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Chicken Pox: जीवन में केवल एक ही बार होता है चिकन पॉक्स, पारंपरिक इलाज से बढ़ सकता है खतरा - एंटीवायरल ट्रीटमेंट

treatment in traditional way देश में करोड़ों देवी-देवताओं को पूजा जाता है. नदियों, पेड़ पौधों, पहाड़ों को देवतुल्य मानकर अर्चना की जाती है. चिकन पाॅक्स जैसी बीमारी को भी परंपरा से जोड़ दिया गया है. इसे छोटी माता कहते हुए डाॅक्टर के पास जाने की बजाय परंपरागत तरीके से लोग इलाज करने में जुट जाते हैं, जो कई बार खतरनाक भी साबित होता है. आइए जानें कैसे.

Chicken Pox
जीवन में केवल एक ही बार होता है चिकन पॉक्स
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Published : Feb 13, 2023, 11:46 AM IST

जीवन में केवल एक ही बार होता है चिकन पॉक्स

रायपुर: छोटी माता को चिकन पॉक्स कहा जाता है, जो एक संक्रामक बीमारी है. यानी एक इंसान से दूसरे में फैलने वाली. लोग इसे देवी की नाराजगी मानते हैं. घर में चिकन पॉक्स या छोटी माता से ग्रसित कोई भी बच्चा या व्यक्ति होता है वहां की महिलाएं पास के मंदिर जाने लगती हैं. यह प्रक्रिया 7 दिनों तक चलती रहती है. चर्म रोग विशेषज्ञ डाॅक्टर भरत सिंघानिया ने इसे महज भ्रम करार दिया. पारंपरिक इलाज को जोखिमभरा बताते समय पर डाॅक्टर के पास जाने की सलाह दी.

कोरोना वायरस की तरह है एक संक्रामक बीमारी: डॉक्टर भरत सिंघानिया ने बताया कि "यह लोगों में केवल एक भ्रम है कि यह देवी की नाराजगी है. यह बीमारी सदियों से चली आ रही है. यही कारण है कि इसे छोटी माता का नाम दिया गया, जो केवल एक मिथ है. चिकन पॉक्स एक वायरल इंफेक्शन है. जैसे कोरोना वायरस फैलता है, वैसे ही यह चिकन पॉक्स फैलता है. लोगों को पता होना चाहिए कि यह छूने से फैलने वाली बीमारी है. इसका मेडिकल ट्रीटमेंट करना बेहद जरूरी होता है.

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चिकन पाॅक्स से लड़ने के लिए शरीर बना लेता है एंटीबाॅडी: छोटी माता या चिकन पॉक्स वेरीसेल्ला जोस्टर वायरस के कारण होने वाली एक संक्रामक बीमारी है. व्यक्ति को जीवन में एक बार ही ये बीमारी होती है. यह बीमारी यदि एक बार हो जाए तो दोबारा नहीं होती है. डॉक्टरों के मुताबिक इस बीमारी के होने से शरीर में प्राकृतिक रूप से चिकन पॉक्स से लड़ने के लिए एंटीबाॅडीज तैयार हो जाती है. इसकी वजह से हमारे शरीर पर दोबारा यह वायरस अटैक नहीं कर पाता.

10 साल के कम उम्र में ज्यादा होती है यह बीमारी: अधिकतर 10 वर्ष से कम उम्र की आयु के लोगों को यह बीमारी पहले ही हो जाती है. कई बार यह बड़ों में भी हो जाता है. बड़े लोगों में यह काफी गंभीर रूप में होता है, जिसका इलाज थोड़ा कठिन होता है. वायरल इंफेक्शन में फुंसियां होती हैं और लाल लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. बच्चों को फीवर आता है इसीलिए अपने डॉक्टरों से इलाज कराना बेहद जरूरी होता है. कई बार लोग पारंपरिक रूप से इलाज करते हैं लेकिन इस तरह के ट्रीटमेंट से इसका खतरा और भी बढ़ सकता है. बीमारी और ज्यादा बढ़ सकती है, जिसका इलाज करना भी मुश्किल हो जाता है.

