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रिजर्वेशन पर टेंशन: विपक्ष ने सरकार को घेरा, अफसरों ने भी उठाए सवाल

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग को 72 फीसदी आरक्षण दिए जाने की घोषणा कर बड़ा दांव खेल दिया. इसे लेकर तमाम राजनीतिक दलों ने तो आपत्ति जताई ही है, लेकिन प्रशासनिक विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाते हुए कहा है कि आरक्षण केवल श्रेय और सस्ती लोकप्रियता लेने का एक जरिया बन गया है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल
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Published : Aug 18, 2019, 12:10 AM IST

रायपुर: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अनुसूचित जाति को 13, अनुसूचित जनजाति को 32 और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के एलान के साथ ही प्रदेश में रिजवर्शेन बढ़कर 72 फीसदी हो गया है. सीएम की इस घोषणा पर न सिर्फ विपक्षी पार्टी ने सवाल खड़े किए हैं बल्कि वरिष्ठ अफसरों ने भी नाराजगी जताई है.

रिजर्वेशन पर राजनीति

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग को 72 फीसदी आरक्षण दिए जाने की घोषणा कर बड़ा दांव खेल दिया. राज्य में अभी तक इन तीनों को मिलाकर कुल 58 फीसदी ही आरक्षण दिया जा रहा था. इस तरह से आरक्षण बढ़ने में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का भी उल्लंघन हो रहा है. इसे लेकर तमाम राजनीतिक दलों ने तो आपत्ति जताई ही है, लेकिन प्रशासनिक विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाते हुए कहा है कि आरक्षण केवल श्रेय और सस्ती लोकप्रियता लेने का एक जरिया बन गया है.

  • छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार के इस फ़ैसले के बाद पहले जहां राज्य में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत था अब यह बढ़कर 27 फीसदी हो जाएगा.
  • एससी यानी अनुसूचित जाति के लिए भी एक प्रतिशत आरक्षण बढ़ाया गया है. अब एससी के लिए 13 प्रतिशत आरक्षण होगा. एसटी यानी अनुसूचित जनजाति के लिए राज्य में पहले से ही 32 फीसदी आरक्षण है. अब इन तीनों वर्गों को जोड़ लें तो सरकारी नौकरियों और शिक्षा में कुल 72 प्रतिशत आरक्षण हो जाएगा. यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50% की सीमा से 50% ज्यादा है.
  • अगर सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत केंद्र के अनिवार्य ईडब्ल्यूएस कोटे को लागू कर दिया जाए तो आरक्षण 82 फीसदी पहुंच जाएगा। हालांकि मुख्यमंत्री ने इस 10 फ़ीसदी आरक्षण पर कोई फैसला नहीं लिया है.

अधिकारियों ने जताई नाराजगी
छत्तीसगढ़ में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण को लेकर वरिष्ठ अधिकारयों ने भी चिंता जताई है. पूर्व एडिशनल चीफ सेक्रेटरी और वरिष्ठ आईएएस बीकेएस रे ने कहा कि आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का उल्लंघन न हो. राजनीतिक पार्टियों ने श्रेय लेने की राजनीति के लिए ही लगातार आरक्षण का उपयोग कर रही है.

उन्होंने कहा कि मैं आरक्षण का विरोध नहीं करता लेकिन इसे भी नियमों के तहत करना चाहिए. सस्ती लोकप्रियता के लिए केवल आरक्षण बढ़ाते रहेंगे तो इसके दूरगामी परिणाम ठीक नहीं होंगे. अधिकारी ने कहा कि कोई इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दे तो इस निर्णय को रद्द करना पड़ सकता है.

भाजपा ने कांग्रेस पर लगाए आरोप
वहीं राज्य सरकार की ओर से आरक्षण बढ़ाने को लेकर भाजपा के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने आरक्षण को लेकर कहा है कि कांग्रेस सरकार लोगों को गुमराह करने का काम कर रही है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के लोगों को भी उनका समुचित हक नहीं मिल पा रहा है. इस सरकार ने नौकरी पर पाबंदी लगा रखी है. केंद्र सरकार ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का एलान किया है, वो भी यहां नही मिल रहा है. मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री आरक्षण के मामले में लोगो को गुमराह कर रहे हैं.

शिव डहेरिया ने दिया बड़ा बयान
वहीं राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री शिव डहरिया ने कहा कि यह मायने नही रखता सुप्रीम कोर्ट में किस तरह का प्रावधान किया है. चूंकि केंद्र की सरकार ने खुद करीब 58 फीसदी तक आरक्षण दिया है. इसलिए राज्य में बढ़कर 72 प्रतिशत आरक्षण होना मायने नहीं रखता.

'आर्थिक आधार पर हो आरक्षण'
आरक्षण को लेकर भले ही राजनीतिक पार्टियां और सत्ता सरकार के जवाबदार जो भी कहते रहे, लेकिन तमाम समाज के लोगों की अपनी अलग तरह की राय है. छत्तीसगढ़ समाज पार्टी के पदाधिकारी का कहना है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण होना चाहिए.

