्त करें, फिर हो सकती है बात: भूपेश बघेल
आखिर बातचीत का रोडमैप क्या हो?: एक ओर सरकार कहती है नक्सली हथियार छोड़े, संविधान ओर लोकतंत्र पर विश्वास करें, तो हम बातचीत को तैयार है, दूसरी ओर नक्सली कहते हैं कि सीजफायर करें. जंगल से कैंप और फोर्स को हटाए जाएं. तो हम बातचीत करने को तैयार हैं. आखिर इस परिस्थिति में नक्सलियों और सरकार के बीच कैसे बातचीत होगी. आखिरकार कैसे हो सकता है इस नक्सल समस्या का समाधान. या फिर यह पहल महज औपचारिकता बनकर रह जाएगी. प्रदेश में नक्सल समस्या का नहीं हो सकेगा समाधान. ऐसे तमाम सवाल है जिसके जवाब जानने की कोशिश की ईटीवी भारत ने एक्सपर्ट से की है.
"सिर्फ मुठभेड़ ही नहीं बल्कि कानून व्यवस्था के लिए भी तैनात है फोर्स": सरकार और नक्सलियों के बीच बातचीत को लेकर जब नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि "किसी भी समस्या के समाधान के लिए सबसे बेहतर रास्ता बातचीत का होता है. लेकिन इस बातचीत के लिए भी पैमाने तय होने चाहिए. किन परिस्थितियों में किस जगह, किन किन मुद्दों पर बातचीत की जाए. सुनने में यह बात बहुत अच्छा लगता है कि कई सालों बाद आखिरकार सरकार और नक्सलियों के बीच बातचीत का रास्ता खुल रहा है. लोगों को भी उम्मीद है कि इससे कहीं ना कहीं नक्सल समस्या का समाधान हो सकता है. लेकिन हकीकत कुछ और है, क्योंकि जब भी सरकार संविधान के दायरे में रहकर बातचीत की बात कहती है तो नक्सली कानूनी कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग करते हैं".
"सीजफायर के बहाने नक्सली रच सकते हैं साजिश":" ऐसे में इस बातचीत पर फिर से सवालिया निशान खड़े हो जाते हैं. क्योंकि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा के लिए तैनात जवान सिर्फ नक्सलियों से मुठभेड़ के लिए नहीं बल्कि वहां पर कानून व्यवस्था बनाने के लिए भी तैनात किए जाते हैं. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि बातचीत की पहल करने के बाद दो तीन दौर के बाद भी बातचीत सफल नहीं होती है लेकिन इस बीच जो समय मिलता है उस में नक्सली आगामी दिनों में हिंसक वारदातों को अंजाम देने के लिए अपनी रणनीति तैयार कर लेते हैं".
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से बातचीत की पहल कितनी होगी सार्थक?
"नेपाल की घटना को नहीं भूलना चाहिए": ऐसे में यदि नक्सली यह मांग करे कि उन क्षेत्रों से जवानों को हटा कर बातचीत की जाए तो ऐसा संभव नहीं है. इस दौरान वर्णिका शर्मा ने नेपाल का उदाहरण देते हुए कहा कि "वहां पर भी तीसरे दौर की बातचीत विफल होने के बाद नक्सलियों ने इस पहल के लिए जो मुखिया थे उन्हें ही किडनैप कर लिया था और उसके बाद दोगुनी ताकत के साथ हावी हो गए थे. ऐसे में इन बातों को ध्यान में रखते हुए ही सरकार को नक्सलियों के साथ बातचीत करनी चाहिए".
बातचीत से पहले फोर्स हटाना नहीं है संभव: सरकार और नक्सलियों के बीच बातचीत के मुद्दे को लेकर वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी ने कहा कि " लोकतंत्र में बातचीत ही सर्वोत्तम रास्ता है नक्सलियों को अपना हथियार छोड़कर लोकतांत्रिक तरीके से आना चाहिए. सरकार ने अपनी तरफ से अपनी नीति और नीयत को बता दिया कि हम एक अच्छे मन से इस समस्या को हल करना चाहते हैं. अब नक्सली के पाले में गेंद है. वहीं नक्सलियों के द्वारा फोर्स हटाने की मांग पर रामअवतार तिवारी ने कहा कि "किसी भी सरकार के लिए यह जोखिम भरा कदम हो सकता है. फोर्स हटाने की मांग की जगह नक्सलियों के द्वारा पहले बातचीत शुरू करनी चाहिए. प्रतिनिधिमंडल को मिलना चाहिए. उनकी बातों और मांगों को सरकार के समक्ष रखना चाहिए. पहले बातचीत का रास्ता खुले, उसके बाद फोर्स हटाने की बात की जाए तो ठीक रहेगा