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छत्तीसगढ़ में मछुआ समुदाय आर्थिक ही नहीं बल्कि सभी स्थिति में पिछड़ा हुआ है: एम आर निषाद

छत्तीसगढ़ को बने दो दशक से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन आज भी यहां के मछुआ समुदाय के लोगों में आर्थिक सुधार नजर नहीं आता. अब भी मछुआ समुदाय के लोग खुद को पिछड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं.

Fishermen Welfare Board Chairman MR Nishad
छत्तीसगढ़ में मछली पालन को कृषि का दर्जा
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Published : Feb 24, 2022, 2:15 PM IST

Updated : Feb 24, 2022, 4:39 PM IST

रायपुर: मछुआ समुदाय का पैतृक कार्य मछली पालन है. छत्तीसगढ़ में मछली पालन को कृषि का दर्जा दिया गया है. छत्तीसगढ़ में मछुआ नीति भी बना चुकी है. इसके बावजदू मछुआ समुदाय के लोग मछली पालन से कोसों दूर हैं. जानकारी की कमी की वजह से उन्हें सरकार की योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल पाता. आखिर क्या वजह है कि मछुआ समुदाय के लोग अपने पैतृक व्यवसाय से दूर जा रहे हैं. ईटीवी भारत ने छत्तीसगढ़ मछुआ कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त एम आर निषाद से खास बातचीत की.

मछुआ कल्याण बोर्ड अध्यक्ष एम आर निषाद

सवाल: राज्य गठन को दो दशक पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब भी मछुआरों में आर्थिक सुधार नजर नहीं आता. अब भी पिछड़े हुए हैं. क्या वजह मानते हैं?

जवाब: आपका कहना बिल्कुल सही है. आर्थिक ही नहीं बल्कि सभी स्थिति में मछुआरा समुदाय पिछड़ा हुआ है. वर्तमान स्थिति में धीरे-धीरे रास्ता तय किया जा रहा है. सबसे बड़ी बात संगठन की है. जिस तरह अन्य समाज में संगठन देखने को मिलता है, उस संगठन की कमी रही है. जागरूकता और शिक्षा की भी कमी समाज में रही, लेकिन आज स्थिति पहले से बेहतर होती जा रही है.

सवाल: अमूमन देखा जाता है कि आप जिस वर्ग के लिए योजनाएं लाते हैं, उन्हें ही उन योजनाओं से मिलने वाले लाभ की जानकारी नहीं रहती. आपको क्या लगता है, योजनाओं के प्रचार-प्रसार में ध्यान देना चाहिए?

जवाब: बिल्कुल ही प्रचार-प्रसार में कमी है. सबसे बड़ी बात है आर्थिक स्थिति की. मछुआरों का मुख्य व्यवसाय मछली का ही है. वे तालाबों के माध्यम से रोजगार प्राप्त कर रहे हैं. सबसे बड़ी आर्थिक समस्या रहती है. जैसे सरकार ने सुविधा दिया है कि तालाब आवंटन की जो प्रक्रिया होती है, वह हमारे समाज को प्राथमिकता में है. लेकिन इसमें कभी-कभी अशिक्षा और संगठन की कमी की वजह से वहां तक नहीं पहुंच पाए हैं. अभी भी कमी है. चूंकि छत्तीसगढ़ मछुआ महासंघ का प्रदेश अध्यक्ष भी हूं. महासंघ के माध्यम से मैं समाज को जगाने की कोशिश कर रहा हूं और अधिकार को पाने का भी प्रयास किया जा रहा है. पहले हमने धीरे-धीरे करके संगठन की नींव डाली है. जिसकी वजह से धीरे-धीरे हम लोग समझने लगे हैं. यदि हमारे संगठन की मजबूती पहले होती तो हम अपने अधिकार से वंचित नहीं होते. अब हमारे समाज में चेतना और जागृति आई है. जिसके चलते आने वाले समय में इसका फायदा जरूर उठाया जाएगा. मुझे इसका विश्वास है.

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सवाल: तीन साल की सरकार की बात करें तो पूर्ववर्ती सरकारों की योजनाओं के अलावा क्या नया प्रयास आपकी सरकार के द्वारा किया गया, इस समाज की बेहतरी के लिए?

