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छत्तीसगढ़ में 'के-डिपॉजिट' पर सियासी भूचाल: क्या यह दिवालियापन का है संकेत, जानिए अर्थशास्त्रियों की राय - Latest Raipur news

Politics on K deposit in Chhattisgarh: प्रदेश में 'के-डिपॉजिट' को लेकर सियासत गरमाई हुई है. इस पर अर्थशास्त्री क्या कहते हैं. जानने के लिए पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

Is this a sign of bankruptcy
क्या के डिपॉजिट दिवालियापन का है संकेत
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Published : Jan 28, 2022, 9:40 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में 'के-डिपॉजिट' को लेकर सियासत गरमाई हुई (Politics on K deposit in Chhattisgarh ) है. पक्ष से लेकर विपक्ष तक मुद्दे में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. जहां एक और विपक्ष 'के-डिपॉजिट' को सरकार के दिवालियापन होने का संकेत बता रही है. तो वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष विपक्ष के आरोपों पर पलटवार करते हुए उनके कार्यकाल में भी 'के-डिपॉजिट' की जानकारी सार्वजनिक कर रही है. इतना ही नहीं सत्ता पक्ष इसे एक सामान्य प्रक्रिया बता रही है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या 'के-डिपॉजिट' सरकार के दिवालियापन का संकेत हैं या फिर यह एक सामान्य प्रक्रिया है?

के डिपॉजिट पर अर्थशास्त्री तपेश गुप्ता की राय

इसकी विस्तृत जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर तपेश गुप्ता (Economist Professor Tapesh Gupta opinion on K deposit) से चर्चा की और जानने की कोशिश की कि आखिर 'के-डिपॉजिट' है क्या? और इसका राज्य सरकार की सेहत पर क्या असर पड़ सकता है? क्या वाकई में सरकार आज दिवालियापन की ओर जा रही है? या फिर ये महज सियासी बयानबाजी है?

क्या है 'के-डिपॉजिट'

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान तपेश गुप्ता ने बताया कि यह सरकारी खजाने में जमा किए जाने वाली राशि है, जो कि कोई एरियर्स, किसी यूनिट की सर प्लस राशि, किसी योजना की बची हुई राशि है. जिसे ब्याज रहित रूप में सरकारी खजाने में जमा किया जाता है. जिसे सरकार एक निश्चित समय अवधि के बाद वापस कर देती है. यह एक प्रकार का कर्ज है, जो कि ब्याज रहित है. यानी कि इस पर सरकार को किसी भी तरह के ब्याज संबंधित विभाग या उपक्रम को नहीं देना पड़ता है.

किससे लिया जाता है 'के डिपॉजिट'

तपेश कहते हैं कि राज्य सरकार विभिन्न इकाइयों से यह राशि एकत्र करती है. जैसे पर्यटन विभाग, सीआईडीसी, बिजली बोर्ड और माध्यमिक शिक्षा मंडल जैसी संस्थाएं. यदि इनके पास अतिरिक्त राशि बचती है तो सरकार उसे कर्ज के रूप में लेती है और इस पर सरकार संबंधित विभागीय या उपक्रमों को कोई ब्याज नहीं देना पड़ता है.

'के डिपॉजिट' लेना सरकार के दिवालियापन का नहीं है संकेत

तपेश गुप्ता बताते हैं कि 'के डिपॉजिट' लेना सरकार के दिवालियापन का संकेत नहीं है. सरकार इस राशि से सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन करती है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है.

'के डिपॉजिट' का उपयोग किस प्रकार होना चाहिए

तपेश कहते हैं कि जो 'के डिपॉजिट' लिया गया है उसका समुचित उपयोग हो. पूंजीगत व्यय हो और आर्थिक विकास के लिए कोई काम किया जाए. तो ज्यादा अच्छा है, इसे मुफ्त में बांटने वाली योजनाओं या फिर अपव्यय के लिए खर्च किया जाना उचित नहीं है. इस पर प्रशासन को एक बार विचार करना जरूरी है.

वित्तीय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लिया जाता है 'के-डिपॉजिट'

गुप्ता कहते हैं कि निश्चित तौर पर राज्य सरकार के द्वारा योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए काफी खर्च किया जा रहा है. उसका वित्तीय भार सरकार पर हो रहा है. उसकी पूर्ति के लिए 'के-डिपॉजिट' की व्यवस्था की गई है. वित्त व्यवस्था को मजबूत करने के लिए यह लिया जा रहा है.

