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दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दिया ये आइडिया

देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के इलाके में धुएं से प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने पराली जलाने की समस्या का निदान सुझाया है. सीएम ने सुझाव दिया कि पराली जलाने से अच्छा उसे जैविक खाद में बदल दिया जाए.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल.
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Published : Nov 6, 2019, 7:00 AM IST

Updated : Nov 8, 2019, 11:56 AM IST

रायपुर: दिल्ली और आस-पास के राज्य प्रदूषण से परेशान हैं. देश की राजधानी में तो हेल्थ इमरजेंसी तक लगा दी गई. दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में स्मॉग की सबसे बड़ी वजह पराली को माना जा रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस परेशानी से निपटने का तरीका सुझाया है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पराली जलाने से साल दर साल बढ़ रही प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए कृषि को मनरेगा से जोड़ने और पराली को जैविक खाद में बदलने का सुझाव दिया है.

दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दिया ये आइडिया

किसान पराली को लगा देते हैं आग

सितंबर-अक्टूबर महीने में हर साल पंजाब और हरियाणा राज्य को मिला दे तो तकरीबन 35 मिलियन टन पराली या पैरा जलाई जाती है. किसान धान की फसल के बाद तुरंत ही गेंहू बोना चाहते हैं. इसके लिए खेतों में बचे ठूंठ को ठिकाने लगाना जरूरी होता है. किसान खेतों में बचे ठूंठ और पराली में आग लगा देते हैं, जो सबसे सस्ता माध्यम है. लेकिन, इससे वायु प्रदूषण में लगातार इज्जाफा देखने को मिल रहा है.

दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दिया ये आइडिया

मुख्यमंत्री भूपेश ने बताया कि यदि मनरेगा के नियोजन से इस पराली और ठूंठ को जैविक खाद में बदलने के लिए केन्द्र सरकार निर्देश दे तो न केवल भारी मात्रा में खाद बनेगा, बल्कि पराली जलाई नहीं जाएगी. 100 किलो पराली से तकरीबन 60 किलोग्राम शुद्ध जैविक खाद बनाई जा सकती है. यानी कि 35 मिलियन टन पराली से तकरीबन 21 मिलियन टन (2 करोड़ 10 लाख टन) जैविक खाद बनाई जा सकती है.

छत्तीसगढ़ में पहल
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने छत्तीसगढ़ में 2000 गांवों में गौठान बनाए हैं. यहां जन-भागीदारी से पराली (पैरा) दान करने का कार्यक्रम जारी है. सरकार पराली को गौठान तक लाने की व्यवस्था कर रही है. गांव के युवा उद्यमी इन परालियों को जैविक खाद में बदल रहे हैं. मुख्यमंत्री का कहना है कि ये पराली का सबसे अच्छा निपटान है.

रायपुर: दिल्ली और आस-पास के राज्य प्रदूषण से परेशान हैं. देश की राजधानी में तो हेल्थ इमरजेंसी तक लगा दी गई. दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में स्मॉग की सबसे बड़ी वजह पराली को माना जा रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस परेशानी से निपटने का तरीका सुझाया है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पराली जलाने से साल दर साल बढ़ रही प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए कृषि को मनरेगा से जोड़ने और पराली को जैविक खाद में बदलने का सुझाव दिया है.

दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दिया ये आइडिया

किसान पराली को लगा देते हैं आग

सितंबर-अक्टूबर महीने में हर साल पंजाब और हरियाणा राज्य को मिला दे तो तकरीबन 35 मिलियन टन पराली या पैरा जलाई जाती है. किसान धान की फसल के बाद तुरंत ही गेंहू बोना चाहते हैं. इसके लिए खेतों में बचे ठूंठ को ठिकाने लगाना जरूरी होता है. किसान खेतों में बचे ठूंठ और पराली में आग लगा देते हैं, जो सबसे सस्ता माध्यम है. लेकिन, इससे वायु प्रदूषण में लगातार इज्जाफा देखने को मिल रहा है.

दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दिया ये आइडिया

मुख्यमंत्री भूपेश ने बताया कि यदि मनरेगा के नियोजन से इस पराली और ठूंठ को जैविक खाद में बदलने के लिए केन्द्र सरकार निर्देश दे तो न केवल भारी मात्रा में खाद बनेगा, बल्कि पराली जलाई नहीं जाएगी. 100 किलो पराली से तकरीबन 60 किलोग्राम शुद्ध जैविक खाद बनाई जा सकती है. यानी कि 35 मिलियन टन पराली से तकरीबन 21 मिलियन टन (2 करोड़ 10 लाख टन) जैविक खाद बनाई जा सकती है.

छत्तीसगढ़ में पहल
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने छत्तीसगढ़ में 2000 गांवों में गौठान बनाए हैं. यहां जन-भागीदारी से पराली (पैरा) दान करने का कार्यक्रम जारी है. सरकार पराली को गौठान तक लाने की व्यवस्था कर रही है. गांव के युवा उद्यमी इन परालियों को जैविक खाद में बदल रहे हैं. मुख्यमंत्री का कहना है कि ये पराली का सबसे अच्छा निपटान है.

Intro:रायपुर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने देश की राजधानी नई दिल्ली में पराली जलाने से हर वर्ष उत्पन्न होने वाली भीषण प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए कृषि को मनरेगा से जोड़ने और पराली को जैविक खाद में बदलने का सुझाव दिया है। मुख्यमंत्री ने इस समस्या के निदान के उपाय सुझाए। सितम्बर-अक्टूबर माह में हर साल पंजाब एवं हरियाणा राज्य को मिला दे तो लगभग 35 मिलियन टन पराली या पैरा जलाया जाता है।Body:
किसान द्वारा धान की फसल के तुरंत बाद गेंहू की फसल लेना और पैरा डिस्पोजल का जलाने से सस्ता का सिस्टम मौजूद नहीं होना। जबकि किसान जान रहे हैं कि इससे धरती की उर्वरकता नष्ट होती है। भयानक प्रदूषण उत्पन्न होता है। यदि मनरेगा के नियोजन से इस पराली और ठूंठ को जैविक खाद में बदलने के लिए केन्द्र सरकार निर्देश दे तो न केवल भारी मात्रा में खाद बनेगा, बल्कि पराली जलाया नही जाएगा, जिससे प्रदूषण नहीं होगा। 100 किलोग्राम पराली से लगभग 60 किलोग्राम शुद्ध जैविक खाद बन सकता है। यानी 35 मिलियन टन पराली से लगभग 21 मिलियन टन यानी 2 करोड़ 10 लाख टन जैविक खाद बन सकता है। जिससे उर्वरकता खोती पंजाब की न केवल भूमि का उन्नयन होगा, बल्कि वहां भयानक रूप से बढ़ते कैंसर का प्रकोप भी कम होगा और दिल्ली का स्वास्थ्य भी ठीक होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने छत्तीसगढ़ में 2000 गांवों में गौठान बनाएं है, जहां जन-भागीदारी से परालीदान (पैरादान) कार्यक्रम जारी है। सरकार उसे गौठान तक लाने की व्यवस्था कर रही है और ग्रामीण युवा उद्यमी उसे खाद में बदल रहे है। ये पराली समस्या का एक सम्पूर्ण हल है।
Conclusion:
Last Updated : Nov 8, 2019, 11:56 AM IST
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