महासमुंदः आपने कभी पर्यावरण बम के बारे में सुना है? अगर नहीं, तो आइए इस अजब-गजब पर्यावरण बम के बारे में जानते हैं. वैसे तो बम का नाम सुनते ही तबाही का कोई मंजर सामने आ जाता है, लेकिन हम जिस बम की बात कर रहें हैं, वह पर्यावरण में हरियाली लाने वाला है. ऐसा विस्फोटक जो धरती को हरा-भरा कर देगा.
महासमुंद जिले में इस पर्यावरण बम को तैयार किया जाता है. इस फलदायी पर्यावरण बम को बनाने के लिए कम से कम सामान की ज़रूरत होती है, जैसे कि मिट्टी, पानी, रेत, जैविक खाद और फलदार बीज. पर्यावरण बम बनाने की इस प्रक्रिया को कैम्प रोपणी कहते हैं.
पर्यावरण बम बनाने का तरीका
- सबसे पहले मिट्टी में पानी डालकर उसे गूंथा जाता है, फिर उसमें जैविक खाद मिलाया जाता है.
- जब यह मिश्रण अच्छे से मिल जाए तो उसमें से गोल आकार, गेंद की तरह के गोले बनाए जाते हैं.
- इसके बाद सभी गोलों को रेत में लपेट कर कुछ देर सूखने के लिए रख दिया जाती है.
- सूखने के बाद हर गोले में एक छेद किया जाता है, जिसमें फलदार बीज जैसे आम, जामुन, बेल, बेर इत्यादि डालकर सूखने के लिए रख दिया जाता है, और इन सबके बाद पर्यावरण बम बनकर तैयार हो जाता है.
50 हजार पर्यावरण बम तैयार करने का लक्ष्य
कैम्प रोपणी के प्रभारी और संयुक्त वन मंडल अधिकारी अतुल श्रीवास्तव का कहना है कि इस रोपणी में पांच लाख मजदूर हर रोज एक हजार पर्यावरण बम तैयार कर रहे हैं और 50 हजार पर्यावरण बम तैयार करने का लक्ष्य मिला है.
इस पर्यावरण बम को तैयार करने में लागत कम आती है और परिवहन करने में भी आसानी होती है. खास बात ये है कि 50 हजार पर्यावरण बम तैयार करने में मात्र तीन हजार रुपए का खर्च आएगा. वहीं पॉलीथिन में पौधे तैयार करने में 1 पौधे पर लगभग 10 रुपए का खर्च आता है. पॉलीथिन पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक साबित होता है.
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हरा-भरा रहेगा पर्यावरण
पर्यावरण बम का उपयोग सबसे पहले नेशनल पार्क सेंचुरी में किया गया था जो सफल रहा. उसके बाद इस वर्ष इसे प्रदेश के प्रत्येक वन मंडल क्षेत्र में तैयार किया जा रहा है. पर्यावरण बम खासकर पहाड़ी और खुले क्षेत्रों के लिए है. जहां पौधों को आसानी से नहीं ले जाया जा सकता, ऐसे इलाकों में बरसात के मौसम में इस पर्यावरण बम को रख दिया जाता है. पानी पड़ने पर यह बम फूट जाते हैं और ये अंकुरित होने लगते हैं, जो बाद में जाकर एक फलदार पेड़ में बदल जाते हैं. जिससे पर्यावरण संरक्षण तो होता ही है साथ ही वन्य जीवन और जन-जीवन प्रदूषण से बचेगा.