रायपुर : सीएम भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गीतकार लक्ष्मण मस्तूरिया को श्रद्धा सुमन अर्पित किए. मुख्यमंत्री ने मस्तुरिया को याद करते हुए कहा कि '' मस्तुरिया ने अपने गीतों और सुमधुर आवाज से छत्तीसगढ़ के हर वर्ग के दिल में जगह बनाई. उनके गीतों में छत्तीसगढ़ की माटी की सौंधी महक और यहां के लोक-जीवन की झलक रहती थी. उन्होंने कई छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए लोकप्रिय गीतों की रचना करने के साथ ‘लोकसुर’ नामक मासिक पत्रिका का भी सम्पादन और प्रकाशन भी किया.
कला जगत में उनके इस योगदान को हमेशा याद किया जाएगा. उनकी छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जीवंत बनाने और उनकी कला साधना से नवोदित कलाकारों को प्रेरित करने के लिए राज्य सरकार ने राज्य अलंकरण श्रेणी में लोकगीत के क्षेत्र में “लक्ष्मण मस्तुरिया पुरस्कार” देने की घोषणा की है.
कौन थे लक्ष्मण मस्तूरिया : मस्तूरिया जी का जन्म 07 जून 1949 को बिलासपुर के मस्तूरी में हुआ था. उनकी प्रमुख कृतियों में मोर संग चलव रे, हमू बेटा भुइंया के, गंवई-गंगा, धुनही बंसुरिया, माटी कहे कुम्हार से, सिर्फ सत्य के लिए हैं. वे मूलतः गीतकार थे और उन्होंने मोर संग चलव रे, मैं छत्तीसगढ़िया अंब रे जैसे लोकप्रिय गीतों की रचना की. इसमें से मोर संग चलव रे तो छत्तीसगढ़ के जन-जन के होठों पर बसा हुआ है.
मस्तूरिया 1974 में लाल किले पर छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध शायर मुकीम भारती के साथ कवि सम्मेलन में शामिल हुए थे. आकाशवाणी, दूरदर्शन और कवि सम्मेलनों के मंच से होते हुए लक्ष्मण छत्तीसगढ़ी फिल्मों में भी गीत लिखते रहे. उनकी 77 छत्तीसगढ़ी कविताओं का संग्रह ‘मोर संग चलव’ वर्ष 2003 में, इकसठ छत्तीसगढ़ी निबन्धों का संग्रह ‘माटी कहे कुम्हार से’ वर्ष 2008 में और इकहत्तर हिन्दी कविताओं का संकलन ‘सिर्फ सत्य के लिए‘ भी वर्ष 2008 में प्रकाशित हुआ. इसके पहले छत्तीसगढ़ के क्रांतिकारी अमर शहीद वीर नारायण सिंह की जीवन-गाथा पर आधारित उनकी एक लम्बी कविता ‘सोनाखान के आगी‘ भी पुस्तक रूप में आ चुकी है.CM Bhupesh Baghel pays tribute to Laxman Masturia