जवाब: मछुआ समुदाय का मुख्य पैतृक व्यवसाय मछली पालन है. इसके पूर्व सरकार द्वारा मछली नीति के संदर्भ में कई त्रुटियां रही है. हमारे समाज को जो लाभ मिलना था, वह नहीं मिल पा रहा था. इसमें सबसे बड़ी अड़चन पंचायत राज रही है, जबकि पंचायत राज का यह था कि ग्राम के विकास के लिए भी पंचायत विकास के तहत गठन किया गया है. उसमें यदि मछली व्यवसाय की नीति के तहत पंचायत के माध्यम से तालाबों का आवंटन होता है तो उसमें कई प्रक्रिया है. जिसके चलते मछुआ समाज को तालाब न मिलकर अन्य समाज के लोगों को मिल रहा है. इसी तरह बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. मैंने पूर्व सरकार के कार्यकाल में मछुआ नीति में संशोधन का मुद्दा जोर-शोर से उठाया, लेकिन यह संशोधन 15 साल से नहीं हुआ. यह पहली बार है कि छत्तीसगढ़ में संशोधन किया गया. मछुआरों की हित की जो बातें हैं, उनकी तकलीफें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने रखीं. मछुआ नीति पर भी सीएम के पास बात रखी गई, जिसे उन्होंने समझा और नई नीति में एक कमेटी का गठन किया गया है. उस कमेटी में कुछ अधिकारी और हमारे मछुआ समुदाय के लोग शामिल हैं. जिसे हमने बनाकर भेज दिया है. यदि नीति लागू होती है तो मछुआरा हित में समाधान के लिए एक रास्ता बनाया जा सकता है. यह पहली बार है कि हमारी बातें सुनी जा रही है. पूर्ववर्ती सरकार में हमने बिलासा केवट के नाम पर एयरपोर्ट किए जाने की मांग की थी, लेकिन इस सरकार में बिलासपुर को बसाने वाली माता बिलासा के नाम पर एयरपोर्ट का नामकरण किया गया. वैसे ही मछली नीति के संबंध और कृषि दर्जा की मांग भी शामिल थी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हमारी मांगों को पूरा किया है. मैं मछुआ समुदाय से निवेदन करना चाहूंगा कि जो योजनाएं मछुआ समुदाय के लिए लागू की गईं हैं, उससे हमारे समाज को फायदा उठाना चाहिए.

सवाल: क्या वजह मानते हैं कि फायदा अधिक होने के बाद भी इस समाज के लोग मत्स्य पालन के अलावा परंपरागत खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं?

जवाब: सरकार की जो योजना है, जैसे धान खरीदी है. पूर्व सरकार 1700 रुपए प्रति क्विंटल दिया करती थी, लेकिन भूपेश बघेल सरकार अपनी घोषणा के अनुरूप 2500 रुपए प्रति क्विंटल दे रही है. यानी जो बंजर जमीन है, वह उपजाऊ होने लगी है. क्योंकि उसको मूल्य मिल रहा है. पूर्व में जो मिलता था, वह उस हिसाब से नहीं मिलता था. खर्चा करने के बावजूद लोगों को फायदा नहीं होता था, इसलिए उस पर ध्यान नहीं देते थे. लेकिन मैं यह कहूंगा कि मछली व्यवसाय में धान की उपज से 4 गुना फायदा होगा. इससे हमारे समाज को फायदा उठाना चाहिए. हमारे समाज के लोग इसमें कम फायदा उठा रहे हैं. छत्तीसगढ़ में मैं दो बार पूरे प्रदेश का दौरा कर चुका हूं. हर जिले का रिपोर्टिंग लिया है. शासन के अनुदान के मुताबिक प्रति हेक्टेयर 7 लाख रुपए दे रहे हैं, लेकिन दूसरे आदमी ज्यादा फायदा उठा रहे हैं. जबकि मछुआ समुदाय के लोगों को कम से कम 2-3 एकड़ में मछली पालन करना चाहिए. हमारा समाज यह नहीं कर रहा है. मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूँ. लगातार हमारा दौरा चल रहा है. समाज को हम इस बारे में बता रहे हैं. इसके अलावा कुछ अन्य समाज के लोगों के आने वाले आवेदन में भी खेती की बंजर जमीन को तालाब बनाने के निर्णय लेने का प्रयास किया जा रहा है.

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सवाल: पूर्ववर्ती सरकार के दौरान आपने अनुसूचित जनजाति की मांग को लेकर एक बड़ा आंदोलन छेड़ा था. इस मांग को लेकर आगे आपकी रणनीति क्या है?

