रायपुरः साल का एक पक्ष पितरों (Pitaro) के नाम होता है, जिसे हम पितृ पक्ष (Pitru paksh)या श्राद्ध पक्ष (Sradh paksh) के नाम से जाना जाता है. यह पक्ष भाद्रप्रद की पूर्णिमा से शुरु होकर अश्विन माह की अमावस्या तक रहता है. कहा जाता है कि इस दौरान पितर (Pitar) अपने लोक से पृथ्वी पर आते हैं. पृथ्वी में रहने वाले उनके रिश्तेदार अपने पितरों की शांति (Pitaro ki shanti) के लिए उनका श्राद्ध व तर्पण (Sradh aur tarpan) सहित कई धार्मिक कार्य करते हैं. कहते हैं कि मृतक के परिवार द्वारा किया गया श्राद्ध(Sradh), तर्पण(Tarpan) और दान (daan) से पितर खुश होकर आशिर्वाद देते हैं.
श्राद्ध पक्ष (Sradh paksh) का हर दिन खास होता है. शनिवार को इस बार एकादशी का श्राद्ध (Ekadashi sradh) है. इस दिन जिस व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल या कृष्ण पक्ष में होती है, उसका श्राद्ध (Sradh) और तर्पण (Tarpan) किया जाता है. कहते हैं कि इस दिन ब्राह्मण को भोजन (Brahman ko bhojan) कराने से पितरों को वो भोजन प्राप्त होता है और वो तृप्त (Tript) हो जाते हैं.
दशमी श्राद्धः जानिए क्या होता है पंचबली भोग, क्यों ब्राह्मण भोजन से पहले ये है जरूरी
एकादशी का शुभ मुहुर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 01 अक्टूबर, शुक्रवार को रात 1 बजकर 03 मिनट से प्रारंभ होगी.एकादशी तिथि का समापन 02 अक्टूबर, शनिवार को रात 11 बजकर 10 मिनट पर होगा. इंदिरा एकादशी व्रत 02 अक्टूबर को रखा जाएगा.
इसलिए इसे कहते हैं इंदिरा एकादशी
वहीं, एकादशी तिथि के कारण इस दिन को जिसे इंदिरा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं कि इस एकादशी का व्रत करने वाले को सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं. वहीं इस एकादशी का व्रत करने वाला स्वयं मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करता है. वहीं, इस एकादशी के व्रत और पूजा का विधान वही है जो अन्य एकादशी का होता है. इसमें अंतर केवल इतना है कि इस दिन शालिग्राम की पूजा की जाती है. इस दिन स्नानदि से पवित्र होकर भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए और पूजाकर, आरती करनी चाहिए.
इंदिरा एकादशी की कथा
प्राचीनकाल में महिष्मती नगरी में इंद्रसेन नामक एक राजा राज्य करते थे.उनके माता-पिता दिवंगत हो चुके थे. अचानक एक रात उन्हें स्वप्न आया कि उनके माता-पिता यमलोक (नरक) में पड़े हुए अत्यधिक कष्ट भोग रहे हैं. नींद से जागने के पश्चात वे अपने पितरों की इस दुर्दशा से अत्यधिक चिंतित हुए. वे विचार करने लगे किस प्रकार अपने पितरों को यम यातना से मुक्त किया जाए.
इस विषय पर परामर्श करने के लिए उन्होंने विद्वान ब्राह्मणों व मंत्रियों को बुलाकर स्वप्न के बारे में बताया. इस पर ब्राह्मणों ने कहा कि हे राजन! यदि आप सपत्नीक इंदिरा एकादशी का व्रत करें तो आपके पितरों की मुक्ति हो जाएगी.
इंदिरा एकादशी के दिन आप शालिग्राम की पूजा, तुलसी आदि चढ़ाकर 91 ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. इससे आपके माता-पिता स्वर्ग को चले जाएंगे.
राजा ने उनकी बात को मानकर सपत्नीक विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत किया. रात्रि में जब वे मंदिर में सो रहे थे, तभी भगवान ने उन्हें दर्शन देकर कहा राजन! तुम्हारे व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी पितर स्वर्ग पहुंच गए हैं. इसी दिन से इस व्रत की महत्ता बढ़ गई.