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छत्तीसगढ़ में मनरेगा में केवल 20 फीसदी रोजगार सृजन, किसान सभा ने जताई चिंता

छत्तीसगढ़ किसान सभा ने प्रदेश में मनरेगा में केवल 20 फीसदी रोजगार सृजन पर चिंता जताई है. पिछले साल कुल 11.65 करोड़ मानव दिवस रोजगार सृजित किया गया था. लगभग 32 लाख ग्रामीण मजदूरों को काम दिया गया था. साल 2020-21 में 18.41 करोड़ मानव दिवस रोजगार सृजित किया गया था.

मनरेगा सृजन
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Published : Oct 13, 2022, 11:44 AM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ किसान सभा ने प्रदेश में मनरेगा में रोजगार के स्तर में भारी गिरावट पर चिंता व्यक्त की है. इसे बजट आवंटन में कटौती का परिणाम बताया है. छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा है कि प्रदेश में इस वित्तीय साल के पहले 6 महीनों में लक्ष्य का केवल 20 फीसदी मानव दिवस रोजगार ही सृजित किया गया है. जबकि पिछले साल कुल 11.65 करोड़ मानव दिवस रोजगार सृजित किया गया था. लगभग 32 लाख ग्रामीण मजदूरों को काम दिया गया था. साल 2020-21 में 18.41 करोड़ मानव दिवस रोजगार सृजित किया गया था. मनरेगा की सरकारी गति को देखते हुए अब इन आंकड़ों को छूना भी मुश्किल है.

यह भी पढ़ें: 75 दिनों का बस्तर दशहरा संपन्न, मां दंतेश्वरी की डोली लौटी दंतेवाड़ा

छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि "यह परिणाम मनरेगा के बजट में बड़े पैमाने पर कटौती के कारण हैं. कांग्रेस सरकार द्वारा लक्ष्य को हासिल करने की 'जुमलेबाजी' भर की जा रही है. क्योंकि पिछले साल के स्तर पर ही रोजगार पैदा करने के लिए पर्याप्त फंड और संसाधन नहीं है, इससे प्रदेश में सूखे और अतिवर्षा की मार झेल रहे ग्रामीण मजदूरों की आजीविका और जीवन स्तर में और गिरावट आएगी."

किसान सभा के नेताओं ने कहा कि मनरेगा ही ऐसी योजना है, जो ग्रामीणों मजदूरों को भूखमरी से बचाने में मददगार होती है. मजदूरों की सामूहिक सौदेबाजी की ताकत भी बढ़ी है और अन्य कार्यों में मजदूरी भी बढ़ी है. लेकिन इसके लचर क्रियान्वयन से अब मजदूरों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है. पिछले साल की तुलना में इस वर्ष लोगों के पलायन की ज्यादा संभावना है. इसे रोकने के लिए ग्रामीण मजदूरों को मनरेगा में काम उपलब्ध कराने की जरूरत है.

रायपुर: छत्तीसगढ़ किसान सभा ने प्रदेश में मनरेगा में रोजगार के स्तर में भारी गिरावट पर चिंता व्यक्त की है. इसे बजट आवंटन में कटौती का परिणाम बताया है. छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा है कि प्रदेश में इस वित्तीय साल के पहले 6 महीनों में लक्ष्य का केवल 20 फीसदी मानव दिवस रोजगार ही सृजित किया गया है. जबकि पिछले साल कुल 11.65 करोड़ मानव दिवस रोजगार सृजित किया गया था. लगभग 32 लाख ग्रामीण मजदूरों को काम दिया गया था. साल 2020-21 में 18.41 करोड़ मानव दिवस रोजगार सृजित किया गया था. मनरेगा की सरकारी गति को देखते हुए अब इन आंकड़ों को छूना भी मुश्किल है.

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छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि "यह परिणाम मनरेगा के बजट में बड़े पैमाने पर कटौती के कारण हैं. कांग्रेस सरकार द्वारा लक्ष्य को हासिल करने की 'जुमलेबाजी' भर की जा रही है. क्योंकि पिछले साल के स्तर पर ही रोजगार पैदा करने के लिए पर्याप्त फंड और संसाधन नहीं है, इससे प्रदेश में सूखे और अतिवर्षा की मार झेल रहे ग्रामीण मजदूरों की आजीविका और जीवन स्तर में और गिरावट आएगी."

किसान सभा के नेताओं ने कहा कि मनरेगा ही ऐसी योजना है, जो ग्रामीणों मजदूरों को भूखमरी से बचाने में मददगार होती है. मजदूरों की सामूहिक सौदेबाजी की ताकत भी बढ़ी है और अन्य कार्यों में मजदूरी भी बढ़ी है. लेकिन इसके लचर क्रियान्वयन से अब मजदूरों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है. पिछले साल की तुलना में इस वर्ष लोगों के पलायन की ज्यादा संभावना है. इसे रोकने के लिए ग्रामीण मजदूरों को मनरेगा में काम उपलब्ध कराने की जरूरत है.

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