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हरेली खुशियों का त्यौहार या अंधविश्वास का बाजार ! - blind faith removal committee chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार के समय अंधविश्वास की घटनाएं बढ़ जाती हैं.जिन्हें रोकने के लिए कई संस्थाएं जी जान से जुटी ( era of superstition in the festival of Hareli in Chhattisgarh) हैं.

era of superstition in the festival of Hareli in Chhattisgarh
हरेली खुशियों का त्यौहार या अंधविश्वास का बाजार
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Published : Jul 26, 2022, 6:03 AM IST

रायपुर : हरेली का त्यौहार छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. हरेली छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार ( era of superstition in the festival of Hareli in Chhattisgarh) है. हरेली के बाद से छत्तीसगढ़ में त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. हरेली में किसान खेती किसानी के उपकरणों और बैलों की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि के लिए कामना करते हैं. हरेली के दिन ज्यादातर लोग अपने कुल देवता और ग्राम देवता की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में हरेली का त्यौहार सुख और समृद्धि के साथ टोना टोटका के लिए भी काफी जाना जाता है. कहा जाता है कि अमावस की रात काली शक्तियां अपने चरम पर होती है. हरेली के त्यौहार के दिन आमावस की रात होती है. कहा जाता है कि इस वजह से इस दिन छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में टोना टोटका काफी ज्यादा होता (Superstition of sorcery in Hareli festival) है. हालांकि अब ऐसी चीजें काफी कम सुनने को मिलती है.

हरेली खुशियों का त्यौहार या अंधविश्वास का बाजार
क्यों बढ़ा है अंधविश्वास : अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (blind faith removal committee chhattisgarh) के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र ने बताया " हरेली का त्योहार सावन में मनाया जाने वाला त्यौहार है. हरेली के त्यौहार से ही छत्तीसगढ़ में त्योहारों की शुरुआत होती है.हरेली का त्यौहार सावन महीने में मनाया जाता है और इस दिन अमावस की रात रहती है. इस वजह से बहुत सारी घटना ऐसी होती है , जिसमें निर्दोष महिलाओं को जादू टोने के शक में मारा-पीटा जाता है या फिर उन्हें जान से भी मार दिया जाता है. हरेली के त्यौहार को लेकर बहुत सारे लोगों में यह गलत धारणा है कि हरेली की रात जादू टोना करने वाली महिलाएं रात को निकलती है और उनके मुंह से अंगार निकलता है. हमने कई ऐसे भी मामले देखे और सुने हैं जिसमें टोना जादू के भ्रम होने पर महिलाओं को घेर कर मारा पीटा गया और उन्हें निर्वस्त्र कर उनको प्रताड़ना दी गई. यह सब को देखते हुए हमले 1995 में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति बनाई. इस समिति के माध्यम से हमने गांव-गांव जाकर लोगों को इस बारे में जागरूक किया. गांव के बुद्धिजीवी छात्रों और युवा पीढ़ी से बातचीत की , हमारा अनेक गांव में जाना होता है और पिछले 25 सालों में हमने एक भी ऐसी महिला नहीं मिली जिस पर शक किया जा सकता है कि वह किसी को मार सकती है.''

कई राज्यों में महिलाओं की जान को खतरा : अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र ने बताया " विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होती है , तो वह वायरस , फंगल इनफेक्शन , बैक्टीरिया , दुर्घटना , कुपोषण या किसी भी तरह की बीमारी से होती है. काला जादू , सफेद जादू , तंत्र मंत्र , टोना जादू करने से मौत नहीं होता है. यह बहुत दु:ख की बात है कि इस तरह के अंधविश्वास ना केवल छत्तीसगढ़ बल्कि आसपास के राज्य झारखंड , बिहार , उड़ीसा जैसे अन्य राज्यों में भी इस तरीके के मामले देखने को मिलते हैं.छत्तीसगढ़ में इस तरह के मामले में महिलाओं को टोनही कहा जाता (Incidents of sorcery in Hareli) है. वहीं अन्य राज्यों में महिला को डायन कहा जाता है. हजारों की संख्या में इस तरह के कई मामले रजिस्टर है जिसमें महिलाओं को टोनी या डायन बताकर प्रताड़ित किया जाता है.''

