रायपुर: छत्तीसगढ़ में लगातार कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं. स्थिति रोजाना भयावह होती जा रही है. कोरोना संक्रमित मरीजों में अब अकेलेपन का शिकार होने के साथ डिप्रेशन में जाने की शिकायतें भी बढ़ रही हैं. कई बार पेशेंट्स इतना अकेला महसूस करने लगते हैं कि उन्हें साइकेट्रिस्ट की मदद लेनी पड़ती है. कोरोना महामारी ने लोगों के बीच दूरी ला दी है. संक्रमित मरीज लगातार अकेले रहने से खुद को बाकियों से अलग समझने लगते हैं. जिससे उनके मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है.
साइकोलॉजिस्ट जेसी आजवानी का कहना है कि हमें ज्यादातर डिप्रेशन शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. उससे इंसान का मस्तिष्क उसके मुताबिक काम करने लगता है और इंसान डिप्रेशन वाली चीजों को सोचने लग जाता है. अकेलापन महसूस करना अलग होता है. उसे ठीक करने के लिए लोग अपने पैशन या पसंदीदा चीजें कर सकते हैं. जैसे ड्रॉइंग, सिंगिंग, डांसिंग, राइटिंग जैसी कई चीजें हैं, जो मन बहलाने और खुश रहने के लिए की जा सकती हैं. हालांकि अगर मरीज अस्पताल में भर्ती है, तो कई सारी चीजें नहीं हो सकती, लेकिन वहां जरूरत है कि मन में और अपनी कल्पनाओं में बेहतर सोचना.
'मरीज से करें सकारात्मक बातें'
साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि हम खुद को खुद से खुश रख सकते हैं. जरूरत है तो अपने अंदर को सशक्त करने की और मन में खुद के लिए विश्वास जगाने की. उदाहरण के तौर पर हर अकेला व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार नहीं होता. वह खुद को ऐसे कामों में व्यस्त कर लेता है, जो उसे अकेलापन महसूस नहीं होने देते.
- ज्यादातर मरीजों के परिवारों को भी कहा जाता है कि वे रेगुलर अपने लोगों से संपर्क में रहे.
- बीमारी के बारे में कम से कम बात करें.
- जब भी बात करें तो मरीज को उसके बीमार होने का एहसास नहीं दिलाएं.
- हमेशा उत्साह के साथ और आशावादी होकर उनसे बात करें, जिससे उन्हें जल्द स्वस्थ होने में मदद मिल सके.
- मरीजों के साथ जितना सकारात्मक रवैया अपनाया जाएगा, उनका मस्तिष्क उतनी ही अच्छी चीजों को और संभावनाओं को सोचेगा और जल्द ठीक होगा.
राजधानी के अस्पतालों में की जा रही है बेहतर व्यवस्था
कोविड 19 के नोडल अधिकारी डॉक्टर ओपी सुंदरानी ने बताया कि किसी पेशेंट को अगर 10 दिन एहतियात के तौर पर हॉस्पिटल के अंदर रखा जाए, खासकर जब मरीज में माइल्ड सिम्प्टम हों, तो दिक्कतें हो ही जाती हैं. पेशेंट को अंजाने लोगों के बीच 10-15 दिन रहने में और एडजस्ट करने में परेशानी होती है. डॉक्टर का कहना है कि प्रदेश में लगातार मरीजों की संख्या बढ़ रही है. ऐसे में हर घंटे एक-एक मरीज के पास जाना और उनसे बात करना संभव नहीं है, क्योंकि पहले ही मेडिकल स्टाफ की कमी है.
डॉक्टर सुंदरानी ने बताया कि मरीजों को बेहतर महसूस कराने के लिए अस्पताल प्रबंधन की तरफ से कई प्रयास किए जा रहे हैं. स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाई जाए, जिससे सभी मरीजों से स्टाफ रू-ब-रू हो सकें और उनसे बातचीत कर सकें.
सेल्फ मोटिवेटेड मरीजों को बनाया जा रहा है वॉलिंटियर
डॉक्टर ने जानकारी देते हुए बताया कि ऐसे पॉजिटिव मरीज जो अस्पताल में भर्ती हैं, जो थोड़े सेल्फ मोटिवेटेड हैं, उन्हें भी वॉलिंटियर बनाया गया है. वे दूसरे मरीजों से जाकर उनसे बातचीत करते हैं और उन्हें भी मोटिवेट करते हैं. ऐसा करने से जिन मरीजों को अकेलापन महसूस होता है, वे बेहतर फील करते हैं और उन्हें लगता है कि उनका समय-समय पर ख्याल रखा जा रहा है.
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बहरहाल राजधानी रायपुर में कोरोना के मामले 13 हजार के पार जा चुके हैं. हाल में एक्टिव केस की संख्या राजधानी में 7400 के पार है. मरीजों का इलाज कोविड-19 अस्पतालों में जारी है. कोरोना मरीजों के मनोरंजन के लिए कई अस्पतालों में सुविधा दी गई है, लेकिन फिर भी कई पेशेंट अकेलापन महसूस करते हैं, जो मरीजों के लिए हानिकारक है. इस दौरान जरूरत है तो खुद का आत्मविश्वास बनाए रखने और जिंदादिली से जीने की, ताकि इस बीमारी को मात दी जा सके.