जवाब: हर समाज की समस्या होती है. उसी तरह हमारे समाज की भी समस्या है. हम पूर्व में अनुसूचित जनजाति की पात्रता रखते थे, लेकिन बाद में वह विलोपित हो गया है. उस समय हमारे समाज के प्रबुद्धजन थे. वे हमें आरक्षण से क्या लाभ होगा, यह सोच रखे हुए थे. उस समय समाज एकजुटता का सूत्र भी टूटा हुआ था. शिक्षा की भी कमी थी. आरक्षण के बारे में वह नहीं समझ पाए. जब छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ उस समय भाजपा विपक्ष में थी. हमने मांग रखी थी. हम लोगों ने इसी उद्देश्य से छत्तीसगढ़ मछुआ महासंघ का निर्माण किया था. भाजपा ने कहा था कि हमारी सरकार आएगी तो आप लोगों की मांगे हैं मछुआ नीति की और आरक्षण की उसे पूरा करने की कोशिश होगी. उसके बाद जब सरकार बनी तब हमने प्रयास किया कि आपने जो वायदे किए हैं, घोषणा किए हैं, उसे आप पूरा करिए. उसमें बहुत टालमटोल की नीति रही. जिसके चलते हमने पूरे छत्तीसगढ़ में प्रदर्शन किया. हमारी मांग आज भी वैसी की वैसी है. भूपेश बघेल की सरकार जिस तरह से नीति निर्धारण कर रही है और मछली नीति का जो काम चल रहा है, उससे लगता है कि सरकार में हमारी समस्याओं का निराकरण हो रहा है. मुझे उम्मीद है कि इस सरकार के द्वारा हमारी मूल समस्या के साथ-साथ हमारी आर्थिक व्यवस्था पर भी ध्यान दिया जा रहा है. क्योंकि वर्तमान में भूपेश बघेल की सरकार सभी वर्गों पर ध्यान दे रही है.

सवाल: भविष्य में मछुआ समुदाय को लेकर क्या कोई नई योजना तैयार की जा रही है?

जवाब: देखिए अभी हमारी ज्यादा तैयारी मछुआ नीति को लेकर है. हम ड्राफ्ट बनाकर सरकार को दे चुके हैं. क्योंकि यह एक ज्वलंत समस्या है. रोजगार की समस्या है. 5 लाख मछुआरे वर्तमान में जीविकापार्जन कर रहे हैं. यह सबसे बड़ी समस्या है. इस समस्या पर हम सबसे ज्यादा फोकस कर रहे हैं. जैसे ही यह नीति लागू होगी तो निश्चित तौर पर कहीं न कहीं छत्तीसगढ़ के मछुआरा समुदाय को लाभ होगा.

रायपुर: मछुआ समुदाय का पैतृक कार्य मछली पालन है. छत्तीसगढ़ में मछली पालन को कृषि का दर्जा दिया गया है. छत्तीसगढ़ में मछुआ नीति भी बना चुकी है. इसके बावजदू मछुआ समुदाय के लोग मछली पालन से कोसों दूर हैं. जानकारी की कमी की वजह से उन्हें सरकार की योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल पाता. आखिर क्या वजह है कि मछुआ समुदाय के लोग अपने पैतृक व्यवसाय से दूर जा रहे हैं. ईटीवी भारत ने छत्तीसगढ़ मछुआ कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त एम आर निषाद से खास बातचीत की.

मछुआ कल्याण बोर्ड अध्यक्ष एम आर निषाद

सवाल: राज्य गठन को दो दशक पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब भी मछुआरों में आर्थिक सुधार नजर नहीं आता. अब भी पिछड़े हुए हैं. क्या वजह मानते हैं?

जवाब: आपका कहना बिल्कुल सही है. आर्थिक ही नहीं बल्कि सभी स्थिति में मछुआरा समुदाय पिछड़ा हुआ है. वर्तमान स्थिति में धीरे-धीरे रास्ता तय किया जा रहा है. सबसे बड़ी बात संगठन की है. जिस तरह अन्य समाज में संगठन देखने को मिलता है, उस संगठन की कमी रही है. जागरूकता और शिक्षा की भी कमी समाज में रही, लेकिन आज स्थिति पहले से बेहतर होती जा रही है.

सवाल: अमूमन देखा जाता है कि आप जिस वर्ग के लिए योजनाएं लाते हैं, उन्हें ही उन योजनाओं से मिलने वाले लाभ की जानकारी नहीं रहती. आपको क्या लगता है, योजनाओं के प्रचार-प्रसार में ध्यान देना चाहिए?

