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गणतंत्र दिवस के मौके पर गीतकार भास्कर मिश्र से खास बातचीत

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Published : Jan 25, 2021, 3:24 PM IST

गणतंत्र दिवस के मौके पर ETV भारत आपको बिलासपुर के एक स्थापित कवि और गीतकार भास्कर मिश्र से रूबरू करवा रहा है. भास्कर मिश्र देशभक्ति की भावना से प्रेरित अपनी कुछ रचनाओं को हमारे बीच पेश कर रहे हैं

Lyricist Bhaskar Mishra
गीतकार भास्कर मिश्र

बिलासपुर: गणतंत्र दिवस के विशेष मौके पर ETV भारत आपको बिलासपुर के एक स्थापित कवि और गीतकार भास्कर मिश्र से रूबरू करवा रहा है. भास्कर मिश्र देशभक्ति की भावना से प्रेरित अपनी कुछ रचनाओं को हमारे बीच पेश कर रहे हैं

ETV भारत पर गीतकार भास्कर मिश्र

भास्कर मिश्र अपनी रचना दीपशिखा सा जलना सीख,अंगारों पर चलना सीख के माध्यम से देशभक्ति की भावना का संचार कर रहे हैं. भास्कर मिश्र कहते हैं कि बज्र गिरे सिर ऊंचा कर दे. तूफानों में पलना सीख. कवि की सोच हमें विषम से विषम परिस्थितियों में लड़ने की ताकत बनाये रखने और डटकर मुकाबला करने के लिए प्रेरित करता है.

पढ़ें: SPECIAL: संविधान सभा में आदिवासियों की आवाज उठाने वाले 'छत्तीसगढ़ के गांधी'

भास्कर मिश्रा के मुताबिक त्याग, तपस्या, तपस्थली से यहां शौर्य निखरा करता है. भास्कर मिश्रा ने अपनी कविता के माध्यम से कई बार शूरवीरों की गाथा का वर्णन किया है. कवि ने स्वतंत्रता सेनानियों के तप और बलिदान का उदाहरण देकर लोगों से देशहित में मर मिटने की अपील की है.

पढ़ें: 101 साल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अभय साहू ने बताई आजादी की कहानी

काव्यपाठ के दौरान कवि भास्कर मिश्र अपने पिता जनवादी स्व.पारस मिश्र को भी याद किया. उसकी एक रचना "माटी का आकार बना है, माटी का आधार बना है...फिर क्यों प्यार ना हो माटी से,माटी का संसार बना है" को सुनाया. इस कविता के माध्यम से जीवन दर्शन और माटी के मोल को समझाने की भरसक कोशिश की गई है.

बिलासपुर: गणतंत्र दिवस के विशेष मौके पर ETV भारत आपको बिलासपुर के एक स्थापित कवि और गीतकार भास्कर मिश्र से रूबरू करवा रहा है. भास्कर मिश्र देशभक्ति की भावना से प्रेरित अपनी कुछ रचनाओं को हमारे बीच पेश कर रहे हैं

ETV भारत पर गीतकार भास्कर मिश्र

भास्कर मिश्र अपनी रचना दीपशिखा सा जलना सीख,अंगारों पर चलना सीख के माध्यम से देशभक्ति की भावना का संचार कर रहे हैं. भास्कर मिश्र कहते हैं कि बज्र गिरे सिर ऊंचा कर दे. तूफानों में पलना सीख. कवि की सोच हमें विषम से विषम परिस्थितियों में लड़ने की ताकत बनाये रखने और डटकर मुकाबला करने के लिए प्रेरित करता है.

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भास्कर मिश्रा के मुताबिक त्याग, तपस्या, तपस्थली से यहां शौर्य निखरा करता है. भास्कर मिश्रा ने अपनी कविता के माध्यम से कई बार शूरवीरों की गाथा का वर्णन किया है. कवि ने स्वतंत्रता सेनानियों के तप और बलिदान का उदाहरण देकर लोगों से देशहित में मर मिटने की अपील की है.

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काव्यपाठ के दौरान कवि भास्कर मिश्र अपने पिता जनवादी स्व.पारस मिश्र को भी याद किया. उसकी एक रचना "माटी का आकार बना है, माटी का आधार बना है...फिर क्यों प्यार ना हो माटी से,माटी का संसार बना है" को सुनाया. इस कविता के माध्यम से जीवन दर्शन और माटी के मोल को समझाने की भरसक कोशिश की गई है.

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