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छत्तीसगढ़ के चुनाव में जातीय समीकरण का कितना असर

छत्तीसगढ़ में चुनाव को एक साल बचा है. लेकिन पार्टियां अभी से वोटरों की घेराबंदी करने में जुटी है. इस बार चुनाव मुद्दों पर लड़े जाएंगे या फिर जातिगत समीकरण (caste equation in Chhattisgarh) के आधार पर ये आने वाला वक्त बताएगा.लेकिन चुनाव से पहले राजनीतिक दलों ने अपने बयानों से प्रदेश की सियासत को थोड़ा गर्म जरुर कर दिया है. raipur latest news

छत्तीसगढ़ के चुनाव में जातीय समीकरण का कितना असर
छत्तीसगढ़ के चुनाव में जातीय समीकरण का कितना असर
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Published : Sep 16, 2022, 4:54 PM IST

Updated : Sep 16, 2022, 7:55 PM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने के लिए जातियों को साधना किसी भी दल के लिए सबसे पहला काम होता(effect of caste equation in Chhattisgarh election) है. जिस जाति और समाज के लोग ज्यादा हैं उनका रूझान जिस भी पार्टी की तरफ गया यहां उसकी सरकार बनने की संभावना ज्यादा रहती है. प्रदेश की यदि बात करें तो साहू और आदिवासी समाज के लोगों की काफी संख्या है. दावा तो यह भी किया जाता है कि इन दोनों समुदाय के समर्थन से ही प्रदेश में सरकार बनती है. दोनों ही समाज जिस पार्टी के साथ खड़े होते हैं.यहां उनकी ही सरकार बनती(Chhattisgarh election parties) है.

छत्तीसगढ़ के चुनाव में जातीय समीकरण का कितना असर



मंत्री भी दे चुके हैं बयान : इस तरह के संकेत कुछ दिन पहले आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने भी दिया था उन्होंने कहा था कि " साहू और आदिवासी बीजेपी को निपटा देंगे.'' उनके इस बयान के बाद छत्तीसगढ़ सियासत में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या वाकई में साहू और आदिवासी वोट में सरकार बना और गिरा सकता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर साहू और आदिवासी समाज के लोगों की छत्तीसगढ़ में कितनी संख्या है. कितने मतदाता हैं जो सरकार बनाने में अपना योगदान देते हैं. क्या वाकई में साहू और आदिवासी समाज चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है या फिर अन्य समाजों की भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका होती है.आखिर किस दल के लिए साहू और आदिवासी समाज चुनौती बना है.

स्वास्थ्य मंत्री का दावा है कुछ और : साहू और आदिवासी वोट बैंक को लेकर भूपेश सरकार के कद्दावर मंत्री टीएस सिंह देव का कहना है कि '' छत्तीसगढ़ में धर्म और जाति के आधार पर चुनाव नहीं होते हैं यहां मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़ा जाता है सभी दलों में सभी वर्ग के समर्थक है ऐसा नहीं किसी विशेष वर्ग का समर्थन किसी विशेष पार्टी को मिल रहा हूं . आदिवासी समाज की बात की जाए तो बस्तर में हमारी कभी 12 में से 1 सीट आई है , और आज 12 की 12 सीटें कांग्रेस के पास है. सरगुजा संभाग की बात की जाए तो वहां से 14 सीटों में से एक समय कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी और आज 14 में से 14 सीट कांग्रेस को मिली है इसलिए कहा जा सकता है कि यहां का मतदाता किसी दल को लेकर फिक्स नहीं है कि उसके द्वारा उसी दल को वोट दिया जाएगा."


बीजेपी की है अपनी दलील : वहीं बीजेपी इन वर्गों कि चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका मानती है. बीजेपी नेता संजय श्रीवास्तव का कहना है कि ''एक बड़ी संख्या ट्राइबल क्षेत्र की है. जो सरकार बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाती है. विधानसभा चुनाव 2003, 2008 और 2013 में इनका बहुत बड़ा सहयोग मिला. लेकिन 2018 में किन्ही कारणों से हम पीछे रह गए और सरकार नहीं बना सके. लेकिन इनकी महत्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता.यही वजह है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता.


