रायपुर : मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) ने छत्तीसगढ़ में दीपावली की सांस्कृतिक परंपरा के अनुरूप धनतेरस पर अपने निवास के द्वार पर धान की झालर बांधने की रस्म पूरी की. दीपावली के दौरान खेतों में जब नयी फसल पककर तैयार हो जाती है, तब ग्रामीण धान की नर्म बालियों से कलात्मक झालर तैयार करते हैं. इनसे घरों की सजावट कर वे अपनी सुख और समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उन्हें पूजन के लिए आमंत्रित करते हैं.
क्या है धान की झालर बांधने की मान्यता :ऐसा लोक विश्वास है कि उनका यह आमंत्रण उन चिड़ियों के माध्यम से देवी तक पहुंचता है, जो धान के दाने चुगने आंगन और द्वार पर उतरती हैं. इस तरह प्रदेश की लोक-संस्कृति अपनी खुशियों को प्रकृति के साथ बांटती है और उसे सहेजती हैं. छत्तीसगढ़ में बस्तर से लेकर सरगुजा तक धान की झालर घर के आंगन और द्वार पर लटकाए जाने की परंपरा है. जिसे पहटा या पिंजरा भी कहा जाता है.
कितनी पुरानी है परंपरा : घर की चौखट पर सेला लगाने की भारतीय परम्परा सदियों पुरानी है. अधिकत्तर बस्तर में सभी प्रमुख उत्सव नवरात्रि, दीपावली, गुड़ी पड़वा के अवसर पर घरों के प्रवेशद्वार पर वंदनवार लगाने की परम्परा प्रचलित है. इन त्यौहारों के शुभ अवसर पर देवी-देवताओं के स्वागत वन्दन पर पुष्प और आम पत्ते का वंदनवार लगाते हैं. स्वागत वन्दन के लगाए जाने के कारण ही ये वन्दनवार कहलाते हैं.
बस्तर में कहा जाता है सेला : बस्तर में धान कटाई के बाद धान की बालियों से बने हुए सेला लगाने का रिवाज बरसों से चला आ रहा है. धान के इन वन्दनवारों को यहां सेला कहा जाता है. धान कटाई के बाद धान की बालियां सुखाकर रख ली जाती हैं. धान की इन बालियों के तनों को आपस मे गूंथकर पांच अंगुल चौड़े और चौखट की माप के लम्बे पट्टे का आकार दिया जाता है. फिर इसे घर की चौखट पर लगा दिया जाता है.बस्तर के ग्रामीण इलाकों में द्वार पर चिरई-चुगनी टांगने की परंपरा चली आ रही है. जब धान पककर तैयार हो जाता है. तो धान काटने के बाद बालियों का झूमर बनाकर द्वार पर लगाया जाता है ताकि कबूतर, कोयल अन्य पक्षी चिड़िया, गौरैया, कोयल दाना चुग सके.Dhanteras 2022