रायपुर: वैसे तो कुत्ते काफी शांत स्वभाव के होते हैं. किसी भी परिवार में कुत्ते आसानी से घुल-मिल जाते हैं. वहीं कुछ परिवारों का हिस्सा भी बन जाते हैं. लेकिन जब कुत्तों को जबरदस्ती परेशान किया जाता है. तभी वह काटते हैं. बारिश के मौसम में अकसर कुत्ते एग्रेसिव हो जाते हैं. वहीं इस सीजन में कुत्तों के काटने के मामले भी बढ़ जाते हैं.
राजधानी रायपुर में लगातार कुत्तों की तादाद बढ़ती जा रही है. रायपुर में करीब 40,000 कुत्ते हैं. कुत्ते मनुष्य के काफी करीबी होते हैं. कहा भी जाता है कि कुत्ते जैसा बफादार कोई नहीं हो सकता. वो अपने मालिक के हिसाब से खुद को ढाल लेता है. लेकिन जब मालिक का स्वभाव बदलता है. तो कुत्ता भी अपना स्वभाव बदलता है. कई बार बेवजह कुत्तों को परेशान करने के कारण वे चिड़चिड़े हो जाते हैं. जिसका परिणाम होता है कि वे काटने लगते हैं.
कुत्ते के काटने से रेबीज का खतरा
कुत्ते के काटने से रेबीज का डर हमेशा मनुष्यों में रहता है. इस वजह से जैसे ही कुत्ता किसी भी व्यक्ति को काटे तो उस व्यक्ति को तुरंत इलाज की जरूरत होती है. कुत्ते के काटने पर अस्पताल में दो तरह के इंजेक्शन लगाए जाते हैं. जिसमें एक एंटी रेबीज नाम का इंजेक्शन होता है. वहीं दूसरा रेबीज इम्युनोग्लोबिन नाम का इंजेक्शन होता है. अस्पतालों में यह इंजेक्शन आसानी से उपलब्ध होते हैं.
हर महीने कुत्ते के काटने के 150 केस
रायपुर के डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल (मेकाहारा) की बात की जाए तो यहां हर महीने करीब 150 कुत्ते के काटने के पेशेंट आते हैं. साल में करीब 2000 के आसपास पेशेंट अस्पताल पहुंचते हैं. शहर के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों से भी लोग रेबिज इंजेशन लगवाने आते हैं. अस्पताल में एंटी रेबीज और रेबीज इम्युनोग्लोबिन के इंजेक्शन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. पेशेंट के आने पर तुरंत उन्हें इंजेक्शन लगा दिया जाता है.
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मौसम के हिसाब से कुत्तों का बदलता है स्वभाव
आंबेडकर अस्पताल के एमडी मेडिसिन डॉक्टर आरएल खरे ने बताया कि डॉग बाइट के पेशेंट यूजुअली महीने में 150 से 160 के आसपास आते हैं. यह सीजनल वेरिएशन होता है. जैसे-जैसे मौसम बदलता है. केस बढ़ते हैं. बरसात के समय या ठंडी के समय जब कुत्तों की टेंडेंसी थोड़ी ज्यादा हो जाती है. उस समय कुत्ते चिड़चिड़े हो जाते हैं. उस दौरान डॉग बाइट के मामले अस्पतालों में ज्यादा आते हैं.
डॉग बाइट की ग्रेडिंग
• थोड़ा सा खरोच है या पैर में काटा है. उसको माइल्ड कैटेगरी में रखते हैं. ऐसे में उन्हें एंटी रेबीज का इंजेक्शन देते हैं.
• अगर कुत्ते ने हाथ में या छाती के ऊपर, फेस में एक से ज्यादा बार काटा गया है. ऐसे में उन्हें रैबिट इम्युनोग्लोबिन इंजेक्शन देने की आवश्यकता पड़ती है. जो कि हाई पावर इंजेक्शन होते हैं.
• रेबीज के दोनों इंजेक्शन अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. कई बार रायपुर के बाहर गांव से पेशेंट आते हैं, जिनमें बंदर के काटने, खासकर भालू के काटने के मामले होते हैं. यह सब खतरनाक होते हैं. रैबीज इम्युनोग्लोबिन इंजेक्शन लोगों को लगवाना पड़ता है.