छत्तीसगढ़ में जातीय समीकरण : छत्तीसगढ़ में लगभग 32 फीसदी आबादी आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) की है, करीब 13 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति वर्ग की और करीब 47 प्रतिशत जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की है. अन्य पिछड़ा वर्ग में करीब 95 से अधिक जातियां शामिल हैं. छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा की सीटें हैं. इनमें से 39 सीटें आरक्षित है. इन सीटों में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. आरक्षित सीटों के बाद बची 51 सीटें सामान्य हैं.


अनुसूचित जनजाति सीटों पर कांग्रेस का कब्जा : प्रदेश में 15 साल तक बीजेपी की सरकार रही. बावजूद इसके साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में आदिवासियों की 29 सीटों में से महज 2 सीटें ही बीजेपी को मिली. बाकी की 27 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा रहा. प्रदेश की 37 विधानसभा में साहू वोटर बहुत ही ज्यादा प्रभावी है. यहां पर हारी हुई बाजी साहू वोटर जीत में बदल सकता है. लेकिन जहां पर साहू वोट बैंक है वहां की सीटों में करीब एक दर्जन विधानसभा की सीटों पर अनुसूचित जाति वर्ग का खासा प्रभाव है. प्रदेश के मैदानी इलाकों के ज्यादातर विधानसभा की सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भी भारी संख्या है. छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 47 प्रतिशत है. मैदानी इलाकों से करीब एक चौथाई विधायक इसी वर्ग से विधानसभा में चुनकर आते हैं.



2013 में साहू समाज से थे 20 प्रत्याशी : विधानसभा चुनाव 2013 में साहू समाज के 20 प्रत्याशियों को दोनों ही दलों ने टिकट बांटे थे. तात्कालीन सत्ताधारी दल बीजेपी ने जहां 12 प्रत्याशी खड़े किए थे. वहीं कांग्रेस ने 8 सीटों प्रत्याशी उतारे थे. इसमें जीत का प्रतिशत कांग्रेस का ज्यादा रहा क्योंकि बीजेपी के 12 में से पांच तो कांग्रेस के 8 में से 4 प्रत्याशी ही चुनाव जीत सके(caste equation in Chhattisgarh) थे.



बस्तर की सीटों का समीकरण : बस्तर में भी साहू समाज के वोटर प्रभावी भूमिका में है. नेशनल हाइवे से लगी सभी विधानसभा सीट पर साहू समाज के वोटरों की संख्या पांच हजार 15 हजार है. बस्तर की 12 विधानसभा सीट में 11 सीट आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं. लेकिन साहू समाज की अनदेखी कोई भी दल नहीं करता है. बस्तर में हार-जीत का अंतर तीन हजार से दस हजार वोट के बीच रहता है. ऐसे में साहू मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है.



चुनाव में किस वर्ग की कितनी भूमिका : छत्तीसगढ़ की पहचान आदिवासी बहुल प्रदेश के रूप में है. लेकिन प्रदेश की जातीय संरचना में, कई अलग-अलग वर्गों का भी अच्छा खासा प्रभाव है. छत्तीसगढ़ में करीब 12 प्रतिशत की आबादी अनुसूचित जाति की है. तो वही एक बड़ी आबादी करीब 47 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग की है. ये तीनों ही वर्ग, प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा बदलने में अहम भूमिका निभाते हैं. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ की कोई भी राजनीतिक पार्टियां, इन तीनों वर्गों की अनदेखी नहीं कर सकती.