मरीजों के लक्षण देखकर दी जाती है दवा: वायरल फीवर होने की वजह से इसके अलग-अलग सिम्टम्स होते हैं. मरीज को देखकर उन्हें दवा दी जाती है. यदि सिंपल फीवर है और छोटे-छोटे फफोले पड़े हैं तो बुखार को कम करने की दवा दी जाती है. यदि यह ज्यादा गंभीर है तो एंटीवायरल ट्रीटमेंट शुरू किया जाता है जो कि 7 से 8 दिन का कोर्स होता है. साथ ही एंटीबायोटिक भी दी जाती है. मरीज की स्थिति देखकर इसके अलग-अलग ट्रीटमेंट किए जाते हैं."

जीवन में केवल एक ही बार होता है चिकन पॉक्स

रायपुर: छोटी माता को चिकन पॉक्स कहा जाता है, जो एक संक्रामक बीमारी है. यानी एक इंसान से दूसरे में फैलने वाली. लोग इसे देवी की नाराजगी मानते हैं. घर में चिकन पॉक्स या छोटी माता से ग्रसित कोई भी बच्चा या व्यक्ति होता है वहां की महिलाएं पास के मंदिर जाने लगती हैं. यह प्रक्रिया 7 दिनों तक चलती रहती है. चर्म रोग विशेषज्ञ डाॅक्टर भरत सिंघानिया ने इसे महज भ्रम करार दिया. पारंपरिक इलाज को जोखिमभरा बताते समय पर डाॅक्टर के पास जाने की सलाह दी.

कोरोना वायरस की तरह है एक संक्रामक बीमारी: डॉक्टर भरत सिंघानिया ने बताया कि "यह लोगों में केवल एक भ्रम है कि यह देवी की नाराजगी है. यह बीमारी सदियों से चली आ रही है. यही कारण है कि इसे छोटी माता का नाम दिया गया, जो केवल एक मिथ है. चिकन पॉक्स एक वायरल इंफेक्शन है. जैसे कोरोना वायरस फैलता है, वैसे ही यह चिकन पॉक्स फैलता है. लोगों को पता होना चाहिए कि यह छूने से फैलने वाली बीमारी है. इसका मेडिकल ट्रीटमेंट करना बेहद जरूरी होता है.

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चिकन पाॅक्स से लड़ने के लिए शरीर बना लेता है एंटीबाॅडी: छोटी माता या चिकन पॉक्स वेरीसेल्ला जोस्टर वायरस के कारण होने वाली एक संक्रामक बीमारी है. व्यक्ति को जीवन में एक बार ही ये बीमारी होती है. यह बीमारी यदि एक बार हो जाए तो दोबारा नहीं होती है. डॉक्टरों के मुताबिक इस बीमारी के होने से शरीर में प्राकृतिक रूप से चिकन पॉक्स से लड़ने के लिए एंटीबाॅडीज तैयार हो जाती है. इसकी वजह से हमारे शरीर पर दोबारा यह वायरस अटैक नहीं कर पाता.

10 साल के कम उम्र में ज्यादा होती है यह बीमारी: अधिकतर 10 वर्ष से कम उम्र की आयु के लोगों को यह बीमारी पहले ही हो जाती है. कई बार यह बड़ों में भी हो जाता है. बड़े लोगों में यह काफी गंभीर रूप में होता है, जिसका इलाज थोड़ा कठिन होता है. वायरल इंफेक्शन में फुंसियां होती हैं और लाल लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. बच्चों को फीवर आता है इसीलिए अपने डॉक्टरों से इलाज कराना बेहद जरूरी होता है. कई बार लोग पारंपरिक रूप से इलाज करते हैं लेकिन इस तरह के ट्रीटमेंट से इसका खतरा और भी बढ़ सकता है. बीमारी और ज्यादा बढ़ सकती है, जिसका इलाज करना भी मुश्किल हो जाता है.

मरीजों के लक्षण देखकर दी जाती है दवा: वायरल फीवर होने की वजह से इसके अलग-अलग सिम्टम्स होते हैं. मरीज को देखकर उन्हें दवा दी जाती है. यदि सिंपल फीवर है और छोटे-छोटे फफोले पड़े हैं तो बुखार को कम करने की दवा दी जाती है. यदि यह ज्यादा गंभीर है तो एंटीवायरल ट्रीटमेंट शुरू किया जाता है जो कि 7 से 8 दिन का कोर्स होता है. साथ ही एंटीबायोटिक भी दी जाती है. मरीज की स्थिति देखकर इसके अलग-अलग ट्रीटमेंट किए जाते हैं."

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