रायपुर: छत्तीसगढ़ में 15 साल की सत्ता सरकार से जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी में एक बार फिर से आदिवासी नेता मुखर हो गए हैं. दिग्गज भाजपा नेता नंद कुमार साय के बंगले में बीते दिनों आदिवासी समाज की बड़ी बैठक हुई थी. जिसमें प्रदेश के तमाम बड़े भाजपा के नेता भी शामिल हुए थे. नंद कुमार साय के नेतृत्व में हुई इस बैठक के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय ने ईटीवी भारत से बातचीत की है. इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी बात खुलकर रखी है.
नंदकुमार साय छत्तीसगढ़ ही नहीं अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर से आदिवासी और बेहद विद्वान नेता के तौर पर जाने जाते हैं. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद विधानसभा में पहले नेता प्रतिपक्ष भी रह चुके हैं. उन्होंने वर्तमान में छत्तीसगढ़ में भाजपा के हालातों को लेकर कई मुद्दों पर नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि विषम परिस्थितियों में पार्टी को खड़ा करने के लिए ताकतवर नेतृत्व की जरूरत है. अब पूरी पार्टी को एकजुट होकर नए सिरे से पार्टी को खड़ा करने पर काम करने की जरूरत है.
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आदिवासी नेतृत्व को लेकर चर्चा
नंद कुमार साय ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में 15 सालों से सत्ता सरकार के बाद भी आदिवासी समाज को उनके महत्व के हिसाब से तवज्जो नहीं मिल पाया है. छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण भी आदिवासी और अनुसूचित जाति जनजाति जैसे पिछड़े वर्ग को आगे बढ़ाने के उद्देश्य के साथ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था. लेकिन आदिवासियों की वर्तमान में स्थिति दयनीय है. आदिवासी समाज ने बैठक करके आने वाले समय को लेकर रणनीति बनाई है. आदिवासी समाज को कैसे ताकतवर बनाया जाए इसे लेकर समाज के प्रमुख नेताओं के साथ बैठक में गंभीर चर्चा भी हुई है.
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छत्तीसगढ़ में भाजपा बेहद कमजोर
वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने चर्चा के दौरान कहा कि बीजेपी छत्तीसगढ़ में काफी कमजोर हो गई है. यहां स्थिति बेहद चिंताजनक है. आदिवासी समाज पार्टी से पूरी तरह से दूर हो गया है. बस्तर और सरगुजा से बीजेपी का पूरी तरह से सफाया हो चुका है. बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बाहुल्य इलाके में बीजेपी को एक भी सीट नसीब ना हो पाना आदिवासी समाज के नाराजगी को साफ तौर पर जाहिर करता है. जिस तरह से छत्तीसगढ़ में लंबे संघर्ष के बाद राज्य का निर्माण हुआ और भाजपा की सत्ता सरकार में आई, 15 सालों की सत्ता के बाद आज आदिवासी समाज की इतनी नाराजगी झेलना पड़ रही है. तो ऐसे में कहीं ना कहीं पार्टी को समाज के प्रति विचार करने की जरूरत है.
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छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग
छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवाने के बाद लंबे समय से आदिवासी समाज के नाराजगी को लेकर तमाम आदिवासी लीडर एकजुट हो रहे हैं. यही वजह है कि वरिष्ठ नेता नंद कुमार साय के घर पर भाजपा के आदिवासी नेताओं की बड़ी मीटिंग हुई है. जिसमें रामविचार नेताम और ननकीराम कंवर जैसे तमाम लीडर बैठक में शामिल हुए थे. नंद कुमार साय ने ईटीवी भारत से बात करते हुए स्वीकार किया है कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेतृत्व की जरूरत है. जिस तरह से लंबे समय से आदिवासी समाज को अनदेखी करते हुए सत्ता चलाई गई है इसकी नाराजगी साफ तौर पर चुनाव परिणामों में देखने को मिली है. छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य होने के बावजूद भी राजनीतिक मंत्रिमंडल के नेतृत्व में आदिवासी नेतृत्व ना होने को लेकर कई तरह की नाराजगी समय-समय पर देखी गई है. अब समाज को लीडरशिप देने की जरूरत है.
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भाजपा को 2003 के दौर जैसी लड़ाई की जरूरत
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय ने छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थिति को लेकर चिंता जताई है. ईटीवी भारत से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि साल 2000 में छत्तीसगढ़ बनने के बाद जिस तरह से भय और आतंक का माहौल था, वह स्थिति अब एक बार फिर से दिखने लगी है. उस दौर में जिस तरह से पार्टी एकजुट होकर सड़क से लेकर सदन तक सत्ता सरकार के खिलाफ लड़ी थी, वैसी ही लड़ाई की जरूरत है. उन्होंने अपने दौर को याद करते हुए कहा कि उस दौर में वह नेता प्रतिपक्ष रहे हैं, जब सदन में भी सत्तापक्ष चर्चा से बचा करता था. वे कहते हैं कि जिस तरह से वर्तमान भारत में भारतीय जनता पार्टी दिख रही है, ऐसे में कार्यकर्ताओं में भारी निराशा है. पार्टी को खड़ा करने के लिए एक बड़े मंथन की आवश्यकता है. साथ ही सभी मतभेदों को भुलाकर एक मंच में आकर अब पार्टी को खड़ा करना ही मुख्य उद्देश्य होना चाहिए.