तीसरे मोर्चा भी सक्रिय : छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को लगभग 1 साल बचा हुआ है. बावजूद इसके अभी से हैं. दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों सहित तीसरे मोर्चे ने भी घेराबंदी शुरू कर दी है. खासकर इस चुनाव में जातीय समीकरण को साधने की कवायद की जा रही है.उसमें भी साहू समाज और आदिवासी का बोर्ड में इस चुनाव में काफी महत्वपूर्ण हैं. लेकिन दावा तो ये भी किया जा रहा है कि साहू और आदिवासी समाज किसी भी दल को सत्ता की कुर्सी पर बिठा सकता है या फिर उतार सकता है.raipur latest news

रायपुर : छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने के लिए जातियों को साधना किसी भी दल के लिए सबसे पहला काम होता(effect of caste equation in Chhattisgarh election) है. जिस जाति और समाज के लोग ज्यादा हैं उनका रूझान जिस भी पार्टी की तरफ गया यहां उसकी सरकार बनने की संभावना ज्यादा रहती है. प्रदेश की यदि बात करें तो साहू और आदिवासी समाज के लोगों की काफी संख्या है. दावा तो यह भी किया जाता है कि इन दोनों समुदाय के समर्थन से ही प्रदेश में सरकार बनती है. दोनों ही समाज जिस पार्टी के साथ खड़े होते हैं.यहां उनकी ही सरकार बनती(Chhattisgarh election parties) है.

छत्तीसगढ़ के चुनाव में जातीय समीकरण का कितना असर



मंत्री भी दे चुके हैं बयान : इस तरह के संकेत कुछ दिन पहले आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने भी दिया था उन्होंने कहा था कि " साहू और आदिवासी बीजेपी को निपटा देंगे.'' उनके इस बयान के बाद छत्तीसगढ़ सियासत में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या वाकई में साहू और आदिवासी वोट में सरकार बना और गिरा सकता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर साहू और आदिवासी समाज के लोगों की छत्तीसगढ़ में कितनी संख्या है. कितने मतदाता हैं जो सरकार बनाने में अपना योगदान देते हैं. क्या वाकई में साहू और आदिवासी समाज चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है या फिर अन्य समाजों की भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका होती है.आखिर किस दल के लिए साहू और आदिवासी समाज चुनौती बना है.

स्वास्थ्य मंत्री का दावा है कुछ और : साहू और आदिवासी वोट बैंक को लेकर भूपेश सरकार के कद्दावर मंत्री टीएस सिंह देव का कहना है कि '' छत्तीसगढ़ में धर्म और जाति के आधार पर चुनाव नहीं होते हैं यहां मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़ा जाता है सभी दलों में सभी वर्ग के समर्थक है ऐसा नहीं किसी विशेष वर्ग का समर्थन किसी विशेष पार्टी को मिल रहा हूं . आदिवासी समाज की बात की जाए तो बस्तर में हमारी कभी 12 में से 1 सीट आई है , और आज 12 की 12 सीटें कांग्रेस के पास है. सरगुजा संभाग की बात की जाए तो वहां से 14 सीटों में से एक समय कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी और आज 14 में से 14 सीट कांग्रेस को मिली है इसलिए कहा जा सकता है कि यहां का मतदाता किसी दल को लेकर फिक्स नहीं है कि उसके द्वारा उसी दल को वोट दिया जाएगा."


बीजेपी की है अपनी दलील : वहीं बीजेपी इन वर्गों कि चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका मानती है. बीजेपी नेता संजय श्रीवास्तव का कहना है कि ''एक बड़ी संख्या ट्राइबल क्षेत्र की है. जो सरकार बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाती है. विधानसभा चुनाव 2003, 2008 और 2013 में इनका बहुत बड़ा सहयोग मिला. लेकिन 2018 में किन्ही कारणों से हम पीछे रह गए और सरकार नहीं बना सके. लेकिन इनकी महत्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता.यही वजह है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता.


छत्तीसगढ़ में जातीय समीकरण : छत्तीसगढ़ में लगभग 32 फीसदी आबादी आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) की है, करीब 13 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति वर्ग की और करीब 47 प्रतिशत जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की है. अन्य पिछड़ा वर्ग में करीब 95 से अधिक जातियां शामिल हैं. छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा की सीटें हैं. इनमें से 39 सीटें आरक्षित है. इन सीटों में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. आरक्षित सीटों के बाद बची 51 सीटें सामान्य हैं.


