रायपुर: भूपेश बघेल की सरकार ने कुपोषण मुक्त छत्तीसगढ़ के लिए 2 अक्टूबर 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर प्रदेश में मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरुआत की थी. इस अभियान को सफल बनाने के लिए लोगों से मदद की अपील भी की गई थी. अभियान में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने के साथ कुपोषितों को न्यूट्रिशन उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया था, लेकिन एक साल बाद भी इस अभियान से कुछ खास सफलता नहीं मिलता दिख रहा है.
वनांचल के ज्यादातर बच्चे कुपोषित
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों के तहत छत्तीसगढ़ में 5 वर्ष से कम उम्र के 37.7 फीसदी बच्चे कुपोषण और 15 से 49 वर्ष की 47 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित बताई जा रही हैं. इन आंकड़ों में ज्यादातर बच्चे और महिलाएं आदिवासी और वनांचल के रहने वाले हैं. इन इलाकों में जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी इसका सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है.
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13.79% कुपोषण में कमी!
छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि बीते एक साल में कुपोषित बच्चों की संख्या में लगभग 13.79% की कमी आई है. इसे सरकार एक बड़ा उपलब्धि बता रही है. हालांकि कुछ जानकार इसपर भी सवाल उठा रहे हैं. जानकारों का कहना है छत्तीसगढ़ सरकार कुपोषण दूर करने के काम तो बेहतर कर रही है, लेकिन एक साल में 14 फीसदी की कमी शक के दायरे में है.
योजना दूरस्थ इलाके के लोगों की पहुंच से दूर
सामाजिक कार्यकर्ता मनजीत कौर कहती हैं, सरकार कुपोषण दूर करने के लिए योजना और अभियान तो शुरू कर दी है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसे पहुंचाने में सरकार अभी भी नाकाम रही है. मनजीत कौर कहती हैं, छत्तीसगढ़ के बहुत से ऐसे पिछड़े इलाके हैं, जहां कुपोषित बच्चों और एनीमिया से पीड़ित महिलाओं को पौष्टिक भोजन नहीं मिल रहा है. जहां सरकार की योजना आज तक नहीं पहुंची है. वनांचल के कई लोग ऐसी किसी योजना के बारे में जानते तक नहीं हैं.
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सुपोषण अभियान का लाभ!
इधर, कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कुपोषण को लेकर अपना ही दावा है. धनंजय सिंह कहते हैं, भूपेश सरकार के द्वारा एक साल पहले सुपोषण अभियान की शुरुआत की गई थी, जिसके बाद छत्तीसगढ़ में कुपोषित बच्चों की संख्या में लगभग 14 फीसदी कमी आई है. जो छत्तीसगढ़ सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है.
मौसमी फल हो सकता है बेहतर विकल्प
कुपोषण को खत्म करने को लेकर डॉक्टर सारिका श्रीवास्तव बताती हैं, कुपोषण का मुख्य कारण है पौष्टिक आहार का न मिलना. कई बार पर्याप्त मात्रा में भोजन या फिर पौष्टिक भोजन ना मिलने के कारण लोग कुपोषण का शिकार हो रहे हैं. इसमें बच्चों और महिलाओं की संख्या कहीं ज्यादा है. डॉक्टर सारिका श्रीवास्तव बताती हैं, कुपोषण को हराने के लिए खानपान में स्थानीय और मौसमी चीजों का पर्याप्त मात्रा में इस्तेमाल कर सकते हैं.
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आज भी बचा हुआ खाना खाकर जी रही हैं महिलाएं
मनजीत कौर बताती हैं, छत्तीसगढ़ में एक बड़ी आबादी में बीते दो दशक में ज्यादा सामाजिक बदलाव नहीं आई है. कई पिछड़े इलाकों में आज भी ज्यादातर महिलाएं परिवार के सभी सदस्यों के खाने के बाद बचा हुआ खाना खाकर ही जी रही हैं. इससे उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिलता है. जिसके कारण वे कुपोषण के साथ एनिमिया और अन्य कई बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं.
कई गांवों में नहीं है आंगनबाड़ी
मनजीत कौर कहती हैं, सरकार का सुपोषण अभियान आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका के दम पर टिका हुआ है. उनके माध्यम से ही इस अभियान को चलाया जा रहा है, लेकिन आज भी कई गांव ऐसे हैं, जहां एक भी आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है. ऐसे में उन क्षेत्रों में कुपोषण से निपटने के लिए सरकार के पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है. इसके कारण कुछ क्षेत्रों में तो सफलता मिल रही है, लेकिन कई क्षेत्रों में लगातार पछड़ते जा रहे हैं.
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कुपोषण मुक्त होगा छत्तीसगढ़!
इधर, कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह का दावा है कि उनकी सरकार आगले 3 साल में छत्तीसगढ़ को कुपोषण मुक्त कर देगी. इसके लिए सरकार लगातार काम कर रही है. धनंजय सिंह का दावा है कि उनकी सरकार छत्तीसगढ़ के एक-एक कोने में कुपोषण दूर करने के लिए योजना चलाई जा रही है.
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नहीं हो रहा योजनाओं का क्रियान्वयन
कुपोषण पर चर्चा के दौरान कई और बातें सामने है. इसमें एक बात ये भी सामने आई है कि सरकार योजनाएं तो अच्छी बनाती है, लेकिन उन योजनाओं का क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं होता है. इस वजह से योजनाओं का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच पाता है. कुछ इसी तरह की कमी सुपोषण योजना के क्रियान्वयन में देखने को मिल रही है. सरकार भले ही आगामी 3 सालों में प्रदेश को कुपोषण मुक्त करने के दावा कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर की जाने वाली तैयारी पर्याप्त नजर नहीं आ रही है. अब देखने वाली बात है कि आगामी 3 वर्षों में भूपेश सरकार प्रदेश को कुपोषण मुक्त कर पाती है या नहीं.