जवाब: बिल्कुल ही प्रचार-प्रसार में कमी है. सबसे बड़ी बात है आर्थिक स्थिति की. मछुआरों का मुख्य व्यवसाय मछली का ही है. वे तालाबों के माध्यम से रोजगार प्राप्त कर रहे हैं. सबसे बड़ी आर्थिक समस्या रहती है. जैसे सरकार ने सुविधा दिया है कि तालाब आवंटन की जो प्रक्रिया होती है, वह हमारे समाज को प्राथमिकता में है. लेकिन इसमें कभी-कभी अशिक्षा और संगठन की कमी की वजह से वहां तक नहीं पहुंच पाए हैं. अभी भी कमी है. चूंकि छत्तीसगढ़ मछुआ महासंघ का प्रदेश अध्यक्ष भी हूं. महासंघ के माध्यम से मैं समाज को जगाने की कोशिश कर रहा हूं और अधिकार को पाने का भी प्रयास किया जा रहा है. पहले हमने धीरे-धीरे करके संगठन की नींव डाली है. जिसकी वजह से धीरे-धीरे हम लोग समझने लगे हैं. यदि हमारे संगठन की मजबूती पहले होती तो हम अपने अधिकार से वंचित नहीं होते. अब हमारे समाज में चेतना और जागृति आई है. जिसके चलते आने वाले समय में इसका फायदा जरूर उठाया जाएगा. मुझे इसका विश्वास है.

छत्तीसगढ़ का विकास मॉडल फेल, असम और बिहार के बाद अब यूपी की जनता भी इसे नकारेगी: धरमलाल कौशिक

सवाल: तीन साल की सरकार की बात करें तो पूर्ववर्ती सरकारों की योजनाओं के अलावा क्या नया प्रयास आपकी सरकार के द्वारा किया गया, इस समाज की बेहतरी के लिए?

जवाब: मछुआ समुदाय का मुख्य पैतृक व्यवसाय मछली पालन है. इसके पूर्व सरकार द्वारा मछली नीति के संदर्भ में कई त्रुटियां रही है. हमारे समाज को जो लाभ मिलना था, वह नहीं मिल पा रहा था. इसमें सबसे बड़ी अड़चन पंचायत राज रही है, जबकि पंचायत राज का यह था कि ग्राम के विकास के लिए भी पंचायत विकास के तहत गठन किया गया है. उसमें यदि मछली व्यवसाय की नीति के तहत पंचायत के माध्यम से तालाबों का आवंटन होता है तो उसमें कई प्रक्रिया है. जिसके चलते मछुआ समाज को तालाब न मिलकर अन्य समाज के लोगों को मिल रहा है. इसी तरह बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. मैंने पूर्व सरकार के कार्यकाल में मछुआ नीति में संशोधन का मुद्दा जोर-शोर से उठाया, लेकिन यह संशोधन 15 साल से नहीं हुआ. यह पहली बार है कि छत्तीसगढ़ में संशोधन किया गया. मछुआरों की हित की जो बातें हैं, उनकी तकलीफें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने रखीं. मछुआ नीति पर भी सीएम के पास बात रखी गई, जिसे उन्होंने समझा और नई नीति में एक कमेटी का गठन किया गया है. उस कमेटी में कुछ अधिकारी और हमारे मछुआ समुदाय के लोग शामिल हैं. जिसे हमने बनाकर भेज दिया है. यदि नीति लागू होती है तो मछुआरा हित में समाधान के लिए एक रास्ता बनाया जा सकता है. यह पहली बार है कि हमारी बातें सुनी जा रही है. पूर्ववर्ती सरकार में हमने बिलासा केवट के नाम पर एयरपोर्ट किए जाने की मांग की थी, लेकिन इस सरकार में बिलासपुर को बसाने वाली माता बिलासा के नाम पर एयरपोर्ट का नामकरण किया गया. वैसे ही मछली नीति के संबंध और कृषि दर्जा की मांग भी शामिल थी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हमारी मांगों को पूरा किया है. मैं मछुआ समुदाय से निवेदन करना चाहूंगा कि जो योजनाएं मछुआ समुदाय के लिए लागू की गईं हैं, उससे हमारे समाज को फायदा उठाना चाहिए.

सवाल: क्या वजह मानते हैं कि फायदा अधिक होने के बाद भी इस समाज के लोग मत्स्य पालन के अलावा परंपरागत खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं?

