रायपुर/बस्तर: छत्तीसगढ़ की 20 सीटों पर 7 नवंबर को पहले चरण की वोटिंग है. इनमें छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग की 12 सीटें भी शामिल हैं. वहीं राजनांदगांव और कवर्धा जिले की सीटें भी शामिल हैं. यह सभी नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं. नक्सली चुनाव बहिष्कार करते हैं और चुनाव के दौरान हिंसा भी करते हैं. इस रिपोर्ट के जरिए हम समझेंगे कि कैसे लगातार चुनाव में गनतंत्र पर लोकतंत्र की विजय होती रही है. कैसे बस्तर की जनता ने माओवादियों को करारा जवाब दिया और बस्तर में लोकतंत्र के पर्व चुनाव मे अपनी आस्था जताई है.
बस्तर में लगातार बढ़ा मतदान प्रतिशत (Victory Of Democracy Over Naxalism): विधानसभा चुनावों में बस्तर में लगातार मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ है. इस बात की गवाही आंकड़े दे रहे हैं. यहां हुए अब तक के विधानसभा चुनाव में लगातार वोटिंग परसेंटेज बढ़ा है.
- साल 2003 में बस्तर में मतदान प्रतिशत 66.04 फीसदी था
- साल 2008 में बस्तर में मतदान प्रतिशत 67.05 रहा
- साल 2013 में मतदान प्रतिशत 76 फीसदी रहा
- साल 2018 में यह वोटिंग परसेंटेज 76.37 प्रतिशत रहा
- बीजापुर , कोंटा और दंतेवाड़ा में सबसे अधिक मतदान देखा गया.
- बीजापुर में साल 2008 में वोटिंग परसेंटेज 29.19 फीसदी रहा
- जो साल 2018 में बढ़कर 48.18 फीसदी हो गया.
''आज नक्सलियों का मूल उद्देश्य क्षेत्र के नेतृत्व को खत्म करना है. जिस क्षेत्र में नेतृत्व उठने लगता है, वहां नक्सलियों की पकड़ कम होने लगती है, जिसके बाद वह इससे संबंधित शख्स को भी मौत के घाट उतारने से गुरेज नहीं करते हैं. नक्सलगढ़ में मतदान प्रतिशत में निरंतर वृद्धि आम लोगों के बीच बढ़ती जागरूकता का प्रमाण है. जिससे नक्सलवाद को जवाब मिल रहा है'' वर्णिका शर्मा, नक्सल एक्सपर्ट
नक्सली चुनाव को प्रभावित करने की रचते हैं साजिश: बस्तर में नक्सली लगातार चुनाव को प्रभावित करने की साजिश रचते आए हैं. लेकिन सुरक्षाबलों की मुस्तैदी से नक्सली अपनी योजना में कामयाब नहीं होते आए हैं. चुनावों से पहले, नक्सली आम तौर पर चुनावों के बहिष्कार का आह्वान करते हुए पर्चे और पोस्टर जारी करते हैं. जिससे अक्सर स्थानीय आबादी में डर पैदा हो जाता है. इस बार चुनाव आयोग ने बस्तर में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए अहम इंतजाम किए हैं.
“नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांतिपूर्ण मतदान की सुविधा के लिए थोड़ी अधिक सुरक्षा उपस्थिति होनी चाहिए. सरकार भी इन क्षेत्रों में विकास कार्यक्रम लागू करने की कोशिश कर रही है. लेकिन विकास की गति तेज होनी चाहिए और तभी इन क्षेत्रों से नक्सलवाद को खत्म किया जा सकता है": मनीष गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
बस्तर में नक्सलवाद से मिल रही चुनौतियां (Naxalism In Bastar Chhattisgarh elections): छत्तीसगढ़ के चुनावों में नक्सलवाद से लगातार चुनौतियां मिल रही है.छत्तीसगढ़ का चुनावी इतिहास नक्सली हिंसा से भरा पड़ा है.चुनावों पर उनके प्रभाव का एक ज्वलंत उदाहरण 2013 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुआ था. झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के दौरान नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले को निशाना बनाया था. इस अटैक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्या चरण शुक्ल सहित 29 लोगों की जान चली गई. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं की एक स्ट्रेंथ को नक्सलियों ने खत्म कर दिया था.
साल 2019 में भी नक्सलियों ने की हिंसा: साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नक्सलियों ने हिंसा की थी. जिसमें बीजेपी विधायक भीमा मंडावी को विस्फोट से नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया था.यह घटना 9 अप्रैल, 2019 को हुई थी, जब नक्सलियों ने नकुलनार के श्यामगिरी गांव के पास एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) से ब्लास्ट किया था. जिससे भीमा मंडावी और तीन अन्य लोगों की मौत हो गई.
साल 2023 में नक्सली हिंसा में कई नेताओं की हुई मौत: नक्सली हिंसा का दौर साल 2023 में भी जारी रहा.नारायणपुर में बीजेपी नेता सागर साहू की हत्या नक्सली ने कर दी. उसके बाद बुधराम करटम, नीलकंठ कक्कम और रामधन अलामी की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी.
केंद्रीय गृह मंत्रालय का दावा नक्सल घटनाओं में आई कमी: केंद्रीय गृह मंत्रालय का दावा है कि बस्तर में लगातार नक्सली घटनाओं में कमी आई है. यहां साल 2012 की तुलना में साल 2022 में नक्सल घटनाओं में 77 फीसदी की कमी आई है. जबकि नक्सल हिंसा में मौत के ग्राफ में 90 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.