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SPECIAL: संक्रमण काल में स्पीकर से एजुकेशन, लाउडस्पीकर के जरिए बच्चों को पढ़ा रहे शिक्षक

कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो इसे लेकर सरकार के साथ-साथ शिक्षक भी लगातार प्रयास कर रहे हैं. मोहल्ला क्लास के तहत बच्चों को अब लाउडस्पीकर के जरिए पढ़ाया जा रहा है. जिससे सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन हो रहा है.

study through loudspeaker
स्पीकर से एजुकेशन
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Published : Aug 24, 2020, 9:50 PM IST

रायपुर: कोरोना संकट काल में सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा है. ऑनलाइन क्लास के बाद शिक्षा विभाग ने अब लाउडस्पीकर से पढ़ाई की शुरुआत की है. ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क नहीं होने से लाउडस्पीकर के जरिए उनकी पढ़ाई कराई जा रही है. इसे देखते हुए शिक्षकों ने भी पढ़ाई का एक अनोखा तरीका निकाला है. सरकारी स्कूल की शिक्षिका कविता आचार्य रिक्शे पर लाउडस्पीकर बांधकर वार्डों में घूम-घूमकर बच्चों को पढ़ा रही हैं.

स्पीकर से एजुकेशन
कविता आचार्य ने बताया कि बच्चों के लिए 3 प्वाइंट तैयार किए गए हैं. लाउडस्पीकर की आवाज सुनते ही बच्चे उन प्वाइंट्स पर इकट्ठा हो जाते हैं. शिक्षक दूर खड़े होकर लाउडस्पीकर के जरिए बच्चों को पढ़ाते हैं. इससे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी हो जाता है और बच्चों की पढ़ाई भी हो जाती है. शिक्षकों ने बताया कि इस क्षेत्र में ऐसे कई घर हैं जहां पर न तो फोन है और न ही उनके पास डाटा पैक है. ऑनलाइन पढ़ाई से ज्यादा लाउडस्पीकर से बच्चों को पढ़ाना ज्यादा आसान है.

छात्रों को आकर्षित करने के लिए प्रयोग

कविता ने बताया कि बच्चे जब लाउडस्पीकर या डीजे की आवाज सुनते हैं तो वह उससे प्रभावित होते हैं. यही सोच कर हमने यह आइडिया लगाया. कविता आचार्य ने बताया कि वे एक दिन पहले ही एरिया तय कर लेते हैं और उसी एरिया में जाकर बच्चों को पढ़ाते हैं. कविता आचार्य बताती हैं कि हम मंदिर में या सामुदायिक भवनों में बच्चों को इकट्ठा करते हैं. इससे परेशानी भी होती है. यदि स्कूल खुले रहते तो बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए भी एक निश्चित जगह पर पढ़ाई करा सकते थे. लेकिन अब पढ़ाई करवाने से ज्यादा चुनौती जगह को लेकर रहती है.

कोरोना से जंग में शिक्षा विभाग के कर्मचारी निभा रहे अहम भूमिका

लोगों की वजह से होती है डिस्टरबेंस

छात्रा कोमल ने बताया कि पहले स्कूल का समय तय था. लेकिन अब हमारी पढ़ाई खुले में होती है और ऐसे में कोई निश्चित समय भी नहीं होता. हम लाउडस्पीकर की आवाज सुनकर पढ़ने के लिए आते हैं. इसमें आने-जाने वाले लोगों की गाड़ियों की आवाज और आसपास के लोगों के शोर से डिस्टर्बेंस होती है. छात्रा नेहा का कहना है कि खुले में पढ़ाई और स्कूल में पढ़ाई में फर्क होता है. वहां समय से क्लास लगती है. यहां पर लाउडस्पीकर के आवाज सुनने के बाद हम पढ़ने आते हैं. इसमें आने-जाने वाले लोगों की आवाज और आसपास के शोर से हम डिस्टर्ब होते हैं, हमारा मन उतना पढ़ाई में नहीं लगता जितना स्कूल में लगता था.

सभी को मिले शिक्षा

शिक्षिका कविता आचार्य बताती हैं कि हमारी पूरी कोशिश है कि सभी को शिक्षा मिले. इसको लेकर हम हर मुमकिन प्रयास कर रहे हैं. थोड़ी मुश्किल है, थोड़ी चुनौतियां हैं, लेकिन हमारे लिए जरूरी है कि सभी बच्चों को शिक्षित करें और उनका साल बर्बाद न हो. शिक्षिका पुष्पलता बताती है कि हम एक दिन पहले ही एरिया तय कर लेते हैं कि हमें किस क्षेत्र में बच्चों को पढ़ाना है. बच्चों को इकट्ठा करना और उनको पढ़ाना एक चुनौती जरूर है, लेकिन कोरोना काल में बच्चों की शिक्षा पर फर्क न पड़ने देना ये ज्यादा जरुरी है.