जवाब: सरकार की जो योजना है, जैसे धान खरीदी है. पूर्व सरकार 1700 रुपए प्रति क्विंटल दिया करती थी, लेकिन भूपेश बघेल सरकार अपनी घोषणा के अनुरूप 2500 रुपए प्रति क्विंटल दे रही है. यानी जो बंजर जमीन है, वह उपजाऊ होने लगी है. क्योंकि उसको मूल्य मिल रहा है. पूर्व में जो मिलता था, वह उस हिसाब से नहीं मिलता था. खर्चा करने के बावजूद लोगों को फायदा नहीं होता था, इसलिए उस पर ध्यान नहीं देते थे. लेकिन मैं यह कहूंगा कि मछली व्यवसाय में धान की उपज से 4 गुना फायदा होगा. इससे हमारे समाज को फायदा उठाना चाहिए. हमारे समाज के लोग इसमें कम फायदा उठा रहे हैं. छत्तीसगढ़ में मैं दो बार पूरे प्रदेश का दौरा कर चुका हूं. हर जिले का रिपोर्टिंग लिया है. शासन के अनुदान के मुताबिक प्रति हेक्टेयर 7 लाख रुपए दे रहे हैं, लेकिन दूसरे आदमी ज्यादा फायदा उठा रहे हैं. जबकि मछुआ समुदाय के लोगों को कम से कम 2-3 एकड़ में मछली पालन करना चाहिए. हमारा समाज यह नहीं कर रहा है. मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूँ. लगातार हमारा दौरा चल रहा है. समाज को हम इस बारे में बता रहे हैं. इसके अलावा कुछ अन्य समाज के लोगों के आने वाले आवेदन में भी खेती की बंजर जमीन को तालाब बनाने के निर्णय लेने का प्रयास किया जा रहा है.

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सवाल: पूर्ववर्ती सरकार के दौरान आपने अनुसूचित जनजाति की मांग को लेकर एक बड़ा आंदोलन छेड़ा था. इस मांग को लेकर आगे आपकी रणनीति क्या है?

जवाब: हर समाज की समस्या होती है. उसी तरह हमारे समाज की भी समस्या है. हम पूर्व में अनुसूचित जनजाति की पात्रता रखते थे, लेकिन बाद में वह विलोपित हो गया है. उस समय हमारे समाज के प्रबुद्धजन थे. वे हमें आरक्षण से क्या लाभ होगा, यह सोच रखे हुए थे. उस समय समाज एकजुटता का सूत्र भी टूटा हुआ था. शिक्षा की भी कमी थी. आरक्षण के बारे में वह नहीं समझ पाए. जब छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ उस समय भाजपा विपक्ष में थी. हमने मांग रखी थी. हम लोगों ने इसी उद्देश्य से छत्तीसगढ़ मछुआ महासंघ का निर्माण किया था. भाजपा ने कहा था कि हमारी सरकार आएगी तो आप लोगों की मांगे हैं मछुआ नीति की और आरक्षण की उसे पूरा करने की कोशिश होगी. उसके बाद जब सरकार बनी तब हमने प्रयास किया कि आपने जो वायदे किए हैं, घोषणा किए हैं, उसे आप पूरा करिए. उसमें बहुत टालमटोल की नीति रही. जिसके चलते हमने पूरे छत्तीसगढ़ में प्रदर्शन किया. हमारी मांग आज भी वैसी की वैसी है. भूपेश बघेल की सरकार जिस तरह से नीति निर्धारण कर रही है और मछली नीति का जो काम चल रहा है, उससे लगता है कि सरकार में हमारी समस्याओं का निराकरण हो रहा है. मुझे उम्मीद है कि इस सरकार के द्वारा हमारी मूल समस्या के साथ-साथ हमारी आर्थिक व्यवस्था पर भी ध्यान दिया जा रहा है. क्योंकि वर्तमान में भूपेश बघेल की सरकार सभी वर्गों पर ध्यान दे रही है.

सवाल: भविष्य में मछुआ समुदाय को लेकर क्या कोई नई योजना तैयार की जा रही है?

जवाब: देखिए अभी हमारी ज्यादा तैयारी मछुआ नीति को लेकर है. हम ड्राफ्ट बनाकर सरकार को दे चुके हैं. क्योंकि यह एक ज्वलंत समस्या है. रोजगार की समस्या है. 5 लाख मछुआरे वर्तमान में जीविकापार्जन कर रहे हैं. यह सबसे बड़ी समस्या है. इस समस्या पर हम सबसे ज्यादा फोकस कर रहे हैं. जैसे ही यह नीति लागू होगी तो निश्चित तौर पर कहीं न कहीं छत्तीसगढ़ के मछुआरा समुदाय को लाभ होगा.

Last Updated : Feb 24, 2022, 4:39 PM IST
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