रायपुर: समाज सेविका मेधा पाटकर और उनकी टीम ने बस्तर के कई इलाकों में ग्रामीणों से मुलाकात की है. इस दल का कहना है कि कोंडागांव, दंतेवाड़ा, सुकमा नारायणपुर जैसे जिलों में कई आदिवासी परिवार सिर्फ इसलिए अत्याचार झेल रहे हैं, क्योंकि उन्होंने हाल ही में ईसाई धर्म के मुताबिक अपनी जीवन शैली में बदलाव लाया है. यानी ईसाई धर्म को स्वीकार किया है.
इस संबंध में उनकी टीम ने एक रिपोर्ट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी सौंपी है. उनका कहना है कि स्वास्थ्य शिक्षा जैसे बुनियादी सुविधाओं के विकास नहीं होने के चलते आदिवासी समाज आज कई तरह से पीड़ित हो रहा है. उन्होंने इस पर भी बल दिया कि देश के हर नागरिक को अपनी इच्छा के मुताबिक धर्म और जीवनशैली अपनाने की छूट है. लेकिन इस अधिकार पर छत्तीसगढ़ के आदिवासियों पर हमला हो रहा है. बस्तर के इस दौरे पर उन्होंने क्या देखा और इस हालात को सुधारने के लिए उन्होंने प्रदेश सरकार को क्या सुझाव दिए हैं, इन तमाम मुद्दों पर ईटीवी भारत ने मेधा पाटकर से खास बातचीत की है.
सवाल: किस तरह से टीम ने फैक्ट फाइंडिंग की है, क्या तथ्य सामने आए है ?
मेधा पाटकर ने बताया इस शोध का मकसद रहा कि छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों पर अत्याचार की जांच कर सत्य सामने लाया जाए. उन्होंने बताया कि कोंडागांव के चार पांच गांव के आदिवासियों से बातचीत की गई और प्रशासनिक अधिकारियों से इस संबंध में चर्चा हुई. जिन आदिवासियों ने ईसाई धर्म अपनाया है उनपर हमले भी हुए हैं और इस संबंध में रायपुर के 30 संगठनों से चर्चा करके मुख्यमंत्री से मुलाकात की गई है.
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मेधा पाटकर ने कहा कि अभी इस सत्य शोध का अंतिम निष्कर्ष नहीं आया है. लेकिन पहली नजर से जो दिखाई देता है, उसपर तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र के माध्यम से अवगत कराया है और उन से चर्चा भी हुई है.
सवाल: मुख्यमंत्री से आपने चर्चा की, किस तरह की बातचीत हुई?
मेधा पाटकर ने कहा कि प्रारंभिक रिपोर्ट उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सौंपी है. मुख्यमंत्री ने भी इसे गंभीर मामला बताते हुए जल्द इस बारे में ठोस पहल की बात कही है. इसके अलावा उन्होंने बस्तर में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी की ओर जोर देते हुए कहा कि आज बस्तर में काफी लोग मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के कारण किसी खास धर्म की प्रार्थना में शामिल हो रहे हैं. हालांकि यह उनकी स्वतंत्रता का विषय है. इसको लेकर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. लेकिन हमारा मानना है कि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में विकास करें.
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'नया कृषि कानून कॉरपोरेट कल्चर को ध्यान में रखकर बनाया गया'
केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कृषि कानून पर मेधा पाटकर ने कहा कि यह सिर्फ कॉरपोरेट कल्चर को ध्यान में रखकर बनाया गया है. तीनों कानून ने किसानों को कमजोर करने की बात है. इसका अन्य प्रदेश भी विरोध कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ सरकार ने जिस तरह से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर किसानों के हित पर विधेयक लाया गया. उसका हम सभी समर्थन करते हैं. हम सरकार से अपेक्षा करते हैं एमएसपी को लेकर भी सरकार निर्णय लें तब छत्तीसगढ़ एक अच्छा उदाहरण पेश करेगा.
बस्तर से लौटने के बाद मेधा पाटकर की अगुवाई में इस दल ने प्रारंभिक रिपोर्ट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सौंपी है. इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदु इस तरह है-
- कोंडागांव, सुकमा और अन्य जिलों में कई गांव ऐसे हैं जहां आदिवासियों के खिलाफ हिंसा होने पर पुलिस और प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की. ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज हो और सही धारा लगाकर कार्रवाई की जाए.ईसाई धर्म प्रणाली स्वीकार कर चुके आदिवासी परिवारों के मकान तोड़े जा रहे हैं और महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं. जिसका असर उनकी आजीविका पर भी पड़ रहा है.
- वहीं ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासियों को धमकी, बहिष्कार, मृत्यु के बाद दफनाने की जगह पर भी विवाद कई जगह पर देखे गए. इसे ध्यान में रखकर उन परिवारों को संपूर्ण सुरक्षा देना और आजतक की शिकायतों में दर्ज सभी आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.
- आदिवासियों का अपना प्राकृतिक धर्म और जीवन प्रणाली है, उनका अपना इतिहास और परंपरा है. लेकिन संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार हर नागरिक को किसी भी विचारधारा और धर्म का पालन और प्रचार की स्वतंत्रता है. ऐसे में धर्मनिरपेक्षता और सर्वधर्म भाव का प्रचार-प्रसार सशक्त और सर्वव्यापी होना तत्काल जरूरी है. जो आदिवासी किसी विशेष धर्म को मान रहे हैं, ऐसे में उन पर अत्याचार हो रहा है. अत्याचार करने वाले लोगों को दंडित करना जरूरी है.
- आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार और कमाई बढ़ाने पर जोर देना जरूरी है. टीम ने पाया कि गांव में प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य भी कमजोर है, कई प्रकार की अनियमितताएं है. उनमें सुधार करना जरूरी है. जिससे आदिवासियों का पलायन रोका जा सके.
- शांति, सद्भावना, एकता, समानता और न्याय की अनिश्चितता के कार्य में प्रगतिशील संगठनों का साथ और अधिवक्ताओं का सहयोग जरूर लिया जाए. जिससे आदिवासियों पर अत्याचार ना हो.