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महासमुंद में तैयार हो रहे पर्यावरण बम, इनके फूटने पर निकलेंगे पौधे - 50 हजार पर्यावरण बम

पौधरोपण का नारा चारो तरफ बुलंद हो रहा है. अतीत की गलतियों से सीख लें कर अब हम प्रकृति संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जिसे सवांरने के लिए पर्यावरण बम का निर्माण किया गया है, नुकसान नहीं सिर्फ फायदा ही फायदा देता है.

पर्यावरण बम के फूटने पर निकलेंगे पौधे
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Published : Jul 15, 2019, 11:46 PM IST

Updated : Jul 15, 2019, 11:54 PM IST

महासमुंदः आपने कभी पर्यावरण बम के बारे में सुना है? अगर नहीं, तो आइए इस अजब-गजब पर्यावरण बम के बारे में जानते हैं. वैसे तो बम का नाम सुनते ही तबाही का कोई मंजर सामने आ जाता है, लेकिन हम जिस बम की बात कर रहें हैं, वह पर्यावरण में हरियाली लाने वाला है. ऐसा विस्फोटक जो धरती को हरा-भरा कर देगा.

पर्यावरण बम से निकलगें पौधे

महासमुंद जिले में इस पर्यावरण बम को तैयार किया जाता है. इस फलदायी पर्यावरण बम को बनाने के लिए कम से कम सामान की ज़रूरत होती है, जैसे कि मिट्टी, पानी, रेत, जैविक खाद और फलदार बीज. पर्यावरण बम बनाने की इस प्रक्रिया को कैम्प रोपणी कहते हैं.

पर्यावरण बम बनाने का तरीका

  • सबसे पहले मिट्टी में पानी डालकर उसे गूंथा जाता है, फिर उसमें जैविक खाद मिलाया जाता है.
  • जब यह मिश्रण अच्छे से मिल जाए तो उसमें से गोल आकार, गेंद की तरह के गोले बनाए जाते हैं.
  • इसके बाद सभी गोलों को रेत में लपेट कर कुछ देर सूखने के लिए रख दिया जाती है.
  • सूखने के बाद हर गोले में एक छेद किया जाता है, जिसमें फलदार बीज जैसे आम, जामुन, बेल, बेर इत्यादि डालकर सूखने के लिए रख दिया जाता है, और इन सबके बाद पर्यावरण बम बनकर तैयार हो जाता है.

50 हजार पर्यावरण बम तैयार करने का लक्ष्य
कैम्प रोपणी के प्रभारी और संयुक्त वन मंडल अधिकारी अतुल श्रीवास्तव का कहना है कि इस रोपणी में पांच लाख मजदूर हर रोज एक हजार पर्यावरण बम तैयार कर रहे हैं और 50 हजार पर्यावरण बम तैयार करने का लक्ष्य मिला है.
इस पर्यावरण बम को तैयार करने में लागत कम आती है और परिवहन करने में भी आसानी होती है. खास बात ये है कि 50 हजार पर्यावरण बम तैयार करने में मात्र तीन हजार रुपए का खर्च आएगा. वहीं पॉलीथिन में पौधे तैयार करने में 1 पौधे पर लगभग 10 रुपए का खर्च आता है. पॉलीथिन पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक साबित होता है.

पढ़ें: वन विभाग की अच्छी पहल, लोगों ने दिया साथ तो हो सकता है चमत्कार

हरा-भरा रहेगा पर्यावरण
पर्यावरण बम का उपयोग सबसे पहले नेशनल पार्क सेंचुरी में किया गया था जो सफल रहा. उसके बाद इस वर्ष इसे प्रदेश के प्रत्येक वन मंडल क्षेत्र में तैयार किया जा रहा है. पर्यावरण बम खासकर पहाड़ी और खुले क्षेत्रों के लिए है. जहां पौधों को आसानी से नहीं ले जाया जा सकता, ऐसे इलाकों में बरसात के मौसम में इस पर्यावरण बम को रख दिया जाता है. पानी पड़ने पर यह बम फूट जाते हैं और ये अंकुरित होने लगते हैं, जो बाद में जाकर एक फलदार पेड़ में बदल जाते हैं. जिससे पर्यावरण संरक्षण तो होता ही है साथ ही वन्य जीवन और जन-जीवन प्रदूषण से बचेगा.

महासमुंदः आपने कभी पर्यावरण बम के बारे में सुना है? अगर नहीं, तो आइए इस अजब-गजब पर्यावरण बम के बारे में जानते हैं. वैसे तो बम का नाम सुनते ही तबाही का कोई मंजर सामने आ जाता है, लेकिन हम जिस बम की बात कर रहें हैं, वह पर्यावरण में हरियाली लाने वाला है. ऐसा विस्फोटक जो धरती को हरा-भरा कर देगा.

पर्यावरण बम से निकलगें पौधे

महासमुंद जिले में इस पर्यावरण बम को तैयार किया जाता है. इस फलदायी पर्यावरण बम को बनाने के लिए कम से कम सामान की ज़रूरत होती है, जैसे कि मिट्टी, पानी, रेत, जैविक खाद और फलदार बीज. पर्यावरण बम बनाने की इस प्रक्रिया को कैम्प रोपणी कहते हैं.

पर्यावरण बम बनाने का तरीका

  • सबसे पहले मिट्टी में पानी डालकर उसे गूंथा जाता है, फिर उसमें जैविक खाद मिलाया जाता है.
  • जब यह मिश्रण अच्छे से मिल जाए तो उसमें से गोल आकार, गेंद की तरह के गोले बनाए जाते हैं.
  • इसके बाद सभी गोलों को रेत में लपेट कर कुछ देर सूखने के लिए रख दिया जाती है.
  • सूखने के बाद हर गोले में एक छेद किया जाता है, जिसमें फलदार बीज जैसे आम, जामुन, बेल, बेर इत्यादि डालकर सूखने के लिए रख दिया जाता है, और इन सबके बाद पर्यावरण बम बनकर तैयार हो जाता है.

