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Dussehra Special: जानिये, मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहलाते हैं श्रीराम?

आज दशहरे (Dussehra) के मौके पर हम आपको भगवान राम (God Ram) के उस चरीत्र के बारे बताने जा रहे हैं. जिससे ये पता चलता है कि भगवान राम ने अपना पूरा जीवन मर्यादा (Maryada Purushottam) में रहकर जिया.

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Published : Oct 14, 2021, 7:52 PM IST

Maryada Purushottam
मर्यादा पुरुषोत्तम राम

रायपुरः चाहे रामचरित मानस (Ramcharitmanas) हो या रामायण (Ramayan)...ये दोनों ग्रंथ बस यही दर्शाता है कि भगवान श्री राम (Shree Ram) मर्यादा पुरुषोत्तम (Maryada Purushottam) थे. उन्होंने पूरा जीवन मर्यादा में रहकर ही न सिर्फ जिया बल्कि उनके जीवन से लोग मर्यादा का सही अर्थ समझते हैं.

पिता के वचन का रखा मान

जब भगवान श्री राम को माता कैकेयी (Kaikeyi) के वरदान के कारण वनवास जाना पड़ा था, तब उन्होंने महज पिता के वचन का मान रखते हुए अपना कर्तव्य निभाया और राजपाट छोड़कर वन की ओर चल पड़े.

वन जाना किया स्वीकार

दरअसल, राम के मर्यादा पुरुष बन कर उभरने का सबसे शुरुआती प्रसंग उनका वनवास स्वीकारना ही है. राजा दशरथ कैकेयी को वचन दे चुके थे. राम चाहते तो विद्रोह कर सकते थे. शक्ति संतुलन उनके पक्ष में था. वह अयोध्या के राजकुमार थे और गद्दी पर बैठना उनके लिए बेहद आसान था. लेकिन राम ने पारिवारिक संबंधों की मर्यादा को सबसे ऊपर रखा. उन्होंने अपने जीवन में इसके कई उदाहरण भी पेश किए.

सीता की अग्निपरीक्षा

इसके बाद सीता की अग्निपरीक्षा का वक्त भगवान राम के मर्यादा पुरुष चरीत्र को और भी उभारता है. अगर किसी पति को पता हो कि उसकी पत्नी पाक साफ है फिर भी लोग अगर उस पर शक करें तो पति जरूर पक्ष लेता है. हालांकि भगवान राम ने उस वक्त भी मर्यादा बनाए रखा. सीता की अग्निपरीक्षा राम के जीवन में एक दागदार प्रसंग के तौर पर याद किया जाता है. इसे स्त्री विरोधी कदम माना जाता है. कहा जाता है कि एक धोबी ने कैद में सीता के बारे में शिकायत की. शिकायती केवल एक व्यक्ति था और शिकायत गंदी होने के साथ-साथ बेदम भी थी.

जीवन के अंतिम समय में दुख झेला

लेकिन नियम था कि हर शिकायत के पीछे कोई न कोई दुख होता है और उसकी उचित दवा या सजा होनी चाहिए. इस मामले में सीता का निर्वासन ही एक मात्र इलाज था. नियम अविवेकपूर्ण था. सजा क्रूर थी और पूरी घटना एक कलंक थी. जिसने राम को जीवन के शेष दिनों में दुखी बनाया.हालांकि भगवान राम ने नियम का पालन किया, उसे बदला नहीं. वे पूर्ण मर्यादा पुरुष थे. नियम और कानून से बंधे हुए थे और अपने बेदाग जीवन में धब्बा लगने पर भी उसका पालन किया.

राजनीतिक जीवन है अहम

भगवान श्री राम का राजनीतिक जीवन भी काफी अहम माना जाता है. एक क्षत्रिय राजा होने के बावजूद उन्होंने निषादों का साथ लिया. भीलों, वानरों और भालुओं का सहयोग लिया. उनकी सेना में अलग-अलग जाति के लोग थे. भारत जैसे नस्लीय, जातीय और सांस्कृतिक विरासत वाले देश में राम हर किसी के नायक हो सकते हैं. बशर्ते उनका सौम्य, शालीन और आश्वस्त करने वाले चेहरे और चरित्र को आगे किया जाए.