'के-डिपॉजिट' लेने के लिए अपनानी होती है यह प्रक्रिया

तपेश कहते हैं कि इसके लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित करवाना, राज्यपाल का अनुमोदन प्राप्त करना, यह उसकी वित्तीय प्रक्रिया है. वित्तीय प्रक्रिया के माध्यम से ही यह लिया जाता है.यह नहीं कि सरकार ने यदि कह दिया तो वह पैसा उसे मिल गया. वित्त विभाग का एक पैमाना तय होता है. राज्य सरकार मनमाफिक कर्ज नहीं ले सकती. आरबीआई के भी कुछ गाइडलाइन हैं.

योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए सरकार पर बढ़ता जा रहा है कर्ज

तपेश बताते हैं कि ये जरूर है कि छत्तीसगढ़ सरकार पर कर्ज थोड़ा ज्यादा बढ़ता जा रहा है, लेकिन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए यह जरूरी भी है. ऐसे में जनता को तय करना है कि वह इस प्रकार की योजनाओं का लाभ ले या ना ले.

पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी लिया था 'के-डिपॉजिट'

गुप्ता कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ इस सरकार ने ही 'के-डिपॉजिट' लिया है. इसके पहले भी सरकारों के माध्यम से 'के-डिपॉजिट' लिया गया है. वित्तीय वर्ष 2013-14 में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी 'के-डिपॉजिट' लिया था और यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे राज्य सरकार अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए अपनाती है.

निश्चित समय के बाद किस्तों में या फिर एकमुश्त लौटाना होता है कर्ज

तपेश कहते हैं कि 'के-डिपॉजिट' की राशि 5 -7 वर्ष जैसा राज्य सरकार निर्धारित करती है..उस हिसाब से लिया और दिया जाता है. इस राशि को सरकार या तो किस्तों में वापस करती है या फिर एकमुश्त भी जमा कर सकती है. यह निर्णय सरकार लेती है.

'के-डिपॉजिट' लिया जाना सही है या गलत?

वर्तमान सरकार का 'के-डिपॉजिट' लिए जाने का निर्णय सही या गलत की बात की जाए तो यह वित्तीय ढांचे के अनुरूप लिए जाने वाली राशि है. इसमें राजनीति के लिए पक्ष-विपक्ष कोई कुछ भी कहे, लेकिन यह एक प्रक्रिया है. मुझे इस व्यवस्था में कहीं भी यह नहीं लगता कि नियम विरुद्ध कार्य किया गया है या फिर आर्थिक क्षति हो रही है. या फिर कर्ज में सरकार डूब रही है. ऐसा नहीं लगता है. राज्य की अपनी वित्तीय व्यवस्था है, उसके अंतर्गत उसे कर्ज मिल रहा है.

देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में है प्रदेश

तपेश बताते हैं कि यदि कोरोना के बाद देश के अन्य राज्यों की बात की जाए तो उनसे छत्तीसगढ़ की आर्थिक स्थिति काफी बेहतर है और 'के-डिपॉजिट' के माध्यम से सरकार अपनी आर्थिक स्थिति को और मजबूत कर रही है क्योंकि इस राशि को वापस किया ही जाना है.

दिवालिया नहीं बल्कि सरकार की आर्थिक स्थिति कमजोर

यह कहना गलत होगा कि यह सरकार दिवालिया हो गई है. यदि आलोचनात्मक ही नजरिए से देखा जाए तो यह जरूर कहा जा सकता है कि सरकार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है.

राज्य सरकार पर 51 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज

छत्तीसगढ़ सरकार का कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है. राज्य सरकार ने पिछले 3 सालों में 51 हजार 194 करोड़ रुपए कर्ज लिया है.कर्ज का ब्याज चुकाने को सरकार को अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ रहा है.

ब्याज के रूप में चुकानी पड़ रही एक बड़ी राशि

जानकारी के मुताबिक 1 दिसंबर 2018 से 31 अक्टूबर 2021 तक 51हजार 194 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया है. अब तक प्रदेश सरकार ने 15 हजार 500 का ब्याज और 8 हजार करोड़ रुपए का मूलधन जमा किया है.

