रायपुर: आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए टीएस सिंहदेव बड़ी चुनौती बन सकते हैं. क्योंकि ढाई-ढाई साल मुद्दे को लेकर अभी भी सिंहदेव की नाराजगी कम नहीं हुई है. यही कारण है कि एक ओर कांग्रेस सिंहदेव साधने में जुटी है तो दूसरी और भाजपा भी सिंहदेव पर नजर गड़ाए हुए है. जैसे ही सिंहदेव कांग्रेस से दूरी बनाते हैं, भाजपा उन्हें अपने पाले में ले लेगी. आईए आज हम आपको बताते हैं कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में टीएस सिंहदेव की आखिरकार क्या भूमिका है और क्यों उनको मनाने में कांग्रेस जुटी हुई है.
बघेल और सिंहदेव में 36 का आंकड़ा: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव में 36 का आंकड़ा है, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता. बात अगर पिछले विधानसभा चुनाव की करें तो ये दोनों जय-वीरू के नाम से जाने जाते थे. सत्ता में आने के बाद भी दोनों साथ में ही नजर आए. लेकिन जैसे ही ढाई साल पूरे हुए उसके बाद इन दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगी. टीएस सिंहदेव अक्सर ढाई साल के मुद्दे उठाते रहे हैं. आलम यह था कि सभी विधायकों के साथ भूपेश बघेल ने दिल्ली में हाईकमान के सामने डेरा डाल दिया था, जिससे ढाई-ढाई साल के फार्मूले पर अमल न किया जा सके. ये बात सिंहदेव को नागवार गुजरी. यही कारण है कि जब भी उन्हें मौका मिला वो ढाई साल पर खुलकर बोले.
पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है सिंहदेव: कांग्रेस में बनी ऐसी परिस्थिति पर राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा ने ईटीवी भारत को बताया कि "कांग्रेस में टीएस सिंह देव महत्वपूर्ण भूमिका रही है. इसके पहले भी सिंहदेव की पार्टी में अहम भूमिका रही है. चाहे घोषणा पत्र बनाने की बात हो या विधानसभा चुनाव में जीत के लिए उनके द्वारा किए गए काम की. सिंहदेव ने आर्थिक रूप से भी कांग्रेस को काफी मदद पहुंचाई है. पार्टी में सिंहदेव का हर क्षेत्र में योगदान रहा है."
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ढाई साल के फार्मूले पर सिंहदेव की नाराजगी: वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा का कहना है कि "इस बीच कहीं ना कहीं टीएस सिंह देव के मन में ढाई-ढाई साल वाले मुद्दे को लेकर नाराजगी अब भी है, जो गाहे-बगाहे उनकी बातचीत से झलकता है. भले ही सिंहदेव सरल सौम्य तरीके से अपनी बात रखते हों लेकिन केंद्र तक इस मैसेज को जरूर पहुंचाते हैं कि ढाई-ढाई साल के मामले पर कुछ नहीं हुआ."
केंद्रीय नेतृत्व पर सिंहदेव की नाराजगी दूर करने की जवाबदारी: शर्मा ने कहा "कांग्रेस में वे दिल से काम कर रहे हैं या नहीं यह सोचने वाली बात है. लेकिन यह जरूर है कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इनका बहुत उपयोग करेगा. उनके उपयोग को कांग्रेस में नकारा नहीं जा सकता. ऐसे में टीएस सिंहदेव की नाराजगी को पार्टी कैसे दूर करेगी, यह सवाल जरूर आता है. अब यह उसके ऊपर डिपेंड है कि वह बाबा की नाराजगी को कैसे दूर करें. केंद्र नेतृत्व के निर्णय के बाद ही पता चल सकता है कि बाबा का अगला कदम क्या होगा."
भाजपा की पैनी नजर: उचित शर्मा ने कहा कि "भाजपा सिंहदेव को हाथों हाथ लेने को तैयार है. वे बड़े नेता हैं, महाराज हैं. उनकी एक छवि है. इस प्रदेश में वे नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं. एक बड़े नेता के रूप में छत्तीसगढ़ के लिए हैं. निश्चित तौर पर यदि ऐसे समय में टीएस सिंह देव की पार्टी से दूरी होती है, तो भारतीय जनता पार्टी उन्हें हाथों-हाथ अपने पाले में लेने का पूरा प्रयास करेगी, क्योंकि भाजपा की भी सिंहदेव पर पैनी नजर है."
भाजपा से सिंहदेव के हैं वैचारिक मतभेद: उचित शर्मा "इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि बाबा के भाजपा से वैचारिक मतभेद हैं. ऐसे में बाबा भाजपा में जाएंगे कि नहीं ये कहना मुश्किल है. क्योंकि बाबा पहले ही बोल चुके हैं कि भाजपा से उनकी विचारधारा मेल नहीं खाती. तो ऐसे समय कैसी स्थिति उत्पन्न होगी, कहा नहीं जा सकता है लेकिन बाबा और भारतीय जनता पार्टी में वैचारिक मतभेद की बात उन्होंने खुद कही है."
कांग्रेस में हमेशा रहे हैं 2 पावर सेंटर: उचित शर्मा ने कहा कि "कांग्रेस की बात की जाए तो हमेशा दो पावर सेंटर रखे जाते हैं. अध्यक्ष अलग सीएम अलग. यह किसी एक पर भरोसा नहीं करते हैं. 2 पावर सेंटर लेकर चलते हैं. सभी जगह पर यही स्थिति है. मध्य प्रदेश की बात की जाए तो वहां एक दिग्विजय सिंह हैं, तो कमलनाथ है. राजस्थान में गहलोत है, तो सचिन पायलट हैं. छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो यहां भूपेश बघेल हैं, और टीएस सिंहदेव हैं. शायद इनकी आइडलॉजी यही हो."