50 हजार पर्यावरण बम तैयार करने का लक्ष्य
कैम्प रोपणी के प्रभारी और संयुक्त वन मंडल अधिकारी अतुल श्रीवास्तव का कहना है कि इस रोपणी में पांच लाख मजदूर हर रोज एक हजार पर्यावरण बम तैयार कर रहे हैं और 50 हजार पर्यावरण बम तैयार करने का लक्ष्य मिला है.
इस पर्यावरण बम को तैयार करने में लागत कम आती है और परिवहन करने में भी आसानी होती है. खास बात ये है कि 50 हजार पर्यावरण बम तैयार करने में मात्र तीन हजार रुपए का खर्च आएगा. वहीं पॉलीथिन में पौधे तैयार करने में 1 पौधे पर लगभग 10 रुपए का खर्च आता है. पॉलीथिन पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक साबित होता है.

पढ़ें: वन विभाग की अच्छी पहल, लोगों ने दिया साथ तो हो सकता है चमत्कार

हरा-भरा रहेगा पर्यावरण
पर्यावरण बम का उपयोग सबसे पहले नेशनल पार्क सेंचुरी में किया गया था जो सफल रहा. उसके बाद इस वर्ष इसे प्रदेश के प्रत्येक वन मंडल क्षेत्र में तैयार किया जा रहा है. पर्यावरण बम खासकर पहाड़ी और खुले क्षेत्रों के लिए है. जहां पौधों को आसानी से नहीं ले जाया जा सकता, ऐसे इलाकों में बरसात के मौसम में इस पर्यावरण बम को रख दिया जाता है. पानी पड़ने पर यह बम फूट जाते हैं और ये अंकुरित होने लगते हैं, जो बाद में जाकर एक फलदार पेड़ में बदल जाते हैं. जिससे पर्यावरण संरक्षण तो होता ही है साथ ही वन्य जीवन और जन-जीवन प्रदूषण से बचेगा.

Intro:एंकर - बम के बारे में तो आप जानते ही होंगे और बम इस कदर तबाही मचाता है इसके बारे में आए दिन समाचार पत्रों में टेलीविजन समाचार में अपने देखा सुना व पड़ा होगा पर हम जिस बम की बात आपको बताने वाली खाने जा रहे हैं उसे पर्यावरण बम कहते हैं जिससे किसी कि ना तो जान जाएगी और ना ही कोई घायल होगा बल्कि इस पर्यावरण बम में पर्यावरण संतुलित होगा और लोगों को अच्छा व ताजा फल खाने को मिलेंगे देखिए यह रिपोर्ट...


Body:वीओ 1 - महासमुंद जिले के इस कैंपा रोपणी पानी में तैयार किया जाता है पर्यावरण बम जी हां इस बम को तैयार करने के लिए मिट्टी पानी रेट जैविक खाद एवं फलदार बीच की आवश्यकता होती है सबसे पहले मिट्टी में पानी डालकर गुथते हैं फिर उसमें जैविक खाद मिलाते हैं और जब जैविक खाद अच्छे से मिल जाता है तो उसे गेंद के आकार की तरह गोल बनाते हैं उसके बाद रेत में लपेट कर कुछ देर सूखने के लिए रख देते हैं उसके बाद इस में एक छेद करते हैं और फलदार बीज आम,जामुन, बेल, बेर इत्यादि डालकर सूखने के लिए रख देते हैं उसके बाद पर्यावरण बम बना कर तैयार हो जाता है पर्यावरण बम का उपयोग सबसे पहले नेशनल पार्क सेंचुरी में किया गया था जो सफल रहा उसके बाद इस वर्ष इसे प्रदेश के प्रत्येक वन मंडल क्षेत्र में तैयार किया जा रहा है पर्यावरण बम खासकर उन इलाकों के लिए है जैसे पहाड़ी क्षेत्र खुला क्षेत्र जहां पौधे को कैरी कर आसानी से नहीं ले जा सकता ऐसे इलाकों में बरसात के मौसम में इस पर्यावरण बम को रख दिया जाता है और पानी पड़ने पर यह बम फूट जाते हैं और इसमें अंकुरण होने लगता है जो बाद में जाकर एक फलदार पौधे में तब्दील हो जाता है जिससे पर्यावरण संरक्षण तो होती ही है साथ ही वन्य प्राणी के साथ इंसान को भी फल खाने को मिलता है।


Conclusion:वीओ 2 - कैम्प रोपणी के प्रभारी का कहना है कि इस रोपणी में पांच लाख मजदूर प्रत्येक दिन 1000 पर्यावरण बम तैयार कर रहे हैं और 50,000 पर्यावरण बम तैयार करने का लक्ष्य मिला है गौरतलब है कि इस पर्यावरण बम को तैयार करने में लागत कम आती है और परिवहन करने में भी आसानी होती है 50,000 पर्यावरण बम तैयार करने में मात्र ₹3000 खर्च आएंगे वहीं पॉलिथीन में तैयार करने में 1 पौधे में लगभग ₹10 का खर्च आता है साथ ही पॉलिथीन में पर्यावरण भी प्रभावित होती है।

one2one - अतुल श्रीवास्तव संयुक्त वन मंडल अधिकारी महासमुंद

हकीमुद्दीन नासिर रिपोर्टर ईटीवी भारत महासमुंद छत्तीसगढ़ मो. 9826555052
Last Updated : Jul 15, 2019, 11:54 PM IST
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