3 सालों में इन संस्थानों से लिया गया कर्ज

राज्य सरकार ने पिछले 3 वर्षों में आरबीआई से 39 हजार 80 करोड़ कर्ज लिया है. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक से 2 हजार 703.96 करोड़ कर्ज लिया है. केंद्र सरकार और अन्य स्रोतों से 9 हजार 410.21 करोड़ का कर्ज सरकार ले चुकी है.

रमन सिंह ने ट्वीट कर साधा था निशाना

राज्य के वित्त विभाग की सभी निगम, मंडलों और प्राधिकरणों को अपनी बची हुई राशि को 'के डिपॉजिट' में जमा करने की कवायद पर पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी ट्वीट कर भूपेश सरकार पर निशाना साधा था. ट्वीट में रमन ने लिखा कि ' छत्तीसगढ़ सरकार दिवालिया हो गई है? शायद ही किसी राज्य में ऐसा होता हो कि निगम मंडलों में इमरजेंसी के लिए जमा राशि को सरकार के के- डिपॉजिट में जमा करने कहा जाए. 3 साल में 51000 करोड़ से अधिक का कर्ज, फिर भी ये स्थिति. भूपेश बघेल जी ने छत्तीसगढ़ को कांग्रेस का ATM बना दिया है'.

Raman Singh had targeted by tweeting
रमन सिंह ने ट्वीट कर साधा था निशाना

भूपेश बघेल ने जारी किए पुराने पत्र

रमन सिंह के ट्वीट पर भूपेश बघेल ने तत्कालीन रमन सरकार के समय 'के डिपॉजिट' में राशि जमा करने के लिए जारी पत्रों के साथ ट्वीट किया. उन्होंने लिखा 'चिंतित हूं डॉक्टर साहब! कहीं आप स्मृतिलोप के शिकार तो नहीं हो गए हैं?'

Bhupesh Baghel issued old letters
भूपेश बघेल ने जारी किए पुराने पत्र

भाजपा से विरासत में मिला था 40 हजार करोड़ का कर्ज: कांग्रेस

इतना ही नहीं पहले ही कांग्रेस ने भाजपा पर कर्ज को लेकर निशाना साधते हुए कहा था कि हमें 40 हजार करोड़ का कर्ज विरासत में मिला है. जब राज्य की स्थापना हुई थी तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 3 हजार करोड़ रुपए का कर्ज छोड़ा था. इसके बाद बीजेपी सरकार में जो बढ़कर 40 हजार करोड़ हो गया. बीजेपी ने नए राजधानी में फिजूलखर्ची की. स्काईवॉक और एक्सप्रेसवे में खर्च किया, जिसका कोई औचित्य नहीं था.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में 'के-डिपॉजिट' को लेकर सियासत गरमाई हुई (Politics on K deposit in Chhattisgarh ) है. पक्ष से लेकर विपक्ष तक मुद्दे में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. जहां एक और विपक्ष 'के-डिपॉजिट' को सरकार के दिवालियापन होने का संकेत बता रही है. तो वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष विपक्ष के आरोपों पर पलटवार करते हुए उनके कार्यकाल में भी 'के-डिपॉजिट' की जानकारी सार्वजनिक कर रही है. इतना ही नहीं सत्ता पक्ष इसे एक सामान्य प्रक्रिया बता रही है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या 'के-डिपॉजिट' सरकार के दिवालियापन का संकेत हैं या फिर यह एक सामान्य प्रक्रिया है?

के डिपॉजिट पर अर्थशास्त्री तपेश गुप्ता की राय

इसकी विस्तृत जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर तपेश गुप्ता (Economist Professor Tapesh Gupta opinion on K deposit) से चर्चा की और जानने की कोशिश की कि आखिर 'के-डिपॉजिट' है क्या? और इसका राज्य सरकार की सेहत पर क्या असर पड़ सकता है? क्या वाकई में सरकार आज दिवालियापन की ओर जा रही है? या फिर ये महज सियासी बयानबाजी है?

क्या है 'के-डिपॉजिट'

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान तपेश गुप्ता ने बताया कि यह सरकारी खजाने में जमा किए जाने वाली राशि है, जो कि कोई एरियर्स, किसी यूनिट की सर प्लस राशि, किसी योजना की बची हुई राशि है. जिसे ब्याज रहित रूप में सरकारी खजाने में जमा किया जाता है. जिसे सरकार एक निश्चित समय अवधि के बाद वापस कर देती है. यह एक प्रकार का कर्ज है, जो कि ब्याज रहित है. यानी कि इस पर सरकार को किसी भी तरह के ब्याज संबंधित विभाग या उपक्रम को नहीं देना पड़ता है.

