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MCB NEWS: विधायक गुलाब कमरो ने घर घर जाकर मांगा छेरछेरा

छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है. इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है. सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव के लोग उत्साह से मनाते हैं. इस मौके पर मनेंद्रगढ़ में विधायक गुलाब कमरो ने गांव में घर घर जा कर छेरछेरा मांगा. MLA Gulab Kamar asked for chherchhera विधायक लोगों के घर पहुंचे और छेरछेरा की बधाई और शुभकामनाएं दी. Congratulations and best wishes for Chherchera

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विधायक गुलाब कमरों ने मांगा छेरछेरा
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Published : Jan 8, 2023, 11:01 PM IST

विधायक गुलाब कमरों ने मांगा छेरछेरा

मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: एमसीबी जिले के मनेंद्रगढ़ के डोमनापारा में छेरछेरा पर्व का आयोजन किया गया. chherchera festival organized in domnapara of manendragarh छेरछेरा पर्व बड़े ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं. इसे दान लेने देन पर्व माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती. इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं. युवा डंडा नृत्य करते हैं.

छेरछेरा पर्व का महत्व : छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए बघेल सरकार कदम उठा रही है. इसके तहत हर पर्व और त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है. जिन अन्य लोक पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं. वे हरेली, तीजा, मां कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी दिवस और छठ. अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है.

छत्तीसगढ़ हमेशा से दान परम्परा का पोषक रहा: छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परम्परा का पोषक रहा है. कृषि यहां का जीवनाधार है और धान मुख्य फसल. किसान धान की बोनी से लेकर कटाई और मिंजाई के बाद इसे कोठी में रखते हैं. उसके बाद दान परम्परा का निर्वाह करते हैं. छेरछेरा के दिन शाकंभरी देवी की जयंती मनाई जाती है. ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में सर्वत्र घोर अकाल पड़ने के कारण हाकाकार मच गया. लोग भूख और प्यास से अकाल से परेशान हो गए. इस दौरान छेरछेरा का पर्व मनाने की बात सामने आई.

यह भी पढ़ें: बस्तर में नहीं होना चाहिए जबरिया धर्मांतरण: संतराम नेताम

छेरछेरा पर्व की पूजा विधि: नभ मंडल में छाते जरूर पर बरसते नहीं. तब दुखीजनों की पूजा-प्रार्थना से प्रसन्न होकर अन्न, फूल-फल और औषधि की देवी शाकंभरी प्रकट हुई और अकाल को सुकाल में बदल दिया. सर्वत्र खुशी का माहौल निर्मित हो गया. छेरछेरा पुन्नी के दिन इन्हीं शाकंभरी देवी की पूजा अर्चना की जाती है. यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इस दिन नट का रूप धारण कर पार्वती (अन्नपूर्णा) से अन्नदान प्राप्त किया था. छेरछेरा पर्व इतिहास की ओर भी इंगित करता है.

छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं. दान लेते समय बच्चे 'छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा' कहते हैं और जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे. 'अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन' इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे.

विधायक गुलाब कमरों ने मांगा छेरछेरा

मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: एमसीबी जिले के मनेंद्रगढ़ के डोमनापारा में छेरछेरा पर्व का आयोजन किया गया. chherchera festival organized in domnapara of manendragarh छेरछेरा पर्व बड़े ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं. इसे दान लेने देन पर्व माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती. इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं. युवा डंडा नृत्य करते हैं.

छेरछेरा पर्व का महत्व : छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए बघेल सरकार कदम उठा रही है. इसके तहत हर पर्व और त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है. जिन अन्य लोक पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं. वे हरेली, तीजा, मां कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी दिवस और छठ. अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है.

छत्तीसगढ़ हमेशा से दान परम्परा का पोषक रहा: छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परम्परा का पोषक रहा है. कृषि यहां का जीवनाधार है और धान मुख्य फसल. किसान धान की बोनी से लेकर कटाई और मिंजाई के बाद इसे कोठी में रखते हैं. उसके बाद दान परम्परा का निर्वाह करते हैं. छेरछेरा के दिन शाकंभरी देवी की जयंती मनाई जाती है. ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में सर्वत्र घोर अकाल पड़ने के कारण हाकाकार मच गया. लोग भूख और प्यास से अकाल से परेशान हो गए. इस दौरान छेरछेरा का पर्व मनाने की बात सामने आई.

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छेरछेरा पर्व की पूजा विधि: नभ मंडल में छाते जरूर पर बरसते नहीं. तब दुखीजनों की पूजा-प्रार्थना से प्रसन्न होकर अन्न, फूल-फल और औषधि की देवी शाकंभरी प्रकट हुई और अकाल को सुकाल में बदल दिया. सर्वत्र खुशी का माहौल निर्मित हो गया. छेरछेरा पुन्नी के दिन इन्हीं शाकंभरी देवी की पूजा अर्चना की जाती है. यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इस दिन नट का रूप धारण कर पार्वती (अन्नपूर्णा) से अन्नदान प्राप्त किया था. छेरछेरा पर्व इतिहास की ओर भी इंगित करता है.

छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं. दान लेते समय बच्चे 'छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा' कहते हैं और जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे. 'अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन' इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे.

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