रायपुर : मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बोधघाट परियोजना को लेकर ग्रामीणों के विरोध पर बड़ा बयान दिया है. सीएम ने कहा है कि, 'आदिवासियों को खेती के लिए पानी की जरूरत हम महसूस कर रहे हैं. आदिवासियों के पास खेत तो है, लेकिन पानी नहीं है. यह प्रोजेक्ट बस्तर में खेती के लिए बहुत जरूरी है. इससे सभी को पेयजल मिलेगा'.
बीते दिनों एक दिवसीय प्रवास पर किरंदुल पहुंचे कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा ने बोधघाट परियोजना पर अपना बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि, 'बोधघाट परियोजना आदिवासियों के हितों को ध्यान में रखकर शुरू की जाएगी'.
जगदलपुर: बोधघाट परियोजना के विरोध में ग्रामीण लामबंद, 'जल, जंगल और जमीन' के लिए सौंपा ज्ञापन
बोधघाट परियोजना पर सरकार का दावा
सरकार का दावा है कि बोधघाट परियोजना बस्तर संभाग में खेती-किसानी और समृद्धि का नया इतिहास लिखेगी. परियोजना की लागत 22 हजार 653 करोड़ रुपये है. इससे दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिले में 3 लाख 63 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होगी. परियोजना के जरिए 300 मेगावाट बिजली उत्पादन भी किया जाना प्रस्तावित है. यह परियोजना इन्द्रावती नदी पर प्रस्तावित है. यह परियोजना गीदम से 10 किलोमीटर और संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बोधघाट बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना के विकास के लिए इन्द्रावती नदी विकास प्राधिकरण का भी गठन किया गया है. वहीं बोधघाट परियोजना को लेकर आस-पास के ग्रामीण लगातार विरोध करते आ रहे हैं.
लोगों ने जताई थी आपत्ति
बोधघाट विद्युत और सिंचाई परियोजना के सर्वे कार्य को रोकने के लिए बस्तर, कोंडागांव, दंतेवाड़ा सहित बीजापुर के 59 गांव के ग्रामीण लामबंद होने लगे थे. बोधघाट परियोजना संघर्ष समिति की अगुवाई में इन गांव के सरपंचों व ग्रामीणों ने कलेक्टर के नाम ज्ञापन सौंपकर सर्वे का काम रोकने की गुहार लगाई थी. संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुकमन कश्यप का कहना था कि 40 साल बाद फिर परियोजना को शुरू करने का कोई औचित्य नहीं है. 18 पंचायतों के 59 गांव प्रभावित हो रहे हैं. उन गांव की जमीन बेहद उपजाऊ है, समिति के अध्यक्ष ने देवी देवताओं के नाराज होने की बात भी कही है.