सीखने योग्य है राम का जीवन

यानी कि कुल मिलाकर अगर रामायण और रामचरितमानस में भगवान श्री राम के चरीत्र को शुरू से लेकर अंत तक देखा जाए और उसका खुद के जीवन में अगर मनुष्य प्रयोग करे तो काफी अच्छा हो. क्योंकि सीखने के लिए भगवान श्री राम के जीवन से बेहतर कुछ भी नहीं है.

रायपुरः चाहे रामचरित मानस (Ramcharitmanas) हो या रामायण (Ramayan)...ये दोनों ग्रंथ बस यही दर्शाता है कि भगवान श्री राम (Shree Ram) मर्यादा पुरुषोत्तम (Maryada Purushottam) थे. उन्होंने पूरा जीवन मर्यादा में रहकर ही न सिर्फ जिया बल्कि उनके जीवन से लोग मर्यादा का सही अर्थ समझते हैं.

पिता के वचन का रखा मान

जब भगवान श्री राम को माता कैकेयी (Kaikeyi) के वरदान के कारण वनवास जाना पड़ा था, तब उन्होंने महज पिता के वचन का मान रखते हुए अपना कर्तव्य निभाया और राजपाट छोड़कर वन की ओर चल पड़े.

वन जाना किया स्वीकार

दरअसल, राम के मर्यादा पुरुष बन कर उभरने का सबसे शुरुआती प्रसंग उनका वनवास स्वीकारना ही है. राजा दशरथ कैकेयी को वचन दे चुके थे. राम चाहते तो विद्रोह कर सकते थे. शक्ति संतुलन उनके पक्ष में था. वह अयोध्या के राजकुमार थे और गद्दी पर बैठना उनके लिए बेहद आसान था. लेकिन राम ने पारिवारिक संबंधों की मर्यादा को सबसे ऊपर रखा. उन्होंने अपने जीवन में इसके कई उदाहरण भी पेश किए.

सीता की अग्निपरीक्षा

इसके बाद सीता की अग्निपरीक्षा का वक्त भगवान राम के मर्यादा पुरुष चरीत्र को और भी उभारता है. अगर किसी पति को पता हो कि उसकी पत्नी पाक साफ है फिर भी लोग अगर उस पर शक करें तो पति जरूर पक्ष लेता है. हालांकि भगवान राम ने उस वक्त भी मर्यादा बनाए रखा. सीता की अग्निपरीक्षा राम के जीवन में एक दागदार प्रसंग के तौर पर याद किया जाता है. इसे स्त्री विरोधी कदम माना जाता है. कहा जाता है कि एक धोबी ने कैद में सीता के बारे में शिकायत की. शिकायती केवल एक व्यक्ति था और शिकायत गंदी होने के साथ-साथ बेदम भी थी.

जीवन के अंतिम समय में दुख झेला

लेकिन नियम था कि हर शिकायत के पीछे कोई न कोई दुख होता है और उसकी उचित दवा या सजा होनी चाहिए. इस मामले में सीता का निर्वासन ही एक मात्र इलाज था. नियम अविवेकपूर्ण था. सजा क्रूर थी और पूरी घटना एक कलंक थी. जिसने राम को जीवन के शेष दिनों में दुखी बनाया.हालांकि भगवान राम ने नियम का पालन किया, उसे बदला नहीं. वे पूर्ण मर्यादा पुरुष थे. नियम और कानून से बंधे हुए थे और अपने बेदाग जीवन में धब्बा लगने पर भी उसका पालन किया.

राजनीतिक जीवन है अहम

भगवान श्री राम का राजनीतिक जीवन भी काफी अहम माना जाता है. एक क्षत्रिय राजा होने के बावजूद उन्होंने निषादों का साथ लिया. भीलों, वानरों और भालुओं का सहयोग लिया. उनकी सेना में अलग-अलग जाति के लोग थे. भारत जैसे नस्लीय, जातीय और सांस्कृतिक विरासत वाले देश में राम हर किसी के नायक हो सकते हैं. बशर्ते उनका सौम्य, शालीन और आश्वस्त करने वाले चेहरे और चरित्र को आगे किया जाए.

सीखने योग्य है राम का जीवन

यानी कि कुल मिलाकर अगर रामायण और रामचरितमानस में भगवान श्री राम के चरीत्र को शुरू से लेकर अंत तक देखा जाए और उसका खुद के जीवन में अगर मनुष्य प्रयोग करे तो काफी अच्छा हो. क्योंकि सीखने के लिए भगवान श्री राम के जीवन से बेहतर कुछ भी नहीं है.

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