भाषा अपनी सुंदरता में कई बोलियों का रस घोलती है. यही बोलियां बन जाती हैं हमारी पहचान. हमारी पहचान न खोए इसके लिए जरूरी है इनसे जुड़ा साहित्य संजोया जाए. कहानियां, किस्से, नाटक, कविताओं को किसी तरह जिंदा रखा जाए. छत्तीसगढ़ी भाषा बहुत मीठी है और कई लोकगीतों, विधाओं के जरिए हमारे कानों में रस घोल रही है.
11 जुलाई 2008 को छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा दिया गया. 14 अगस्त 2010 को छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन किया गया. 3 सितंबर 2010 को छत्तीसगढ़ी राजभाषा विधेयक को विधानसभा से मंजूरी मिली थी. छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के मौके पर हम छत्तीसगढ़ी के साहित्यक विकास और इसके प्रमुख साहित्यकारों के बारे में जानते हैं-
- छत्तीसगढ़ी व्याकरण की रचना हीरालाल काव्योपाध्याय ने 1885 में की थी.
- जार्ज ग्रियसन ने 1890 में इस व्याकरण का अंग्रेजी में अनुवाद किया था.
- पंडित सुंदरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ी में सर्वप्रथम प्रबंध काव्य रचना की.
- वहीं छत्तीसगढ़ी में गद्य की परंपरा की शुरुआत पंडित लोचन प्रसाद पांडेय ने की.
- ‘हीरू के कहिनी’ को पहला छत्तीसगढ़ी उपन्यास माना जाता है, इसे बंशीधर पांडेय ने लिखा था.
- ‘सुरही गइया’ को छत्तीसगढ़ी की पहली कहानी मानी जाती है, इसे पं. सीताराम मिश्र ने लिखी थी.
छत्तीसगढ़ी भाषा की बात की जाए और प्रमुख साहित्यकारों न हो तो अन्याय होगा. छत्तीसगढ़ी साहित्य के कुछ प्रमुख नाम हैं-
- गोपाल मिश्र - खूब तमाशा, जैमिनी अश्वमेघ, सुदामा चरित, भक्ति चिंताणि, राम प्रताप
- पंडित सुंदरलाल शर्मा- छत्तीसगढ़ी दानलीला
- कोदूराम दलित – सियानी गोठ, कनवा समधी, दू मितान
- श्यामलाल चतुर्वेदी- राम वनवास, पर्राभर लाई
- हरि ठाकुर- छत्तीसगड़ी गीत अउ कविता, जय छत्तीसगढ़, सुरता के चंदन, शहीद वीर नारायन सिंह, 5 ) धान क कटोरा, बानी हे अनमोल, छत्तीसगढ़ी के इतिहास पुरुष, छत्तीसगढ़ गाथा
- डॉ नरेन्द्र देव वर्मा - 'अपूर्वा', सुबह की तलाश
- केयूर भूषण- कहां बिलोगे मोर धान के कटोरा, कुल के मरजाद, लहर
- परदेस राम वर्मा- बइला नोहव
इस तरह छत्तीसगढ़ी में लिखने की परंपरा काफी पुरानी रही है. छत्तीसगढ़ी में कई गंभीर रचनाएं हुई हैं.