रायपुर: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो रहे हैं. इसे देवशयनी एकादशी या लक्ष्मीनारायण एकादशी भी कहा जाता है. इस साल 20 जुलाई से चातुर्मास शुरू हो जाएगा. इस दिन से श्री हरि विष्णु अपने अन्तः कक्ष में शयन के लिए चले जाते हैं. श्री नारायण भगवान का शयनकाल 4 माह का रहता है, इसलिए इसे चातुर्मास कहा जाता है. व्रत का अर्थ होता है संकल्प. इन 4 महीनों में अनुशासन संयम योग और त्याग का जीवन जीने का शास्त्र आदेश देते हैं. इन दिनों में पत्तेदार सब्जियों का सेवन निषेध माना गया है, क्योंकि वर्षा काल में हरी पत्तेदार सब्जियों में कीड़े लगने की आशंका होती है. इसलिए सावधानी के लिए भाजी का सेवन निषेध माना गया है. इसी तरह दही का भी सेवन वर्जित है. इस समय संतुलित भोजन, नियमित भोजन और व्यायाम-योग करते हुए जीवन जीने का विधान है.
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चातुर्मास में प्रवचन के लिए जैन साधु और साध्वी का आगमन शुरू
चातुर्मास को देखते हुए राजधानी में जैन साधु और साध्वियों आगमन भी शुरू हो गया है. संतों का प्रवचन देवशयनी एकादशी के बाद गुरू पूर्णिमा से शुरू होगा. चातुर्मास शुरू होने में कुछ ही दिन शेष रह गए है. 20 जुलाई को देवशयनी एकादशी के पश्चात चातुर्मास का शुभारंभ हो जाएगा. 24 जुलाई गुरू पूर्णिमा से चातुर्मासिक प्रवचनों की शुरुआत होगी. जैन धर्म के साधु और साध्वियों के द्वारा 4 माह तक प्रवचन किए जाएंगे. चातुर्मास में होने वाले प्रवचन और साधु-साध्वी के आगमन को लेकर भी जैन मंदिरों में तैयारियां शुरू कर दी गई हैं.
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार मास की अखण्ड निद्रा ग्रहण करते हैं. चार माह के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को निद्रा त्याग करते हैं. जब सूर्य नारायण कर्क राशि में हों, तो तब इस एकादशी के दिन विष्णु भगवान को शयन कराना चाहिए और सूर्य नारायण के तुला राशि में आने पर भगवान को उठाना चाहिए. इस एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, इसलिए आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की यह एकादशी अवश्य करनी चाहिए.
भगवान विष्णु की प्रतिमा का पूजन
इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा अथवा शालिग्राम जी का यथाविधि षोडशोपचार पूजन किया जाता है. नीलाम्बर या तकिये में सुशोभित हिंडोले अथवा छोटे पलंग पल पर उन्हें प्रार्थना पूर्वक सुलाया जाता है. इस एकादशी को फलाहार करना चाहिए. आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चातुर्मास्य व्रत का अनुष्ठान किया जाता है, जिसका संकल्प इसी एकादशी को किया जाता है.
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ब्रह्मचर्यादि नियमों का पालन करना लाभदायक
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि चातुर्मास्य के समय साधु तपस्वी एक स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं, कहीं आते-जाते नहीं. वर्षाकाल के इस चौमासे में पृथ्वी की जलवायु दूषित हो जाती है. इन दिनों में एक स्थान पर निवास करके ब्रह्मचर्यादि नियमों का पालन करना अनेक दृष्टि से लाभदायक होता है. एकादशी के दिन व्रत रहकर स्नान ध्यान के अनन्तर सुखद पुष्प शैय्या पर विष्णु प्रतिमा को शयन कराएं और तदनन्तर प्रार्थना करके अपने चार महीने के एकान्तिक निवास का कार्यक्रम बनाएं और फलाहार रखें.
पूजन से प्राप्त होता है विशेष फल
द्वादशी के दिन फलाहार के अनन्तर सायंकाल पूजा करें, तब चातुर्मास्य का संकल्प लें. पुष्पादि से भगवान की प्रतिमा का अर्चन-वन्दना करके प्रार्थना करें. चातुर्मास्य व्रत में धर्मशास्त्रों में अनेक वस्तुओं के सेवन का निषेध है और इसके विचित्र परिणाम भी बताये गये हैं. चातुर्मास्य में गुड़ न खाने से मधुर स्वर, तेल का प्रयोग न करने से सुन्दरता, ताम्बूल न खाने से भोग की प्राप्ति एवं मधुर कण्ठ, घृत त्यागने से स्निग्ध शरीर, शाक त्यागने से पक्वान्न भोगी, दही, दूध, मट्ठा आदि के त्यागने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. इसमें योगाभ्यास होना चाहिए. भूमि पर कुशा की आसनी या काष्ठासन पर शयन कराना चाहिए. रात-दिन ब्रह्मचर्य पूर्वक हरिस्मरण, नाम जप, पूजनादि मे तत्पर रहना चाहिए. इससे विशेष फल प्राप्त होता है.