ऐसा नहीं है कि इस तारीख को लगने वाला छत्तीसगढ़ में पहला राज्य है बल्कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश समेत ऐसे कई राज्य हैं, जहां राज्य सरकारों ने गाइडलाइन को तोड़कर आरक्षण दे रही है लेकिन इनमें उत्तर भारत का एक भी राज्य नहीं है.

रायपुर: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अनुसूचित जाति को 13, अनुसूचित जनजाति को 32 और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के एलान के साथ ही प्रदेश में रिजवर्शेन बढ़कर 72 फीसदी हो गया है. सीएम की इस घोषणा पर न सिर्फ विपक्षी पार्टी ने सवाल खड़े किए हैं बल्कि वरिष्ठ अफसरों ने भी नाराजगी जताई है.

रिजर्वेशन पर राजनीति

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग को 72 फीसदी आरक्षण दिए जाने की घोषणा कर बड़ा दांव खेल दिया. राज्य में अभी तक इन तीनों को मिलाकर कुल 58 फीसदी ही आरक्षण दिया जा रहा था. इस तरह से आरक्षण बढ़ने में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का भी उल्लंघन हो रहा है. इसे लेकर तमाम राजनीतिक दलों ने तो आपत्ति जताई ही है, लेकिन प्रशासनिक विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाते हुए कहा है कि आरक्षण केवल श्रेय और सस्ती लोकप्रियता लेने का एक जरिया बन गया है.

  • छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार के इस फ़ैसले के बाद पहले जहां राज्य में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत था अब यह बढ़कर 27 फीसदी हो जाएगा.
  • एससी यानी अनुसूचित जाति के लिए भी एक प्रतिशत आरक्षण बढ़ाया गया है. अब एससी के लिए 13 प्रतिशत आरक्षण होगा. एसटी यानी अनुसूचित जनजाति के लिए राज्य में पहले से ही 32 फीसदी आरक्षण है. अब इन तीनों वर्गों को जोड़ लें तो सरकारी नौकरियों और शिक्षा में कुल 72 प्रतिशत आरक्षण हो जाएगा. यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50% की सीमा से 50% ज्यादा है.
  • अगर सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत केंद्र के अनिवार्य ईडब्ल्यूएस कोटे को लागू कर दिया जाए तो आरक्षण 82 फीसदी पहुंच जाएगा। हालांकि मुख्यमंत्री ने इस 10 फ़ीसदी आरक्षण पर कोई फैसला नहीं लिया है.

अधिकारियों ने जताई नाराजगी
छत्तीसगढ़ में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण को लेकर वरिष्ठ अधिकारयों ने भी चिंता जताई है. पूर्व एडिशनल चीफ सेक्रेटरी और वरिष्ठ आईएएस बीकेएस रे ने कहा कि आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का उल्लंघन न हो. राजनीतिक पार्टियों ने श्रेय लेने की राजनीति के लिए ही लगातार आरक्षण का उपयोग कर रही है.

उन्होंने कहा कि मैं आरक्षण का विरोध नहीं करता लेकिन इसे भी नियमों के तहत करना चाहिए. सस्ती लोकप्रियता के लिए केवल आरक्षण बढ़ाते रहेंगे तो इसके दूरगामी परिणाम ठीक नहीं होंगे. अधिकारी ने कहा कि कोई इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दे तो इस निर्णय को रद्द करना पड़ सकता है.

भाजपा ने कांग्रेस पर लगाए आरोप
वहीं राज्य सरकार की ओर से आरक्षण बढ़ाने को लेकर भाजपा के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने आरक्षण को लेकर कहा है कि कांग्रेस सरकार लोगों को गुमराह करने का काम कर रही है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के लोगों को भी उनका समुचित हक नहीं मिल पा रहा है. इस सरकार ने नौकरी पर पाबंदी लगा रखी है. केंद्र सरकार ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का एलान किया है, वो भी यहां नही मिल रहा है. मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री आरक्षण के मामले में लोगो को गुमराह कर रहे हैं.

शिव डहेरिया ने दिया बड़ा बयान
वहीं राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री शिव डहरिया ने कहा कि यह मायने नही रखता सुप्रीम कोर्ट में किस तरह का प्रावधान किया है. चूंकि केंद्र की सरकार ने खुद करीब 58 फीसदी तक आरक्षण दिया है. इसलिए राज्य में बढ़कर 72 प्रतिशत आरक्षण होना मायने नहीं रखता.

'आर्थिक आधार पर हो आरक्षण'
आरक्षण को लेकर भले ही राजनीतिक पार्टियां और सत्ता सरकार के जवाबदार जो भी कहते रहे, लेकिन तमाम समाज के लोगों की अपनी अलग तरह की राय है. छत्तीसगढ़ समाज पार्टी के पदाधिकारी का कहना है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण होना चाहिए.

ऐसा नहीं है कि इस तारीख को लगने वाला छत्तीसगढ़ में पहला राज्य है बल्कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश समेत ऐसे कई राज्य हैं, जहां राज्य सरकारों ने गाइडलाइन को तोड़कर आरक्षण दे रही है लेकिन इनमें उत्तर भारत का एक भी राज्य नहीं है.