रोजगार का बना जरिया

रिक्शा चलाने वाले सनत राम ने बताया कि लॉकडाउन में हमारे पास काम नहीं है. हम लंबे समय से रोजगार का इंतजार कर रहे हैं. शिक्षकों के इस प्रयास से बच्चों की पढ़ाई भी हो जा रही है, साथ ही दो-चार पैसे कमाकर हमारा घर भी चल जा रहा है.

रायपुर: कोरोना संकट काल में सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा है. ऑनलाइन क्लास के बाद शिक्षा विभाग ने अब लाउडस्पीकर से पढ़ाई की शुरुआत की है. ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क नहीं होने से लाउडस्पीकर के जरिए उनकी पढ़ाई कराई जा रही है. इसे देखते हुए शिक्षकों ने भी पढ़ाई का एक अनोखा तरीका निकाला है. सरकारी स्कूल की शिक्षिका कविता आचार्य रिक्शे पर लाउडस्पीकर बांधकर वार्डों में घूम-घूमकर बच्चों को पढ़ा रही हैं.

स्पीकर से एजुकेशन
कविता आचार्य ने बताया कि बच्चों के लिए 3 प्वाइंट तैयार किए गए हैं. लाउडस्पीकर की आवाज सुनते ही बच्चे उन प्वाइंट्स पर इकट्ठा हो जाते हैं. शिक्षक दूर खड़े होकर लाउडस्पीकर के जरिए बच्चों को पढ़ाते हैं. इससे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी हो जाता है और बच्चों की पढ़ाई भी हो जाती है. शिक्षकों ने बताया कि इस क्षेत्र में ऐसे कई घर हैं जहां पर न तो फोन है और न ही उनके पास डाटा पैक है. ऑनलाइन पढ़ाई से ज्यादा लाउडस्पीकर से बच्चों को पढ़ाना ज्यादा आसान है.

छात्रों को आकर्षित करने के लिए प्रयोग

कविता ने बताया कि बच्चे जब लाउडस्पीकर या डीजे की आवाज सुनते हैं तो वह उससे प्रभावित होते हैं. यही सोच कर हमने यह आइडिया लगाया. कविता आचार्य ने बताया कि वे एक दिन पहले ही एरिया तय कर लेते हैं और उसी एरिया में जाकर बच्चों को पढ़ाते हैं. कविता आचार्य बताती हैं कि हम मंदिर में या सामुदायिक भवनों में बच्चों को इकट्ठा करते हैं. इससे परेशानी भी होती है. यदि स्कूल खुले रहते तो बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए भी एक निश्चित जगह पर पढ़ाई करा सकते थे. लेकिन अब पढ़ाई करवाने से ज्यादा चुनौती जगह को लेकर रहती है.

कोरोना से जंग में शिक्षा विभाग के कर्मचारी निभा रहे अहम भूमिका

लोगों की वजह से होती है डिस्टरबेंस

छात्रा कोमल ने बताया कि पहले स्कूल का समय तय था. लेकिन अब हमारी पढ़ाई खुले में होती है और ऐसे में कोई निश्चित समय भी नहीं होता. हम लाउडस्पीकर की आवाज सुनकर पढ़ने के लिए आते हैं. इसमें आने-जाने वाले लोगों की गाड़ियों की आवाज और आसपास के लोगों के शोर से डिस्टर्बेंस होती है. छात्रा नेहा का कहना है कि खुले में पढ़ाई और स्कूल में पढ़ाई में फर्क होता है. वहां समय से क्लास लगती है. यहां पर लाउडस्पीकर के आवाज सुनने के बाद हम पढ़ने आते हैं. इसमें आने-जाने वाले लोगों की आवाज और आसपास के शोर से हम डिस्टर्ब होते हैं, हमारा मन उतना पढ़ाई में नहीं लगता जितना स्कूल में लगता था.

सभी को मिले शिक्षा

शिक्षिका कविता आचार्य बताती हैं कि हमारी पूरी कोशिश है कि सभी को शिक्षा मिले. इसको लेकर हम हर मुमकिन प्रयास कर रहे हैं. थोड़ी मुश्किल है, थोड़ी चुनौतियां हैं, लेकिन हमारे लिए जरूरी है कि सभी बच्चों को शिक्षित करें और उनका साल बर्बाद न हो. शिक्षिका पुष्पलता बताती है कि हम एक दिन पहले ही एरिया तय कर लेते हैं कि हमें किस क्षेत्र में बच्चों को पढ़ाना है. बच्चों को इकट्ठा करना और उनको पढ़ाना एक चुनौती जरूर है, लेकिन कोरोना काल में बच्चों की शिक्षा पर फर्क न पड़ने देना ये ज्यादा जरुरी है.

रोजगार का बना जरिया

रिक्शा चलाने वाले सनत राम ने बताया कि लॉकडाउन में हमारे पास काम नहीं है. हम लंबे समय से रोजगार का इंतजार कर रहे हैं. शिक्षकों के इस प्रयास से बच्चों की पढ़ाई भी हो जा रही है, साथ ही दो-चार पैसे कमाकर हमारा घर भी चल जा रहा है.

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