अंधविश्वास रोकने के लिए क्या कदम उठाया गया : डॉ दिनेश मिश्र ने बताया " महिलाओं को टोनी या डायन बताकर प्रताड़ित करने की घटना को देखते हुए हमने सरकार से इसको लेकर एक्ट बनाने की गुजारिश की थी. सरकार ने 2005 में "छत्तीसगढ़ राज्य टोनी प्रताड़ना एक्ट" बनाया. इस एक्ट के अंतर्गत व्यवस्था है कि अगर कोई भी व्यक्ति महिला को डायन या टोनही कहकर प्रताड़ित करता है. तो उसे जुर्माना और सजा दोनों हो सकती है. पिछले कुछ सालों में बिहार, झारखंड,असम जैसे कुछ राज्यों में भी इस तरह के कानून बने हैं. हमारी अभी यह मांग है कि इस पर राष्ट्रीय स्तर पर एक कानून बनाया जाए। हमने जब जानकारी निकाली तो यह पता चला कि देश के 17 राज्य ऐसे हैं जहां पर डायन या टोनही बताकर महिलाओं को प्रताड़ित करने की सूचना लगातार सामने आती है."


अंधविश्वास रोकने के लिए क्या : डॉ दिनेश मिश्र ने बताया " जब 1995 में हमने संस्था की शुरुआत की और हम लोगों को जागरूक करने के लिए गांव जाते थे. गांव में घुसने में कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता था. जब हमें किसी गांव से इस तरह की शिकायत मिलती थी. तो हम वहां जाते थे तो कोई उस बारे में बताने को तैयार नहीं होता था. कई बार महिला को छुपा दिया जाता था. कई बार महिला की लाश को गायब भी कर दिया जाता था. कई बार जला भी दिया जाता था. परिवार के लोगों की शिकायत के बाद कानूनी कार्रवाई होती थी. ऐसी घटना रायपुर के नजदीक तर्रा के पास भी हुई थी. तर्रा में एक महिला पर लोगों का शक था कि महिला ने टोना जादू से अपने पड़ोसी को बीमार किया है. जिसके बाद गांव के लोगों ने महिला को रात को उनके घर से निकाल कर उसे मार डाला. जब हमें इस बात का पता चला और हम वहां गए तो कोई बात करने को तैयार नहीं था। लेकिन धीरे-धीरे जब हमने इस बात की छानबीन की लोगों से मिले पुलिस से बातचीत की तब पता चला कि महिला के पड़ोसी को जो बीमार था वह बैक्टीरिया के कारण बीमार हुआ था और जिस महिला को मारा गया वह बेकसूर थी."

रायपुर : हरेली का त्यौहार छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. हरेली छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार ( era of superstition in the festival of Hareli in Chhattisgarh) है. हरेली के बाद से छत्तीसगढ़ में त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. हरेली में किसान खेती किसानी के उपकरणों और बैलों की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि के लिए कामना करते हैं. हरेली के दिन ज्यादातर लोग अपने कुल देवता और ग्राम देवता की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में हरेली का त्यौहार सुख और समृद्धि के साथ टोना टोटका के लिए भी काफी जाना जाता है. कहा जाता है कि अमावस की रात काली शक्तियां अपने चरम पर होती है. हरेली के त्यौहार के दिन आमावस की रात होती है. कहा जाता है कि इस वजह से इस दिन छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में टोना टोटका काफी ज्यादा होता (Superstition of sorcery in Hareli festival) है. हालांकि अब ऐसी चीजें काफी कम सुनने को मिलती है.

हरेली खुशियों का त्यौहार या अंधविश्वास का बाजार
क्यों बढ़ा है अंधविश्वास : अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (blind faith removal committee chhattisgarh) के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र ने बताया " हरेली का त्योहार सावन में मनाया जाने वाला त्यौहार है. हरेली के त्यौहार से ही छत्तीसगढ़ में त्योहारों की शुरुआत होती है.हरेली का त्यौहार सावन महीने में मनाया जाता है और इस दिन अमावस की रात रहती है. इस वजह से बहुत सारी घटना ऐसी होती है , जिसमें निर्दोष महिलाओं को जादू टोने के शक में मारा-पीटा जाता है या फिर उन्हें जान से भी मार दिया जाता है. हरेली के त्यौहार को लेकर बहुत सारे लोगों में यह गलत धारणा है कि हरेली की रात जादू टोना करने वाली महिलाएं रात को निकलती है और उनके मुंह से अंगार निकलता है. हमने कई ऐसे भी मामले देखे और सुने हैं जिसमें टोना जादू के भ्रम होने पर महिलाओं को घेर कर मारा पीटा गया और उन्हें निर्वस्त्र कर उनको प्रताड़ना दी गई. यह सब को देखते हुए हमले 1995 में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति बनाई. इस समिति के माध्यम से हमने गांव-गांव जाकर लोगों को इस बारे में जागरूक किया. गांव के बुद्धिजीवी छात्रों और युवा पीढ़ी से बातचीत की , हमारा अनेक गांव में जाना होता है और पिछले 25 सालों में हमने एक भी ऐसी महिला नहीं मिली जिस पर शक किया जा सकता है कि वह किसी को मार सकती है.''

