रायपुर: कोरोना के फैलते संक्रमण के बीच एक नई बीमारी ने दस्तक दे दी है. कोरोना संक्रमण से ठीक हुए मरीज अब ब्लैक फंगस (Black Fungus) या म्यूकर माइकोसिस (Mucormycosis) का शिकार हो रहे हैं. मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्था, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में ब्लैक फंगस का संक्रमण देखने को मिल रहा है. रायपुर एम्स में ब्लैक फंगस के 15 मरीज एडमिट हैं. वहीं भिलाई में इस बीमारी ने एक युवक की जान ले ली है. ब्लैक फंगस से छत्तीसगढ़ में मौत का यह पहला मामला है. ब्लैक फंगस से मौत की खबर ने स्वास्थ्य महकमे की चिंता बढ़ा दी है. ब्लैक फंगस क्या है और कोरोना से कैसे रिलेट करता है? किस उम्र के लोगों में ये ज्यादा देखा जा रहा है? अचानक भारत में ये क्यों बढ़ गया ? क्या कोरोना से पहले भी ये बीमारीा थी ? इसका इलाज क्या है और इससे बचने का क्या तरीका है? ETV भारत ने इन सब सवालों के जवाब के लिए रायपुर के ENT स्पेशलिस्ट डॉक्टर राकेश गुप्ता से खास बातचीत की.
सवाल: ब्लैक फंगस क्या है और यह पोस्ट कोविड मरीज में ही ज्यादा देखने को क्यों मिल रहा है ?
डॉ. राकेश गुप्ता: ब्लैक फंगस एक विशेष प्रकार का फंगल इंफेक्शन है. ये बीमारी साइनस, आंख के आसपास, आंख के पीछे वाले हिस्से और आंख के रास्ते से ब्रेन में चली जाती है. यह एक विशेष प्रकार का फंगल इंफेक्शन है जो बहुत एग्रेसिव होता है. बहुत तेजी से फैलता है. ब्लैक फंगस उन क्षेत्रों में ज्यादा प्रभावी दिख रहा है जहां बहुत ज्यादा इंसेक्टिसाइड या कीटनाशकों का प्रयोग होता है. जिनको डायबिटीज है, उनमें ये बहुत देखने को आता है. खासकर उत्तर भारत में इसका प्रभाव ज्यादा दिख रहा है. कोरोना की पहली लहर के दौरान पंजाब, हरियाणा में ब्लैक फंगस बहुत तेजी से फैल रहा था. वहीं दूसरी लहर में छत्तीसगढ़ में भी ब्लैक फंगस के मरीज आने लगे हैं. हमें लगता है कि जैसे-जैसे संक्रमित मरीजों की और ठीक होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ेगी, उन पर असर दिखाई देगा. जिनको पहले से डायबिटीज था. जो बहुत लंबे समय ऑक्सीजन और वेंटिलेटर पर रहे. जिनमें एस्ट्रोराइड का उपयोग बहुतायत में किया गया. एंटीबायोटिक के इंजेक्शन दिए गए. उनमें ब्लैक फंगस मिलने की संभावना ज्यादा है. इसके लक्षणों की पहचान डॉक्टर्स कर रहे हैं. ज्यादातर मरीज जिनमें यह लक्षण दिख रहे हैं, वह जांच के दौरान पॉजिटिव भी आ रहे हैं.
सवाल: क्या यह ब्लैक फंगस पहले भी छत्तीसगढ़ के मरीजों में देखने को मिला है या कोविड बाद यह देखने को मिल रहा है ?
डॉ. राकेश गुप्ता: छत्तीसगढ़ में ब्लैक फंगस बहुत कम लोगों में देखने को आता था. जैसे बड़े इंस्टीट्यूशंस हैं एम्स, मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल है, वहां पर साल में 5-6 मरीज देखने को मिलते थे. जिनमें साइनस है या डायबिटिक पेशेंट हैं. लंबे समय से एंटीबायोटिक खाते रहे हैं, उनमें ये देखने को ज्यादा मिल रहा है. यह लापरवाही के कारण भी फैलता है. लेकिन अभी तो ऐसा हो रहा है कि अचानक ब्लैक फंगस वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है और यह खतरनाक है.
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सवाल: क्या जिनकी इम्युनिटी कमजोर है ? लंबे समय तक वेंटिलेटर पर हैं. जो ऑक्सीजन पर हैं. उनपर ब्लैक फंगल इंफेक्शन ज्यादा अटैक कर रहा है ?
डॉ. राकेश गुप्ता: लंबे समय तक जो मरीज ऑक्सीजन और वेंटिलेटर पर रहे हैं. उनमें इम्युनिटी कमजोर हो गई. ऐसे मरीज जो पहले से डायबिटिक हैं या एंटीबायोटिक लंबे समय से खा रहे हैंं. ह्यूमिडिफायर एयर लंबे समय तक लेते रहे हैं. उन पर असर देखा जा रहा है. नाक के इलाज के साथ या साइनस के इलाज के समय डॉक्टरों ने फेफड़े या नाक की जांच पहले नहीं की. उन लोगों में पहले से कोई इंफेक्शन है. ऐसे लोगों को ब्लैक फंगस होने की संभावना ज्यादा होती है. पहले से मौजूद इंफेक्शन में फंगल ग्रोथ की संभावना ज्यादा रहती है.
सवाल: ब्लैक फंगस के सिम्टम्स क्या हैं ? कैसे पोस्ट कोरोना पेशेंट को पता चलेगा कि इस तरह की बीमारी उन्हें हो रही है ?
डॉ. राकेश गुप्ता: इस बीमारी में शुरुआती दिनों में प्रॉब्लम कान, नाक,गला, दांतों में होती है. ऐसे लोग जिन्हें ब्लैक फंगस या साइनस होता है, उन्हें एक तरफ के जबड़े में, नाक के एक हिस्से में दर्द होता है. आंख के आसपास बहुत तेज सिर दर्द होता है. रात को सोने में दिक्कत होती है. उसी तरह दांतों में दर्द होता है. कुछ का चेहरा धीरे-धीरे काला पड़ने लगता है. ऐसे लोग ज्यादातर डॉक्टर के पास आ रहे हैं. खासकर ऐसे मरीज जिन्हें 1 महीने पहले कोविड हुआ है.
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सवाल: किसी मरीज में अगर ऐसे सिम्टम्स आ रहे हैं, तो किस तरह से डॉक्टर से संपर्क करें ? कई लोगों को इस बारे में पता तक नहीं है ?
डॉ. राकेश गुप्ता: जिन मरीजों को नाक और चेहरे के आसपास दर्द हो रहा है. नाक से पस या खून मिला पानी निकलने की शिकायतें हैं. आंख के आसपास दर्द हो रहा है या ऊपरी दांतों में दर्द हो रहा है तो ENT स्पेशलिस्ट या दांत के डॉक्टर को जरूर दिखाएं. आवश्यक जांच करने के बाद और टेस्ट करने के बाद पता चल जाता है. ऐसे मरीजों को भर्ती करने के बाद इंजेक्शन दिया जाता है. जिन मरीजों में पहले से प्रतिरोधक क्षमता कम है या किडनी की बीमारी और डायबिटीज है. उनको बहुत ज्यादा सावधानी रखने की जरूरत है और तुरंत इलाज की जरूरत है. आने वाले दिनों में हम सब डॉक्टर को सावधान रहने की जरूरत है. क्योंकि ऐसे मरीजों को तुरंत इलाज की जरूरत होती है. दवाइयों की उपलब्धता हो तो ऐसे मरीजों को 70% के आसपास ठीक किया जा सकता है.