रायपुर: छत्तीसगढ़ में रमन सरकार में जो संसदीय सचिवों को लेकर विधानसभा से कोर्ट तक का दरवाजा खटखटा रहे थे, आज उनकी सरकार ने इस मुद्दे पर दो कदम और आगे बढ़ाते हुए 15 संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर दी है. इसके बाद से छत्तीसगढ़ की राजनीति में घमासान शुरू हो गया है. जो कांग्रेस पार्टी पहले इसके खिलाफ थी, वे अब इसके समर्थकों के निशाने पर आ गए हैं.
दरअसल, संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर कांग्रेस ने पिछली सरकार में इसे बड़ा मुद्दा बनाया था, लेकिन अब एक साथ 15 संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर शपथ भी दिला दी गई है. संसदीय सचिवों की नियुक्ति और पद के अधिकार को लेकर ETV भारत ने संविधान विशेषज्ञों से बात की है.
सरकारी लाभ लेने का अधिकार नहीं
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त डॉ सुशील त्रिवेदी बताते हैं कि संसदीय सचिवों को सरकार का सीधे तौर पर अंग नहीं माना जा सकता है. संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर पार्लियामेंट्री एक्ट में प्रावधान जरूर है, लेकिन इसमें सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप और किसी भी तरह के सरकारी लाभ लेने का अधिकार नहीं है. संसदीय सचिवों को विधानसभा में विभाग से संबंधित प्रश्नों के जवाब देने का भी अधिकार नहीं होता है. वह सरकारी दस्तावेजों के अध्ययन और उसके निराकरण का भी अधिकार नहीं रखते हैं. वे केवल संबंधित मंत्रियों के सहयोग के लिए ही अधिकार रखते हैं.
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मंत्रियों के सहयोगी
छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने 11 संसदीय सचिव बनाए थे, इनमें संसदीय सचिवों के पद को लेकर विपक्ष यानी कांग्रेस जो आज सत्ता में है, उसने नाराजगी जताई थी. जानकारों का कहना है कि संसदीय सचिवों को सुविधाएं तो मंत्रियों जैसी मिलती हैं, लेकिन अधिकार मंत्री जैसे नहीं होते हैं. संसदीय सचिव केवल मंत्रियों के सहयोगी होते हैं.
संविधान क्या कहता है
2003 में संविधान में संशोधन किया गया था, जिसमें कहा गया था कि किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री को मिलाकर विधायकों के 15 फीसदी मंत्री ही रह सकते हैं. संविधान के आर्टिकल 191 के मुताबिक कोई विधायक या सांसद सरकार के अंतर्गत किसी लाभ के पद पर नहीं रह सकता. ऐसा होने पर विधायकी से बर्खास्त भी किए जाने का प्रावधान है.
राज्यों में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी का क्या काम
पार्लियामेंट तो केंद्र में है, ऐसे में राज्यों में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी का क्या काम है, यह विषय बार-बार फोरम में आता रहा है. इसे लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यों में कई बार मंत्री पद ना मिलने से नाखुश विधायकों को यह पोस्ट दे दी जाती है. पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी को राज्य मंत्री या कैबिनेट मंत्री का रैंक दे दिया जाता है. इससे उन्हें सारी सुविधाएं भी मंत्री वाली ही मिलती हैं.
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मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार की वापसी एक साथ हुई थी, लेकिन मध्य प्रदेश में अब बीजेपी की सरकार है. वहीं राजस्थान में भी स्थायी सरकार को लेकर संशय है. इस बीच ऐसा कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में विधायकों की महत्वाकांक्षा को देखते हुए कांग्रेस सरकार ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर विधायकों को मनाने की कोशिश की है.