किससे लिया जाता है 'के डिपॉजिट'

तपेश कहते हैं कि राज्य सरकार विभिन्न इकाइयों से यह राशि एकत्र करती है. जैसे पर्यटन विभाग, सीआईडीसी, बिजली बोर्ड और माध्यमिक शिक्षा मंडल जैसी संस्थाएं. यदि इनके पास अतिरिक्त राशि बचती है तो सरकार उसे कर्ज के रूप में लेती है और इस पर सरकार संबंधित विभागीय या उपक्रमों को कोई ब्याज नहीं देना पड़ता है.

'के डिपॉजिट' लेना सरकार के दिवालियापन का नहीं है संकेत

तपेश गुप्ता बताते हैं कि 'के डिपॉजिट' लेना सरकार के दिवालियापन का संकेत नहीं है. सरकार इस राशि से सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन करती है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है.

'के डिपॉजिट' का उपयोग किस प्रकार होना चाहिए

तपेश कहते हैं कि जो 'के डिपॉजिट' लिया गया है उसका समुचित उपयोग हो. पूंजीगत व्यय हो और आर्थिक विकास के लिए कोई काम किया जाए. तो ज्यादा अच्छा है, इसे मुफ्त में बांटने वाली योजनाओं या फिर अपव्यय के लिए खर्च किया जाना उचित नहीं है. इस पर प्रशासन को एक बार विचार करना जरूरी है.

वित्तीय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लिया जाता है 'के-डिपॉजिट'

गुप्ता कहते हैं कि निश्चित तौर पर राज्य सरकार के द्वारा योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए काफी खर्च किया जा रहा है. उसका वित्तीय भार सरकार पर हो रहा है. उसकी पूर्ति के लिए 'के-डिपॉजिट' की व्यवस्था की गई है. वित्त व्यवस्था को मजबूत करने के लिए यह लिया जा रहा है.

'के-डिपॉजिट' लेने के लिए अपनानी होती है यह प्रक्रिया

तपेश कहते हैं कि इसके लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित करवाना, राज्यपाल का अनुमोदन प्राप्त करना, यह उसकी वित्तीय प्रक्रिया है. वित्तीय प्रक्रिया के माध्यम से ही यह लिया जाता है.यह नहीं कि सरकार ने यदि कह दिया तो वह पैसा उसे मिल गया. वित्त विभाग का एक पैमाना तय होता है. राज्य सरकार मनमाफिक कर्ज नहीं ले सकती. आरबीआई के भी कुछ गाइडलाइन हैं.

योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए सरकार पर बढ़ता जा रहा है कर्ज

तपेश बताते हैं कि ये जरूर है कि छत्तीसगढ़ सरकार पर कर्ज थोड़ा ज्यादा बढ़ता जा रहा है, लेकिन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए यह जरूरी भी है. ऐसे में जनता को तय करना है कि वह इस प्रकार की योजनाओं का लाभ ले या ना ले.

पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी लिया था 'के-डिपॉजिट'

गुप्ता कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ इस सरकार ने ही 'के-डिपॉजिट' लिया है. इसके पहले भी सरकारों के माध्यम से 'के-डिपॉजिट' लिया गया है. वित्तीय वर्ष 2013-14 में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी 'के-डिपॉजिट' लिया था और यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे राज्य सरकार अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए अपनाती है.

निश्चित समय के बाद किस्तों में या फिर एकमुश्त लौटाना होता है कर्ज

तपेश कहते हैं कि 'के-डिपॉजिट' की राशि 5 -7 वर्ष जैसा राज्य सरकार निर्धारित करती है..उस हिसाब से लिया और दिया जाता है. इस राशि को सरकार या तो किस्तों में वापस करती है या फिर एकमुश्त भी जमा कर सकती है. यह निर्णय सरकार लेती है.

'के-डिपॉजिट' लिया जाना सही है या गलत?

वर्तमान सरकार का 'के-डिपॉजिट' लिए जाने का निर्णय सही या गलत की बात की जाए तो यह वित्तीय ढांचे के अनुरूप लिए जाने वाली राशि है. इसमें राजनीति के लिए पक्ष-विपक्ष कोई कुछ भी कहे, लेकिन यह एक प्रक्रिया है. मुझे इस व्यवस्था में कहीं भी यह नहीं लगता कि नियम विरुद्ध कार्य किया गया है या फिर आर्थिक क्षति हो रही है. या फिर कर्ज में सरकार डूब रही है. ऐसा नहीं लगता है. राज्य की अपनी वित्तीय व्यवस्था है, उसके अंतर्गत उसे कर्ज मिल रहा है.

देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में है प्रदेश

तपेश बताते हैं कि यदि कोरोना के बाद देश के अन्य राज्यों की बात की जाए तो उनसे छत्तीसगढ़ की आर्थिक स्थिति काफी बेहतर है और 'के-डिपॉजिट' के माध्यम से सरकार अपनी आर्थिक स्थिति को और मजबूत कर रही है क्योंकि इस राशि को वापस किया ही जाना है.

दिवालिया नहीं बल्कि सरकार की आर्थिक स्थिति कमजोर

यह कहना गलत होगा कि यह सरकार दिवालिया हो गई है. यदि आलोचनात्मक ही नजरिए से देखा जाए तो यह जरूर कहा जा सकता है कि सरकार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है.

राज्य सरकार पर 51 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज

छत्तीसगढ़ सरकार का कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है. राज्य सरकार ने पिछले 3 सालों में 51 हजार 194 करोड़ रुपए कर्ज लिया है.कर्ज का ब्याज चुकाने को सरकार को अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ रहा है.

ब्याज के रूप में चुकानी पड़ रही एक बड़ी राशि

जानकारी के मुताबिक 1 दिसंबर 2018 से 31 अक्टूबर 2021 तक 51हजार 194 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया है. अब तक प्रदेश सरकार ने 15 हजार 500 का ब्याज और 8 हजार करोड़ रुपए का मूलधन जमा किया है.

3 सालों में इन संस्थानों से लिया गया कर्ज

राज्य सरकार ने पिछले 3 वर्षों में आरबीआई से 39 हजार 80 करोड़ कर्ज लिया है. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक से 2 हजार 703.96 करोड़ कर्ज लिया है. केंद्र सरकार और अन्य स्रोतों से 9 हजार 410.21 करोड़ का कर्ज सरकार ले चुकी है.

रमन सिंह ने ट्वीट कर साधा था निशाना

राज्य के वित्त विभाग की सभी निगम, मंडलों और प्राधिकरणों को अपनी बची हुई राशि को 'के डिपॉजिट' में जमा करने की कवायद पर पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी ट्वीट कर भूपेश सरकार पर निशाना साधा था. ट्वीट में रमन ने लिखा कि ' छत्तीसगढ़ सरकार दिवालिया हो गई है? शायद ही किसी राज्य में ऐसा होता हो कि निगम मंडलों में इमरजेंसी के लिए जमा राशि को सरकार के के- डिपॉजिट में जमा करने कहा जाए. 3 साल में 51000 करोड़ से अधिक का कर्ज, फिर भी ये स्थिति. भूपेश बघेल जी ने छत्तीसगढ़ को कांग्रेस का ATM बना दिया है'.

Raman Singh had targeted by tweeting
रमन सिंह ने ट्वीट कर साधा था निशाना

भूपेश बघेल ने जारी किए पुराने पत्र

रमन सिंह के ट्वीट पर भूपेश बघेल ने तत्कालीन रमन सरकार के समय 'के डिपॉजिट' में राशि जमा करने के लिए जारी पत्रों के साथ ट्वीट किया. उन्होंने लिखा 'चिंतित हूं डॉक्टर साहब! कहीं आप स्मृतिलोप के शिकार तो नहीं हो गए हैं?'

Bhupesh Baghel issued old letters
भूपेश बघेल ने जारी किए पुराने पत्र

भाजपा से विरासत में मिला था 40 हजार करोड़ का कर्ज: कांग्रेस

इतना ही नहीं पहले ही कांग्रेस ने भाजपा पर कर्ज को लेकर निशाना साधते हुए कहा था कि हमें 40 हजार करोड़ का कर्ज विरासत में मिला है. जब राज्य की स्थापना हुई थी तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 3 हजार करोड़ रुपए का कर्ज छोड़ा था. इसके बाद बीजेपी सरकार में जो बढ़कर 40 हजार करोड़ हो गया. बीजेपी ने नए राजधानी में फिजूलखर्ची की. स्काईवॉक और एक्सप्रेसवे में खर्च किया, जिसका कोई औचित्य नहीं था.

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