कितने दिनों में लगाए जाते हैं एंटी रेबीज इंजेक्शन
0 दिन
1 दिन
7 दिन
14 दिन
28 दिन
पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध इंजेक्शन
रेबीज इम्युनोग्लोबिन इंजेक्शन की प्राइस बाजार में 5000 से 15000 तक रहती है. मरीज का जितना वजन होता है उस हिसाब से यह इंजेक्शन उसको लगाया जाता है. वहीं एंटी रेबीज इंजेक्शन के पांच डोज लगाए जाते हैं. जिसकी एक डोज की कीमत प्राइवेट या मेडिकल शॉप में 400 से 500 तक की होती है. यह सभी इंजेक्शन रायपुर के आंबेडकर अस्पताल में मुफ्त में लगाए जाते हैं. अस्पताल में इसकी उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में है.
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कुत्ते के काटने के तुरंत बाद टीकाकरण बहुत जरूरी
कुछ कुत्ते जो पहले से चार-पांच लोगों को काट चुके होते हैं या फिर इंसानों के बिना छेड़े वह कुत्ता लगातार लोगों को काट रहा हो. यह इंडिकेशन बताता है कि कुत्ते में रेबीज के लक्षण है. उसको लोगों को नजरअंदाज बिल्कुल नहीं करना चाहिए. तत्काल अस्पताल में जाकर इंजेक्शन लगवाना चाहिए. एक बार रेबीज होने के बाद उसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है. यह 100% जानलेवा बीमारी है. इसलिए कुत्ते के काटने के बाद टीकाकरण बहुत ही जरूरी है.
एक समय था जब आंबेडकर अस्पताल में रेबीज इंजेक्शन की कमी रहती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अस्पताल में कम से कम 2000 इंजेक्शन उपलब्ध रहते हैं. यानी 1 साल का इंजेक्शन अस्पताल के स्टॉक में उपलब्ध रहता है. रेबीज इम्युनोग्लोबिन भी भरपूर मात्रा में उपलब्ध है. आंबेडकर अस्पताल में दोनों इंजेक्शन मुफ्त में लगाए जाते हैं.
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इलाज के दौरान लोगों की उम्र मायने रखती है
डॉग बाइट के बाद उम्र मैटर नहीं करता है. हां इंजेक्शंन में डोज की मात्रा कम-ज्यादा रहती है. बच्चों में डोज की मात्रा कम रहती है, लेकिन सभी को इंजेक्शन लगना जरूरी है. हां डॉग कहां काटा है यह ज्यादा मैटर करता है. हाथ या छाती के ऊपर जब एक कुत्ता काटता है तो वह ज्यादा गंभीर मामला हो जाता है. इसमें तुरंत इंजेक्शन देना जरूरी होता है. धीरे-धीरे बीमारी दिमाग की नसों तक आती है जो कि खतरनाक है. गंभीर मामलों में एंटी रेबीज के साथ-साथ रेबीज इम्युनोग्लोबिन का इंजेक्शन भी पेशेंट को लगाना पड़ता है.
पालतू या स्ट्रीट डॉग का काटना एक जैसा होता है
पालतू या स्ट्रीट डॉग के काटने पर कौन ज्यादा जानलेवा होता है. वैसे वैक्सीन दोनों ही केस में लगाई जाती है. हा पेट डॉग वैक्सीनेटेड रहते हैं. फिर भी रेबीज जानलेवा बीमारी है. अगर एक परसेंट भी शक रेबीज का रहता है तो तुरंत एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाना लीजिए. वैक्सीन दोनों मामले में लगाई जाती है चाहे पेट डॉग काटे या स्ट्रीट डॉग. दोनों मामलों में डॉग के काटने के जगह को ध्यान में रखकर इंजेक्शन लगाते हैं. पेट डॉग मालिक हर महीने डॉग को इंजेक्शन देते हैं, जिससे उन्हें रेबीज या किसी तरह की कोई बीमारी ना हो.