अनुसूचित जनजाति सीटों पर कांग्रेस का कब्जा : प्रदेश में 15 साल तक बीजेपी की सरकार रही. बावजूद इसके साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में आदिवासियों की 29 सीटों में से महज 2 सीटें ही बीजेपी को मिली. बाकी की 27 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा रहा. प्रदेश की 37 विधानसभा में साहू वोटर बहुत ही ज्यादा प्रभावी है. यहां पर हारी हुई बाजी साहू वोटर जीत में बदल सकता है. लेकिन जहां पर साहू वोट बैंक है वहां की सीटों में करीब एक दर्जन विधानसभा की सीटों पर अनुसूचित जाति वर्ग का खासा प्रभाव है. प्रदेश के मैदानी इलाकों के ज्यादातर विधानसभा की सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भी भारी संख्या है. छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 47 प्रतिशत है. मैदानी इलाकों से करीब एक चौथाई विधायक इसी वर्ग से विधानसभा में चुनकर आते हैं.



2013 में साहू समाज से थे 20 प्रत्याशी : विधानसभा चुनाव 2013 में साहू समाज के 20 प्रत्याशियों को दोनों ही दलों ने टिकट बांटे थे. तात्कालीन सत्ताधारी दल बीजेपी ने जहां 12 प्रत्याशी खड़े किए थे. वहीं कांग्रेस ने 8 सीटों प्रत्याशी उतारे थे. इसमें जीत का प्रतिशत कांग्रेस का ज्यादा रहा क्योंकि बीजेपी के 12 में से पांच तो कांग्रेस के 8 में से 4 प्रत्याशी ही चुनाव जीत सके(caste equation in Chhattisgarh) थे.



बस्तर की सीटों का समीकरण : बस्तर में भी साहू समाज के वोटर प्रभावी भूमिका में है. नेशनल हाइवे से लगी सभी विधानसभा सीट पर साहू समाज के वोटरों की संख्या पांच हजार 15 हजार है. बस्तर की 12 विधानसभा सीट में 11 सीट आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं. लेकिन साहू समाज की अनदेखी कोई भी दल नहीं करता है. बस्तर में हार-जीत का अंतर तीन हजार से दस हजार वोट के बीच रहता है. ऐसे में साहू मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है.



चुनाव में किस वर्ग की कितनी भूमिका : छत्तीसगढ़ की पहचान आदिवासी बहुल प्रदेश के रूप में है. लेकिन प्रदेश की जातीय संरचना में, कई अलग-अलग वर्गों का भी अच्छा खासा प्रभाव है. छत्तीसगढ़ में करीब 12 प्रतिशत की आबादी अनुसूचित जाति की है. तो वही एक बड़ी आबादी करीब 47 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग की है. ये तीनों ही वर्ग, प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा बदलने में अहम भूमिका निभाते हैं. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ की कोई भी राजनीतिक पार्टियां, इन तीनों वर्गों की अनदेखी नहीं कर सकती.



तीसरे मोर्चा भी सक्रिय : छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को लगभग 1 साल बचा हुआ है. बावजूद इसके अभी से हैं. दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों सहित तीसरे मोर्चे ने भी घेराबंदी शुरू कर दी है. खासकर इस चुनाव में जातीय समीकरण को साधने की कवायद की जा रही है.उसमें भी साहू समाज और आदिवासी का बोर्ड में इस चुनाव में काफी महत्वपूर्ण हैं. लेकिन दावा तो ये भी किया जा रहा है कि साहू और आदिवासी समाज किसी भी दल को सत्ता की कुर्सी पर बिठा सकता है या फिर उतार सकता है.raipur latest news

Last Updated : Sep 16, 2022, 7:55 PM IST
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