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रायपुर। छत्तीसगढ़ में जातिगत आरक्षण में किए गए बदलाव के बाद अब प्रदेश में आरक्षण का दायरा 72 फ़ीसदी तक पहुंच गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग को 72 फ़ीसदी आरक्षण दिए जाने की घोषणा कर बड़ा दांव खेल दिया। राज्य में अभी तक इन तीनों को मिलाकर कुल 58 फीसदी ही आरक्षण दिया जा रहा था। इस तरह से आरक्षण बढ़ने में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का भी उल्लंघन हो रहा है। इसे लेकर तमाम राजनीतिक दलों ने तो आपत्ति जताया ही है, लेकिन प्रशासनिक विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई है कि आरक्षण केवल श्रेय और सस्ती लोकप्रियता लेने का एक जरिया बन गया है।
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वीओ- 1

छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार के इस फ़ैसले के बाद पहले जहाँ राज्य में ओबीसी आरक्षण 14 फ़ीसदी था अब यह बढ़कर 27 फ़ीसदी हो जाएगा। एससी यानी अनुसूचित जाति के लिए भी एक फ़ीसदी आरक्षण बढ़ाया गया है। अब एससी के लिए 13 फ़ीसदी आरक्षण होगा। एसटी यानी अनुसूचित जनजाति के लिए राज्य में पहले से ही 32 फ़ीसदी आरक्षण है। अब इन तीनों वर्गों को जोड़ लें तो सरकारी नौकरियों और शिक्षा में कुल 72 फ़ीसदी आरक्षण हो जाएगा। यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फ़ीसदी की सीमा से 22 फ़ीसदी ज़्यादा है। यदि सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत केंद्र के अनिवार्य ईडब्ल्यूएस कोटे को लागू कर दिया जाए तो आरक्षण 82 फ़ीसदी पहुँच जाएगा। हालाँकि मुख्यमंत्री ने इस 10 फ़ीसदी आरक्षण पर कोई फ़ैसला नहीं लिया है। छत्तीसगढ़ में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण को लेकर वरिष्ठ अधिकारयों ने भी चिंता जताई है। पूर्व एडिशनल चीफ सेक्रेटरी और वरिष्ठ आईएएस बीकेएस रे ने कहा कि आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का उल्लंघन ना हो। राजनीतिक पार्टियों ने श्रेय लेने की राजनीति के लिए ही लगातार आरक्षण का उपयोग कर रही है। उन्होंने कहा कि मैं आरक्षण का विरोध नही करता लेकिन इसे भी नियमो के तहत करना चाहिए। सस्ती लोकप्रियता के लिए केवल आरक्षण बढ़ाते रहेंगे तो इसके दूरगामी परिणाम ठीक नही होंगे। कोई इस निर्णय को न्यायालय में चुनोती दे तो इस निर्णय को रद्द करना पड़ सकता है

बाईट- बीकेएस रे, पूर्व एसीएस और वरिष्ठ अधिकारी

वीओ- 2

वही राज्य सरकार की ओर से आरक्षण बढ़ाने को लेकर भाजपा के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने आरक्षण को लेकर कहा है कि कांग्रेस सरकार लोगो को गुमराह करने का काम कर रही है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के लोगो को भी उनका समुचित हक नही मिल पा रहा है। इस सरकार ने नौकरी पर पाबंदी लगा रखी है। केंद्र सरकार ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का एलान किया है वो भी यहां नही मिल रहा है मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री आरक्षण के मामले में लोगो को गुमराह कर रहे है। वही राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री शिव डहरिया ने कहा कि यह मायने नही रखता सुप्रीमकोर्ट में किस तरह का प्रावधान किया है। चूंकि केंद्र की सरकार ने खुद करीब 58 फीसदी तक आरक्षण दिया है। इसलिए राज्य में बढ़कर 72 प्रतिशत आरक्षण होना मायने नही रखता।

बाईट- बृजमोहन अग्रवाल, पूर्व केबिनेट मंत्री
बाईट- शिव डहरिया, नगरीय प्रशासन मंत्री

वीओ 3

आरक्षण को लेकर भले ही राजनीतिक पार्टियां और सत्ता सरकार के जवाबदार जो भी कहते रहे, लेकिन तमाम समाज के लोगों की अपनी अलग तरह की राय है। इसमें छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं किसान वर्ग के लोगों से हमने चर्चा की तो उन्होंने भी कहा कि वे जाति आधारित आरक्षण के बजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने को लेकर ज्यादा पक्षधर दिखे।
बाईट- जागेश्वर प्रसाद, वरिष्ठ पदाधिकारी, छत्तीसगढ़ समाज पार्टी

Conclusion:फाइनल वीओ

ऐसा नहीं है कि इस तारीख को लगने वाला छत्तीसगढ़ में पहला राज्य है बल्कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश समेत ऐसे कई राज्य हैं जहां राज्य सरकारों ने गाइडलाइन को तोड़कर आरक्षण दे रही है लेकिन इनमें उत्तर भारत का एक भी राज्य नहीं है

पीटीसी

मयंक ठाकुर, ईटीवी भारत, रायपुर
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