कई राज्यों में महिलाओं की जान को खतरा : अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र ने बताया " विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होती है , तो वह वायरस , फंगल इनफेक्शन , बैक्टीरिया , दुर्घटना , कुपोषण या किसी भी तरह की बीमारी से होती है. काला जादू , सफेद जादू , तंत्र मंत्र , टोना जादू करने से मौत नहीं होता है. यह बहुत दु:ख की बात है कि इस तरह के अंधविश्वास ना केवल छत्तीसगढ़ बल्कि आसपास के राज्य झारखंड , बिहार , उड़ीसा जैसे अन्य राज्यों में भी इस तरीके के मामले देखने को मिलते हैं.छत्तीसगढ़ में इस तरह के मामले में महिलाओं को टोनही कहा जाता (Incidents of sorcery in Hareli) है. वहीं अन्य राज्यों में महिला को डायन कहा जाता है. हजारों की संख्या में इस तरह के कई मामले रजिस्टर है जिसमें महिलाओं को टोनी या डायन बताकर प्रताड़ित किया जाता है.''

अंधविश्वास रोकने के लिए क्या कदम उठाया गया : डॉ दिनेश मिश्र ने बताया " महिलाओं को टोनी या डायन बताकर प्रताड़ित करने की घटना को देखते हुए हमने सरकार से इसको लेकर एक्ट बनाने की गुजारिश की थी. सरकार ने 2005 में "छत्तीसगढ़ राज्य टोनी प्रताड़ना एक्ट" बनाया. इस एक्ट के अंतर्गत व्यवस्था है कि अगर कोई भी व्यक्ति महिला को डायन या टोनही कहकर प्रताड़ित करता है. तो उसे जुर्माना और सजा दोनों हो सकती है. पिछले कुछ सालों में बिहार, झारखंड,असम जैसे कुछ राज्यों में भी इस तरह के कानून बने हैं. हमारी अभी यह मांग है कि इस पर राष्ट्रीय स्तर पर एक कानून बनाया जाए। हमने जब जानकारी निकाली तो यह पता चला कि देश के 17 राज्य ऐसे हैं जहां पर डायन या टोनही बताकर महिलाओं को प्रताड़ित करने की सूचना लगातार सामने आती है."


अंधविश्वास रोकने के लिए क्या : डॉ दिनेश मिश्र ने बताया " जब 1995 में हमने संस्था की शुरुआत की और हम लोगों को जागरूक करने के लिए गांव जाते थे. गांव में घुसने में कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता था. जब हमें किसी गांव से इस तरह की शिकायत मिलती थी. तो हम वहां जाते थे तो कोई उस बारे में बताने को तैयार नहीं होता था. कई बार महिला को छुपा दिया जाता था. कई बार महिला की लाश को गायब भी कर दिया जाता था. कई बार जला भी दिया जाता था. परिवार के लोगों की शिकायत के बाद कानूनी कार्रवाई होती थी. ऐसी घटना रायपुर के नजदीक तर्रा के पास भी हुई थी. तर्रा में एक महिला पर लोगों का शक था कि महिला ने टोना जादू से अपने पड़ोसी को बीमार किया है. जिसके बाद गांव के लोगों ने महिला को रात को उनके घर से निकाल कर उसे मार डाला. जब हमें इस बात का पता चला और हम वहां गए तो कोई बात करने को तैयार नहीं था। लेकिन धीरे-धीरे जब हमने इस बात की छानबीन की लोगों से मिले पुलिस से बातचीत की तब पता चला कि महिला के पड़ोसी को जो बीमार था वह बैक्टीरिया के कारण बीमार हुआ था और जिस महिला को मारा गया वह बेकसूर थी."

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